मेलघाट टाइगर रिजर्व के अंगार मुक्त अभियान में शामिल हुए स्थानीय लोग, जंगल की आग में आई कमी
Sarah Khan | Apr 16, 2022, 13:05 IST |
मेलघाट टाइगर रिजर्व के अंगार मुक्त अभियान में शामिल हुए स्थानीय लोग
जंगल की आग के बारे में स्थानीय ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए अंगार मुक्त अभियान शुरू किया गया है। टाइगर रिजर्व के 113 बफर गांवों में आयोजित इस कार्यक्रम में करीब 10,000 लोगों ने हिस्सा लिया। मेलघाट में जंगल की आग की घटनाएं 2016 की तुलना में 379 से घटकर 2021 में 221 हो गई हैं।
पिछले दिनों जंगल में लगी आग को बुझाने की कोशिश कर रहे चार लोगों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। पहाड़ी इलाके में 15 किलोग्राम के ब्लोअर को पीठ पर लादे, पहाड़ी ढलान पर नीचे दो फॉरेस्टर आग बुझाने की कोशिश कर रहे थे। इस वीडियो क्लिप को आईएफएस अधिकारी ज्योति बनर्जी ने शेयर किया था, जो मेलघाट टाइगर रिजर्व की प्रमुख हैं।
उन्होंने उन लोगों के दावों का खंडन किया जिन्हें लग रहा था कि यह महज एक दिखावे का वीडियो है, उन्होंने लिखा कि यह एक असली वीडियो था और आग बुझाने की कोशिश कर रहे लोग जंगल की आग टीम के सदस्य थे। यह वीडियो महाराष्ट्र के मेलघाट टाइगर रिजर्व का था।
मेलघाट के अलावा, देश के कई राज्यों जैसे राजस्थान में सरिस्का टाइगर रिजर्व और उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के जंगलों में आग लगने की घटनाएं होती रहती हैं। हर साल गर्मियों के महीनों में हजारों हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आ जाते हैं और ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से इन जंगलों में आग की घटनाएं होती हैं, जिसमें मानवीय कारक भी शामिल हैं।
"जंगलों के ऐसे हिस्से जहां पर पत्तियां गिरती हैं, वहां पर लगने वाली आग कभी भी प्राकृतिक नहीं होती है वह हमेशा किसी इंसान के जरिए लगाई गई होती है। इन मानव निर्मित आग के पीछे कई कारण भी हैं, लेकिन सबसे जरूरी सवाल यह है कि हम इसको कैसे सुलझाते हैं? मेलघाट टाइगर रिजर्व की मुख्य संरक्षक और क्षेत्र निदेशक ज्योति बनर्जी ने गांव कनेक्शन को बताया, "अंगार मुक्त अभियान इसे हासिल करने की दिशा में एक ऐसी पहल है।"
अमरावती जिले में मध्य भारत की सतपुड़ा पहाड़ी श्रृंखला में, प्राकृतिक जंगलों, समृद्ध जैव विविधता पारिस्थितिकी तंत्र और गहरी घाटियों और स्थानीय पहाड़ियों के विभिन्न आवासों के बीच मेलघाट टाइगर रिजर्व स्थित है। 2,768 वर्ग किलोमीटर (वर्ग किमी) के क्षेत्र में फैला यह देश के सबसे बड़े टाइगर रिजर्व में से एक माना जाता है।
मेलघाट टाइगर रिजर्व लंबे समय से जंगल में आग की समस्या से जूझ रहा है। अब स्थानीय वन समुदाय की सहायता से वन अधिकारियों ने पिछले कुछ वर्षों में जंगल की आग को काफी हद तक काबू कर लिया गया है।
जंगल की आग के बारे में स्थानीय ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए अंगार मुक्त अभियान एक जागरूकता अभियान है। टाइगर रिजर्व के 113 बफर गांवों में आयोजित इस कार्यक्रम में करीब 10,000 लोगों ने हिस्सा लिया।
बनर्जी ने बताया, "यह एक तरह की प्रतियोगिता है, जिसमें ग्राम पंचायतों को उनके गाँवों और उसके आसपास आग न लगने पर पुरस्कार दिए जाते हैं। हम उन्हें 30,000 रुपये या 40,000 रुपये की एकमुश्त राशि देते हैं।"
टाइगर रिजर्व की निदेशक ने यह भी बताया कि आग बुझाने के कार्यों में, वन अधिकारियों की सहायता के लिए बहुत से लोगों की जरूरत होती है तो स्थानीय लोग आगे आते हैं और हमारी मदद करते हैं। उन्होंने कहा, "इस तरह काम करने वाले वन मजदूरों को दिहाड़ी पर रखा जाता है और इस तरह वे आग बुझाने में अग्निशमन अधिकारियों का सहयोग करते हैं।"
