इनसे सीखो : 2 एकड़ में उगाईं 30 फसलें, एक साल में कमाए 22 लाख
Alok Singh Bhadouria | Apr 22, 2018, 12:29 IST |
इनसे सीखो : 2 एकड़ में उगाईं 30 फसलें
ऐसे में जब खेती घाटे का सौदा बनकर रह गई है, अगर कोई खेती से एक साल में 22 लाख कमाने का दावा करे तो आसानी से भरोसा नहीं होता, लेकिन यह सच है। कर्नाटक के बेंगलुरु में एक किसान हैं एच. सदानंद, जो ऐसा करके दिखा रहे हैं। उनके पास केवल 2.1 एकड़ या लगभग 5.2 बीघा जमीन है। मतलब जमीन के क्षेत्रफल के लिहाज से उनकी हैसियत एक सीमांत किसान की है, लेकिन वह इतनी जमीन में ही लगभग 30 तरह की फसलें उगाकर सालाना 22 लाख रुपये कमा रहे हैं।
वह ऐसा कैसे कर पाते हैं? यह पूछने पर सदानंद कहते हैं, “मेरी पॉलिसी एकदम साफ है। मैं मानकर चलता हूं कि मुझे अपने फॉर्म से हर रोज, हर हफ्ते, हर महीने, हर तीन महीने, हर छह महीने और हर साल आमदनी होनी चाहिए। अपने इसी सूत्र के हिसाब से मैं तय करता हूं कि मुझे अपनी जमीन पर कौन सी खेती करनी है।“ सदानंद आगे कहते हैं, “इसके लिए मैं पॉली हाउस (पॉलिथीन से बना एक किस्म का ग्रीन हाउस) में फल, फूल, देशी-विदेशी सब्जियां उगाता हूं। साथ में गाय-भैसें, सुअर, कुत्ते, मुर्गियां और मछली भी पालता हूं।“
इस तरह सदानंद की रोजाना आमदनी मुर्गियों और गाय-भैंसों से मिलने वाले अंडे और दूध से होती है, वहीं उन्हें हर हफ्ते फूलों से, हर तीन महीने पर सब्जियों से और हर छह महीने पर फलों से कमाई होती है। लेकिन मुनाफा यहीं नहीं रुकता, मतलब सदानंद आम के आम और गुठलियों के दाम भी वसूलते हैं। वर्मी कंपोस्ट, गोबर और बीट से उन्हें लगभग फ्री में खाद मिल जाती है, साथ में गोबरगैस भी बनती है, इस तरह खेती पर लागत और कम हो जाती है। सदानंद कहते हैं, सबसे अहम बात यह है कि मुझे और मेरे परिवार को शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक भोजन मिलता है।
सदानंद शुरू में 15 सालों तक एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम करते रहे। वह कहते हैं, “मैंने देखा कि व्यापारी खेती की जमीन तो खरीदते थे, लेकिन उनकी रुचि खेती में बिल्कुल भी नहीं होती थी। वे केवल निवेश के नजरिए से जमीन में पैसे लगाते थे। वहीं मेरा मन नौकरी की जगह खेती में लगता था। कुछ समय मैंने नौकरी के साथ खेती की पर बाद में नौकरी छोड़कर पूरी तरह किसान बन गया। यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा फैसला था।“
दरअसल सदानंद की इस कामयाबी का राज है बहुफसली तकनीक। वह आधे एकड़ में टमाटर और सुपारी की खेती करते हैं। टमाटर से उन्हें 2 लाख और सुपारी से 50 हजार की आमदनी होती है। सुपारी के साथ सदानंद ने अदरक उगाने का सफल प्रयोग किया और उनसे एक साल में 70 हजार रुपये कमाए।
अपने फार्म पर सदानंद गिरिराजा नस्ल की 250 मुर्गियां भी पालते हैं। इन मुर्गियों की खासियत है कि इस नस्ल में रोगों से लड़ने की काफी क्षमता होती है। इसके अलावा ये खेतों से निकलने वाले कूड़े-करकट को भी खा जाती हैं। सदानंद मुर्गियों को हर तीसरे महीने बेचकर साल में एक लाख रुपये कमा लेते हैं। इन मुर्गियों से निकली बीट सुपारी के पेड़ों के लिए बेहतरीन खाद भी साबित होती है।
