टाइगर झींगा पकड़ने के कारण बीमारियों से घिरीं सुंदरबन के गाँवों की महिलाएँ
Aishwarya Tripathi | Aug 07, 2023, 10:37 IST |
टाइगर झींगा पकड़ने के कारण बीमारियों से घिरीं सुंदरबन के गाँवों की महिलाएँ
सुंदरबन में झींगा के सीडलिंग इकट्ठा करने वाली महिलाएँ रोज़ाना 10 घंटे से ज़्यादा समय तक खारे पानी में खड़े होकर 'बगदा' पकड़ती हैं। इससे उन्हें अक्सर यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, स्किन एलर्जी और जोड़ों के दर्द का सामना करना पड़ता है। कई बार तो वो गर्भपात का भी शिकार हो जाती हैं।
सुंदरबन (दक्षिण 24 परगना), पश्चिम बंगाल
टाइगर झींगा से बने स्वादिष्ट व्यंजन शहरों के बड़े-बड़े रेस्तरां में काफी ऊँचे दामों में मिलते हैं।
लेकिन उनकी कीमत अक्सर चंदना मोंडोल जैसी महिलाओं द्वारा चुकाई गई वास्तविक कीमत को छिपा देती है। वह और उसके जैसी कई महिलाएँ खारे पानी में कमर तक खड़े होकर बगदा या झींगा के सीडलिंग इकट्ठा करने में घंटों बिताती हैं। इस काम की वजह से उन्हें त्वचा के संक्रमण से लेकर प्रजनन संबंधी कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
इन महिलाओं को मीनधरा या झींगा के सीडलिंग इकट्ठा करने वालों के रूप में जाना जाता है। वो इन्हें झींगा की ख़ेती करने वाले बिचौलियों को बेचती हैं।
चांदना को एक्जिमा है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें त्वचा में सूजन आ जाती है और खुजली होने लगती है।
चांदना ने अपनी हथेलियों से बेरँग हो चुकी त्वचा को छीलते हुए गाँव कनेक्शन को बताया, "नून जल थेके होये (यह खारे पानी के कारण हुआ है)।"
47 साल की चांदना को एक्जिमा है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें त्वचा में सूजन आ जाती है और खुजली होने लगती है। उसमें दरारें पड़ने लग जाती है और त्वचा खुरदरी हो जाती है।
13 साल की उम्र में अपनी शादी के बाद से चांदना भारतीय सुंदरबन क्षेत्र में अपने गाँव सोनगर के पास बिद्याधारी नदी के खारे पानी में हर दिन कई घंटे बिताती हैं। यह इलाका भारत में टाइगर झींगा का सबसे बड़ा उत्पादक माना जाता है।
बंगाल की खाड़ी में गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के संगम पर स्थित ज्वारीय क्षेत्र, पश्चिम बंगाल के सुंदरवन के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली सबसे गरीब महिलाएँ झींगा के सीडलिंग इकट्ठा करके अपना जीवन यापन करती हैं। अनुमान है कि नदियों से झींगा के सीडलिंग इकट्ठा करना सुंदरबन के मुहाने के डेल्टा पर एक लाख से अधिक गरीब महिलाओं के लिए आजीविका का ख़तरनाक लेकिन एक महत्वपूर्ण जरिया है।
कड़ी मेहनत के बाद ये महिलाएँ सीडलिंग इकट्ठा करती है। लेकिन महज 200 रुपयों में 1000 सीडलिंग को स्थानीय बिचौलियों को बेचा जाता है। ये बिचौलिए कैनिंग और दक्षिण 24 परगना ज़िले के अन्य हिस्सों में बेहरिया या बड़े कृत्रिम बाड़ों में झींगा की ख़ेती करते हैं।
बेहरियों में बगदा की ख़ेती यानी मछलियों का पालन-पोषण तीन महीने से अधिक समय तक करने के बाद वयस्क झींगा को थोक बाज़ारों में बेचा जाता है और फिर निर्यात बाज़ार में ले जाया जाता है।
पश्चिम बंगाल भारत में टाइगर झींगा का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो 51,000 हेक्टेयर क्षेत्र से 50,000 टन का उत्पादन करता है। लेकिन, मीनधराओं को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है, जिन्हें अपने काम के कारण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