हालांकि ये सही दिशा में किया गया एक प्रयास है, लेकिन मेलघाट में वन अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था केएचओजे की संस्थापक सदस्य पूर्णिमा उपाध्याय को लगता है कि ग्राम पंचायतों को पैसा सौंपने के बजाय, वन विभाग को समुदाय के साथ काम करने की जरूरत है जो अपने वन क्षेत्रों की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं।
पूर्णिमा उपाध्याय ने गांव कनेक्शन को बताया, "वन विभाग अभी भी श्यामा प्रसाद मुखर्जी जन वन विकास योजना या पर्यावरण विकास समितियों में फंसे हुए हैं। पूरे गांव के लोगों को पुरस्कृत करने की जरूरत है, आप सिर्फ एक समिति में इनाम नहीं दे सकते जिसमें पूरा समुदाय नहीं है।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी जन वन विकास योजना को 2015 में महाराष्ट्र सरकार ने टाइगर रिजर्व के आसपास के गांवों के विकास के लिए शुरू किया था।
वन अधिकार कार्यकर्ता ने यह भी कहा कि स्थानीय समुदाय भागीदारी का प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि अब उन्हें लगता है कि जंगल और उसके संसाधन उनके हैं और उनका फर्ज है कि वे अपने जंगलों के प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करें।
मेलघाट टाइगर रिजर्व के अधिकारियों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार जंगल में आग लगने की संख्या 2016 में 379 थी, जो घटकर 2021 में 221 रह गई है और जले हुए वन क्षेत्रों में काफी कमी आई है।
जला हुआ वन क्षेत्र 2016 में 11401.03 हेक्टेयर था जो 2021 में घटकर 2891.931 हेक्टेयर हो गया है। सब से कम आंकड़ा 2020 में था, जहां 276,800 हेक्टेयर तक फैले जंगल में से 1015.562 हेक्टेयर वन क्षेत्र जल गया था।
जंगल के अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, "मेलघाट 3,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक का एक बड़ा क्षेत्र है। अगर मान लिया जाए कि इस वर्ष 500 हेक्टेयर और अगले वर्ष 1000 हेक्टेयर भूमि जल जाती है तो ऐसा लगता है कि इसमें 100 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, लेकिन अगर आप पुरे वन क्षेत्र का प्रतिशत निकालें तो यह एक छोटा सा हिस्सा है।
अधिकारी ने यह भी कहा कि क्योंकि सभी आग को फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने उपग्रह के माध्यम से दर्ज किया है, कोई भी आग के आंकड़ों को छिपा नहीं सकता है।
मेलघाट टाइगर रिजर्व के जंगल की आग को कम करने में स्थानीय समुदाय को शामिल करने के प्रयास संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की सिफारिशों के अनुरूप हैं, जिसने अपनी रिपोर्ट " supporting and integrating indigenous, traditional and contemporary fire management practices into policy " में सुझाव दिया है। जिसे 23 फरवरी को Spreading like wildfire: The rising threat of extraordinary landscape fires के शीर्षक से जारी किया गया है।
रिपोर्ट में है, "कई क्षेत्रों में भूमि प्रबंधन का स्वदेशी और पारंपरिक ज्ञान - विशेष रूप से जंगल की आग शमन सहित ईंधन के प्रबंधन के लिए आग का उपयोग - खतरे को कम करने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है। यह जैव विविधता, और सांस्कृतिक को भी सुनिश्चित कर सकता है और पारिस्थितिक मूल्यों का सम्मान किया जाता है, साथ ही साथ आजीविका के अवसर भी पैदा होते हैं।"
वन अधिकारी ने कहा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी जन वन विकास योजना के माध्यम से वन विभाग ने स्थानीय समुदायों की वन संसाधनों पर निर्भरता को कम करने का प्रयास किया है।
वन अधिकारी ने गांव कनेक्शन को बताया, "हम उन्हें लकड़ी पर निर्भरता कम करने के लिए एलपीजी कनेक्शन, बेहतर चूल्हे और उनके गाँव में पेयजल के वैकल्पिक स्रोत प्रदान करते हैं।