इसी छोटे से फार्म पर सदानंद ने गाय-भैसें भी पाल रखी हैं, जिनसे रोजाना 80 से 100 लीटर दूध मिलता है। यहीं एक छोटा सा तालाब है जिसमें रोहू और कतला मछलियां पाली गई हैं। मछलियों को तो बेचा जाता ही है, साथ ही इस तालाब में उगने वाले जलीय पौधे गाय-भैसों के लिए चारे के तौर पर इस्तेमाल होते हैं। इस तालाब से निकलने वाली गंदगी भी बहुत अच्छी खाद होती है। इतना ही नहीं इस फार्म पर सदानंद रॉटवीलर और ग्रेट डेन नस्ल के कुत्ते भी पालते हैं। इन्हें बेचकर उन्हें सालाना 1.2 लाख मिल जाते हैं।
सदानंद तीन-चौथाई एकड़ में 2 हजार गुलाबों की कलमें लगाते हैं। इनसे हर साल उन्हें 4 लाख रुपये मिल जाते हैं। एक चौथाई एकड़ में सदानंद ने ग्रीनहाउस बना रखा है जिसमें वह छह महीने गुलाब की एक किस्म बटन रोज और बाकी के छह महीने शिमला मिर्च, ब्रॉकली व सलाद पत्ता लगाते हैं। बटन रोज का चुनाव इसलिए किया गया क्योंकि इसमें ज्यादा कांटे नहीं होते और ये ऊंचे दाम पर बिकते हैं। इसके अलावा खाली जगह पर कॉफी, नारियल, कटहल, पपीते, चीकू, और नींबू उगाए गए हैं।
कर्नाटक के सदानंद की तरह राजस्थान के खेमाराम भी अपनी खेती में करिश्मा कर रहे हैं। जब सदानंद से पूछा गया कि अपने फार्म पर वह 30 तरह की अलग-अलग खेती कैसे कर पाते हैं तो उन्होंने कहा, “तकनीक के इस्तेमाल से।“ वह कहते हैं, “इससे मेरा काम जल्दी और आसानी से हो जाता है, साथ ही ज्यादा लोगों की भी जरूरत नहीं पड़ती। मैं दूध निकालने वाली मशीन, पावर वीडर जैसे यंत्रों के अलावा टपक सिंचाई, स्प्रिंकलर, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग तकनीक का इस्तेमाल करता हूं। सब्जियों को ग्रीन हाउस में उगाता हूं जिससे फसलें तेज हवा, गर्मी व रोगों से बच पाती हैं। पौधों की नमी बनी रहती है, जिससे कि उनसे मिलने वाली उपज की क्वॉलिटी अच्छी होती है। खुले में खेती करने की जगह ग्रीन हाउस में ज्यादा पैदावार मिलती है।“ ग्रीनहाउस में फसलें उगाने से पहले ही मैं खरीददारों से एग्रीमेंट कर लेता हूं, इसमें पहले से रेट तय कर लिए जाते हैं। सिंचाई बोरवेल से होती है, पानी को स्प्रिंकलर और टपक सिंचाई के जरिए फसलों तक पहुंचाया जाता है जिससे पानी की एक-एक बूंद का सदुपयोग होता है।
अपनी इस अनूठी पहल में सदानंद को सरकार से भी मदद मिली है। उनका ग्रीन हाउस 7 लाख की लागत से बनकर तैयार हुआ, इसमें 3 लाख रुपये सरकारी सब्सिडी के तौर पर मिले हैं। सदानंद समय-समय पर बेंगलुरू यूनिवर्सिटी से भी सलाह लेते रहते हैं। कृषि मंत्रालय सदानंद को कई बार सम्मानित भी कर चुका है। सदानंद की कामयाबी बताती है कि आज जरूरत है कि सही तकनीक और सूझबूझ से खेती की जाए। सदानंद देश के तमाम युवा और नई सोच वाले युवा किसानों के लिए एक सशक्त उदाहरण हैं।
मुनाफे का गणित
आम के आम गुठलियों के दाम
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पहले नौकरी करते थे फिर बने किसान
ढेरों फसल और नित नए प्रयोग
पालते हैं गिरिराजा नस्ल की मुर्गियां
और भी अपना रखे हैं तरीके
गुलाब और सब्जियों की जुगलबंदी
कर्नाटक के सदानंद की तरह राजस्थान के खेमाराम भी अपनी खेती में करिश्मा कर रहे हैं।