भारत में जलवायु परिवर्तन का मुद्दा गंभीर होने के बावजूद संसद में इस पर सबसे कम चर्चा हुई

गाँव कनेक्शन | Jul 26, 2022, 09:53 IST |
भारत में जलवायु परिवर्तन का मुद्दा गंभीर होने के बावजूद संसद में इस पर सबसे कम चर्चा हुई
सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनेबिलिटी और अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के एक संयुक्त अध्ययन से पता चलता है कि पिछले 20 वर्षों में संसद में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर कुल 895 प्रश्न पूछे गए थे, जो कि संसद में पूछे गए कुल प्रश्नों के एक प्रतिशत के बराबर भी नहीं है। अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर प्रश्नों का कम पूछा जाना मतदान व्यवहार को प्रभावित नहीं करता है।
भारत अपने भौगोलिक आकार, मौसमी हालात और बड़ी आबादी, खास तौर पर कमजोर समूहों और खास तौर पर कमजोर समूहों की वजह से जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे ज्यादा कमजोर देशों में से एक है, और खाद्य सुरक्षा के लिए कृषि जैसे जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों पर मजबूती से निर्भर है।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जलवायु परिवर्तन पर भारतीय नीतियों को आकार देने में भारतीय संसद काफी अहम भूमिका निभाती है। जलवायु परिवर्तन: भारतीय संसद से लापता शीर्षक हुए एक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन पर पूछे गए प्रश्न भारत में संसदीय प्रश्नों के एक बहुत छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह, भारत के भविष्य के लिए जलवायु परिवर्तन के महत्व के बावजूद है।


1999 से 2019 के बीच 20 साल की अवधि पर हुए अध्ययन में यह जानने की कोशिश की गई कि क्या सांसदों ने भारत में जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को संबोधित करने के लिए सवालों का इस्तेमाल किया है। इस अवधि जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर कुल 895 संसद में उठाए गए हैं। यह संसद में पूछे गए कुल संसदीय प्रश्नों के एक प्रतिशत (0.3 प्रतिशत) से भी कम है।


भारत जैसे कार्यशील लोकतंत्रों में, संसदीय प्रशन एक महत्वपूर्ण निरीक्षण टूल हैं जो सांसदों को विधायी और नीतिगत महत्व के प्रश्न पूछने और अपने स्थानीय निर्वाचन क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों को उठाने में सक्षम बनाते हैं।


अध्ययन में यह भी पाया गया है कि देश को 20 साल की अवधि में खतरनाक मौसमी घटनाओं का सामना करने के बावजूद संसदीय प्रश्नों की संख्या में कोई उच्च वृद्धि नहीं हुई है। बहुत कम प्रश्न – सिर्फ 6 प्रश्न सामाजिक-आर्थिक भेदभाव और जलवायु न्याय के मुद्दे पर हैं। यह एक गंभीर अंतर है, जिसको पिछले सप्ताह 9 जुलाई को प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है। संयुक्त अध्ययन सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनेबिलिटी और बंगलुरु स्थित अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित किया गया था।

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इसके अलावा, इस तथ्य के बावजूद की जलवायु प्रभाव काफी हद तक स्थानीय है, निष्कर्ष बताते हैं कि सबसे ज्यादा जलवायु से प्रभावित राज्यों के सांसद सवाल ही नहीं पूछ रहे हैं। 1019 सांसदों ने संसद में प्रश्न पूछे हैं। सबसे अधिक संसदीय प्रश्न पूछने वाले सांसद महाराष्ट्र (181), आंध्र प्रदेश (105), तमिलनाडु (99), उत्तर प्रदेश (98), और केरल (96) से थे, और सबसे कम प्रश्न पूछने वाले राज्यों के सांसद मिजोरम (0), मणिपुर, मेघालय और पंजाब (दो-दो) से थे।


संसद सत्र के दौरान संसदीय प्रश्न सुबह-सुबह पहले घंटे में पूछे जाते हैं। इस अवधि के दौरान, अलग अलग राजनीतिक दलों के सांसद प्रशासन और सरकारी गतिविधि से संबंधित सभी मामलों पर सवाल उठाते हैं, जिसका जवाब सरकार के मंत्री देते हैं। मंत्रालयों को कानून बनाते समय सांसदों के इनपुट को भी ध्यान में रखना पड़ता है, ऐसा न करने पर वे संभावित रूप से सदन का विश्वास खो सकते हैं।


संसद में पूछे गए सभी प्रश्नों में, सांसद कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में सबसे अधिक चिंतित थे, जिसका भारत के सकल घरेलू उत्पाद, तट और स्वास्थ्य में 17 प्रतिशत तक का योगदान है। भारत की कृषि खास तौर पर जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील है - यह आश्चर्य की बात नहीं है कि यह सांसदों के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिनके निर्वाचन क्षेत्र बड़े पैमाने पर ग्रामीण हैं, भारत के 69 प्रतिशत लोग अभी भी उन क्षेत्रों में शहरों से बाहर रहते है जहां कृषि का काफी महत्व है।


समाज के सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का शायद ही कभी उल्लेख किया गया हो, जैसा कि जलवायु परिवर्तन के अनुकुलन से संबंधित संसदीय प्रश्न थे। अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि कुल संसदीय प्रश्नों में से 27.6 प्रतिशत संसदीय प्रश्न जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, 23.5 प्रतिशत शमन पर जबकि अनुकूलन पर सबसे कम 3.9 प्रतिशत ध्यान दिया गया है। यह भारत में जलवायु अनुकूलन के महत्व के बावजूद है।


जलवायु परिवर्तन पर संसदीय प्रश्न बड़े पैमाने पर बाहरी राजनीतिक ईवेंट से संबंधित लग रहे थे। उदाहरण के लिए, 2007 में संसदीय प्रश्नों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई थी, जो जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के शुभारंभ से पहले का वर्ष था। साथ ही, 2015 में सबसे अधिक प्रश्न (104 प्रश्न) पूछे गए थे। जिसके बाद पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का नाम बदलकर 'पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय' कर दिया गया।


पिछले 20 वर्षों में भारत में खतरनाक मौसमी घटनाओं (बाढ़, चक्रवात, लू, सर्दी) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसका मानव जीवन और आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। हालांकि, प्रश्नों में मुद्दे उन वर्षों के अनुरूप नहीं थे जब विशेष रूप से गंभीर मौसम संबंधी आपदाएं हुईं।


अध्ययन में इस बात का भी उल्लेख किया गया है, यह मुमकिन है कि संसद में जलवायु परिवर्तन के बारे में कम सवाल पूछे जाने के कारणों में से एक यह है कि जलवायु परिवर्तन मतदान व्यवहार को प्रभावित नहीं करता है।

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अनुवाद: मोहम्मद अब्बदुल्ला सिद्दीकी

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