अधिकारी ने बताया कि वन रोकथाम कार्य जैसे गांव क्षेत्र के पास वन लाइनों का जाल बिछाना स्थानीय समुदायों को आवंटित किया जाता है। इस प्रकार बिछाई गई वन रेखाएं आग को पहाड़ियों और वृक्षारोपण के विस्तृत क्षेत्रों में फैलने से रोकती हैं। अधिकारी ने कहा, "क्षेत्र में कई सुरक्षा शिविर लगाए गए हैं, जिनमें वन कर्मचारी और वहां स्थायी रूप से तैनात मजदूर भी शामिल हैं।"
मेलघाट वन अधिकारियों द्वारा साझा की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, अन्य पहलों में वन क्षेत्र में एक अच्छी तरह से सुसज्जित वन प्रकोष्ठ की स्थापना शामिल है, जो फरवरी से लेकर जुलाई तक आग के मौसम के दौरान 24 X 7 काम करता है। प्रकोष्ठ की निगरानी क्षेत्र अधिकारी और निदेशक द्वारा घंटे के आधार पर की जाती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि टाइगर रिजर्व जंगल की आग का पता लगाने के लिए एक दोहरे सिस्टम पारंपरिक वन फायर वॉच टॉवर और सेटेलाइट अलर्ट का उपयोग करता है। क्योंकि जंगल की आग का पता लगाना एक आवश्यक कदम है, जंगल की आग के आंकड़े फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के साथ-साथ नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) से प्राप्त किए जाते हैं।
इस प्रकार साझा किए गए अग्नि स्थानों का विश्लेषण क्यूजीआईएस (क्वांटम जीआईएस) सॉफ्टवेयर पर किया जाता है ताकि प्रभावित वन प्रशासनिक विवरण का पता लगाया जा सके। उस क्षेत्र की स्थलाकृति को समझने के लिए उनका Google अर्थ पर विश्लेषण भी किया जाता है और हर घंटे एक ताजा अपडेट कोर फायर सेल के व्हाट्सएप ग्रुप में शेयर किया जाता है जो टाइगर रिजर्व में नवीनतम आग की स्थिति की ओर इशारा करता है।
वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, मेलघाट टाइगर रिजर्व में आग ज्यादातर मानव निर्मित है और शायद ही कभी प्राकृतिक होती है। महुआ इकट्ठा करने से लेकर कृषि भूमि को जलाने तक, इस उम्मीद में कि यह आग की वजह से बेहतर उपज देगा, मेलघाट क्षेत्र में इन आग के पीछे वन अधिकारियों द्वारा विभिन्न कारणों का हवाला दिया गया है।
टाइगर रिजर्व के मुख्य संरक्षक बनर्जी ने गांव कनेक्शन को बताया, "महुआ के फूल हल्के सफेद रंग के होते हैं, इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि उन्हें आसानी से इकट्ठा किया जा सके स्थानीय लोग सूखे पत्तों को जमीन पर जला देते हैं और कभी-कभी, ये महुआ की आग जंगल में लग जाती है।
उन्होंने कहा कि इस समस्या का सबसे स्थायी समाधान सूखे पत्तों को जलाने के बजाय पेड़ों के चारों ओर डालना है।
उन्होंने कहा कि इसके पीछे दूसरा कारण तेंदूपत्ता है। स्थानीय लोगों की आदत है कि किसी विशेष कृषि भूमि में आग लगाने से बेहतर उपज प्राप्त होगी, जंगल की आग के पीछे एक और कारण है। बनर्जी ने गांव कनेक्शन से कहा, "यह विश्वास बिल्कुल गलत है और भूमि प्रमुख पोषक तत्वों की भूमि को छीन लेता है। इसके अलावा, बहुत सारी शरारतें भी होती हैं, लेकिन हमारा उद्देश्य लोगों के साथ चलना है।"
उन्होंने उन लोगों के दावों का खंडन किया जिन्हें लग रहा था कि यह महज एक दिखावे का वीडियो है, उन्होंने लिखा कि यह एक असली वीडियो था और आग बुझाने की कोशिश कर रहे लोग जंगल की आग टीम के सदस्य थे। यह वीडियो महाराष्ट्र के मेलघाट टाइगर रिजर्व का था।
मेलघाट के अलावा, देश के कई राज्यों जैसे राजस्थान में सरिस्का टाइगर रिजर्व और उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के जंगलों में आग लगने की घटनाएं होती रहती हैं। हर साल गर्मियों के महीनों में हजारों हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आ जाते हैं और ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से इन जंगलों में आग की घटनाएं होती हैं, जिसमें मानवीय कारक भी शामिल हैं।
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"जंगलों के ऐसे हिस्से जहां पर पत्तियां गिरती हैं, वहां पर लगने वाली आग कभी भी प्राकृतिक नहीं होती है वह हमेशा किसी इंसान के जरिए लगाई गई होती है। इन मानव निर्मित आग के पीछे कई कारण भी हैं, लेकिन सबसे जरूरी सवाल यह है कि हम इसको कैसे सुलझाते हैं? मेलघाट टाइगर रिजर्व की मुख्य संरक्षक और क्षेत्र निदेशक ज्योति बनर्जी ने गांव कनेक्शन को बताया, "अंगार मुक्त अभियान इसे हासिल करने की दिशा में एक ऐसी पहल है।"
मेलघाट का अंगार मुक्त अभियान
मेलघाट टाइगर रिजर्व लंबे समय से जंगल में आग की समस्या से जूझ रहा है। अब स्थानीय वन समुदाय की सहायता से वन अधिकारियों ने पिछले कुछ वर्षों में जंगल की आग को काफी हद तक काबू कर लिया गया है।
जंगल की आग के बारे में स्थानीय ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए अंगार मुक्त अभियान एक जागरूकता अभियान है। टाइगर रिजर्व के 113 बफर गांवों में आयोजित इस कार्यक्रम में करीब 10,000 लोगों ने हिस्सा लिया।
बनर्जी ने बताया, "यह एक तरह की प्रतियोगिता है, जिसमें ग्राम पंचायतों को उनके गाँवों और उसके आसपास आग न लगने पर पुरस्कार दिए जाते हैं। हम उन्हें 30,000 रुपये या 40,000 रुपये की एकमुश्त राशि देते हैं।"
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टाइगर रिजर्व की निदेशक ने यह भी बताया कि आग बुझाने के कार्यों में, वन अधिकारियों की सहायता के लिए बहुत से लोगों की जरूरत होती है तो स्थानीय लोग आगे आते हैं और हमारी मदद करते हैं। उन्होंने कहा, "इस तरह काम करने वाले वन मजदूरों को दिहाड़ी पर रखा जाता है और इस तरह वे आग बुझाने में अग्निशमन अधिकारियों का सहयोग करते हैं।"
हालांकि ये सही दिशा में किया गया एक प्रयास है, लेकिन मेलघाट में वन अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था केएचओजे की संस्थापक सदस्य पूर्णिमा उपाध्याय को लगता है कि ग्राम पंचायतों को पैसा सौंपने के बजाय, वन विभाग को समुदाय के साथ काम करने की जरूरत है जो अपने वन क्षेत्रों की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं।
पूर्णिमा उपाध्याय ने गांव कनेक्शन को बताया, "वन विभाग अभी भी श्यामा प्रसाद मुखर्जी जन वन विकास योजना या पर्यावरण विकास समितियों में फंसे हुए हैं। पूरे गांव के लोगों को पुरस्कृत करने की जरूरत है, आप सिर्फ एक समिति में इनाम नहीं दे सकते जिसमें पूरा समुदाय नहीं है।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी जन वन विकास योजना को 2015 में महाराष्ट्र सरकार ने टाइगर रिजर्व के आसपास के गांवों के विकास के लिए शुरू किया था।
वन अधिकार कार्यकर्ता ने यह भी कहा कि स्थानीय समुदाय भागीदारी का प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि अब उन्हें लगता है कि जंगल और उसके संसाधन उनके हैं और उनका फर्ज है कि वे अपने जंगलों के प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करें।
कम हुईं जंगल की आग की घटनाएं
जला हुआ वन क्षेत्र 2016 में 11401.03 हेक्टेयर था जो 2021 में घटकर 2891.931 हेक्टेयर हो गया है। सब से कम आंकड़ा 2020 में था, जहां 276,800 हेक्टेयर तक फैले जंगल में से 1015.562 हेक्टेयर वन क्षेत्र जल गया था।
जंगल के अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, "मेलघाट 3,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक का एक बड़ा क्षेत्र है। अगर मान लिया जाए कि इस वर्ष 500 हेक्टेयर और अगले वर्ष 1000 हेक्टेयर भूमि जल जाती है तो ऐसा लगता है कि इसमें 100 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, लेकिन अगर आप पुरे वन क्षेत्र का प्रतिशत निकालें तो यह एक छोटा सा हिस्सा है।
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अधिकारी ने यह भी कहा कि क्योंकि सभी आग को फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने उपग्रह के माध्यम से दर्ज किया है, कोई भी आग के आंकड़ों को छिपा नहीं सकता है।
मेलघाट टाइगर रिजर्व के जंगल की आग को कम करने में स्थानीय समुदाय को शामिल करने के प्रयास संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की सिफारिशों के अनुरूप हैं, जिसने अपनी रिपोर्ट " supporting and integrating indigenous, traditional and contemporary fire management practices into policy " में सुझाव दिया है। जिसे 23 फरवरी को Spreading like wildfire: The rising threat of extraordinary landscape fires के शीर्षक से जारी किया गया है।
रिपोर्ट में है, "कई क्षेत्रों में भूमि प्रबंधन का स्वदेशी और पारंपरिक ज्ञान - विशेष रूप से जंगल की आग शमन सहित ईंधन के प्रबंधन के लिए आग का उपयोग - खतरे को कम करने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है। यह जैव विविधता, और सांस्कृतिक को भी सुनिश्चित कर सकता है और पारिस्थितिक मूल्यों का सम्मान किया जाता है, साथ ही साथ आजीविका के अवसर भी पैदा होते हैं।"
मेलघाट में जंगल की आग को कम करने के लिए अन्य पहल
वन अधिकारी ने गांव कनेक्शन को बताया, "हम उन्हें लकड़ी पर निर्भरता कम करने के लिए एलपीजी कनेक्शन, बेहतर चूल्हे और उनके गाँव में पेयजल के वैकल्पिक स्रोत प्रदान करते हैं।
अधिकारी ने बताया कि वन रोकथाम कार्य जैसे गांव क्षेत्र के पास वन लाइनों का जाल बिछाना स्थानीय समुदायों को आवंटित किया जाता है। इस प्रकार बिछाई गई वन रेखाएं आग को पहाड़ियों और वृक्षारोपण के विस्तृत क्षेत्रों में फैलने से रोकती हैं। अधिकारी ने कहा, "क्षेत्र में कई सुरक्षा शिविर लगाए गए हैं, जिनमें वन कर्मचारी और वहां स्थायी रूप से तैनात मजदूर भी शामिल हैं।"
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मेलघाट वन अधिकारियों द्वारा साझा की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, अन्य पहलों में वन क्षेत्र में एक अच्छी तरह से सुसज्जित वन प्रकोष्ठ की स्थापना शामिल है, जो फरवरी से लेकर जुलाई तक आग के मौसम के दौरान 24 X 7 काम करता है। प्रकोष्ठ की निगरानी क्षेत्र अधिकारी और निदेशक द्वारा घंटे के आधार पर की जाती है।
जंगल की आग का पता लगाने के लिए दोहरी व्यवस्था
इस प्रकार साझा किए गए अग्नि स्थानों का विश्लेषण क्यूजीआईएस (क्वांटम जीआईएस) सॉफ्टवेयर पर किया जाता है ताकि प्रभावित वन प्रशासनिक विवरण का पता लगाया जा सके। उस क्षेत्र की स्थलाकृति को समझने के लिए उनका Google अर्थ पर विश्लेषण भी किया जाता है और हर घंटे एक ताजा अपडेट कोर फायर सेल के व्हाट्सएप ग्रुप में शेयर किया जाता है जो टाइगर रिजर्व में नवीनतम आग की स्थिति की ओर इशारा करता है।
महुआ और तेंदू के पत्तों के इकट्ठा के लिए जंगल में आग का लगाना
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टाइगर रिजर्व के मुख्य संरक्षक बनर्जी ने गांव कनेक्शन को बताया, "महुआ के फूल हल्के सफेद रंग के होते हैं, इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि उन्हें आसानी से इकट्ठा किया जा सके स्थानीय लोग सूखे पत्तों को जमीन पर जला देते हैं और कभी-कभी, ये महुआ की आग जंगल में लग जाती है।
उन्होंने कहा कि इस समस्या का सबसे स्थायी समाधान सूखे पत्तों को जलाने के बजाय पेड़ों के चारों ओर डालना है।
उन्होंने कहा कि इसके पीछे दूसरा कारण तेंदूपत्ता है। स्थानीय लोगों की आदत है कि किसी विशेष कृषि भूमि में आग लगाने से बेहतर उपज प्राप्त होगी, जंगल की आग के पीछे एक और कारण है। बनर्जी ने गांव कनेक्शन से कहा, "यह विश्वास बिल्कुल गलत है और भूमि प्रमुख पोषक तत्वों की भूमि को छीन लेता है। इसके अलावा, बहुत सारी शरारतें भी होती हैं, लेकिन हमारा उद्देश्य लोगों के साथ चलना है।"