चांदना ने कहा, “मेरी हथेली में खुजली होती रहती है। मुझे अपने पैरों, पेट और पीठ में भी खुजली महसूस होती है। मैं नहाने के लिए घर जाती हूँ और दिन भर अपने शरीर से चिपकी रहने वाली गीली साड़ी को बदलकर दूसरी साड़ी पहन लेती हूँ।'' उन्होंने बताया कि वह इलाज के लिए हर महीने 500 रुपये खर्च कर देती हैं। जबकि उनकी मासिक आय 2,000 रुपये से अधिक नहीं है।
उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरे पति हर साल कुछ महीनों के लिए आंध्र प्रदेश चले जाते हैं। लेकिन हम अपने जीने के लिए उसके पैसे पर निर्भर नहीं हैं। यह इस मीन (मछली) का पैसा है जो हमें जिंदा बनाए रखता है और हमारी भूख मिटाता है।"
चांदना के गाँव का सबसे नज़दीकी अस्पताल गोसाबा ग्रामीण अस्पताल है। सबसे छोटे रास्ते से जाने पर भी इसकी दूरी सात किलोमीटर है। वहीं नाव से वहाँ पहुँचने में एक घंटे से ज़्यादा का समय लगता है।
ग्रामीण अस्पताल में जनरल ड्यूटी मेडिकल ऑफिसर सागरिका सरदार ने कहा, "साफ-सफाई के मामले में यहाँ की स्थिति काफी ख़राब है। यहाँ रहने वाली महिलाओं में यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन बहुत आम है। और जिस खारे पानी में वे खड़ी होकर काम करती हैं उससे ये और बढ़ जाता है।"
इसके अलावा उन्हें और भी कई स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हैं। कोलकाता में स्त्री रोग और प्रसूति रोग विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. इंद्रनील साहा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "ये महिलाएँ (मीन धरा) कूल्हे तक खारे पानी में भीगी खड़ी रहती हैं और अक्सर अपने पैर की उँगलियों, नाखूनों और जाँघों के बीच में फंगल संक्रमण से पीड़ित हो जाती हैं।"
अपनी माँ की तरह चंदना की 33 वर्षीय बेटी देविका बर्मन भी मीनधरा हैं। दस साल की उम्र से वह ये काम कर रही है।
देविका ने कहा, “मैं काम से एक दिन की भी छुट्टी नहीं लेती हूँ, यहाँ तक कि जब मुझे पीरियड्स होते हैं तब भी नहीं। एक दिन भी गायब रहने का मतलब है एक दिन की मज़दूरी खोना।'' उन्होंने आगे कहा, “खारा पानी जलन और दर्द का कारण बनता है। मैं दवा लेने के लिए हर महीने गाँव के डॉक्टर (नीम-हकीम) के पास जाती हूँ। लेकिन इसका पूरी तरह से इलाज नहीं हो पाता और संक्रमण बार-बार लौट आता है।''
दर्द निवारक दवाएँ इन महिलाओं को उनके बेहद मुश्किल भरे काम से होने वाले दर्द से निपटने में मदद करती हैं। देविका ने कहा, “मैं लगभग हर दिन एक दर्द निवारक दवा लेती हूँ। मीन मछली पकड़ने के लिए अपनी ताकत को बनाए रखने का यही एकमात्र तरीका है। मेरे गाँव में डॉक्टर मुझे कुछ ऐसा देते हैं जिससे जोड़ों का दर्द दूर हो जाता है। लेकिन कुछ समय बाद दर्द फिर से शुरू हो जाता है और मुझे दूसरी गोली खानी पड़ती है।''
डॉ. इंद्रनील साहा के अनुसार, लंबे समय तक खारे पानी में खड़े रहने और मछली पकड़ने से वेजाइनल इंफेक्शन हो सकता है। उन्होंने कहा, "सही स्वास्थ्य देखभाल के अभाव में, ये महिलाएँ झोलाछाप डॉक्टरों से रेंडम एंटीबायोटिक या एंटी फंगल लेती हैं और फिर ये दवाएँ उन पर असर करना बंद कर देती हैं।"
उन्होंने बताया “इस स्थिति में अगर वे संबंध बनाती हैं, तो उन्हें यौन संचारित रोग होने की भी संभावना है। बार-बार होने वाले संक्रमण से कभी-कभी बांझपन हो सकता है।''
साल 2022 में ‘सुंदरबन में महिलाओं के झींगा पकड़ने के खतरे’ नाम से एक सर्वेक्षण किया गया था। इस सर्वे में पूरे डेल्टा में फैले 50 इलाकों के 994 घरों को शामिल किया गया था। सर्वे में पाया गया कि इनमें से 252 घर झींगा मछली पकड़ने में शामिल थे। मींधराओं को अपने समकक्षों की तुलना में काफी अधिक स्वास्थ्य समस्याएं थीं, जो अन्य कम-मजदूरी गतिविधियों में लगे हुए थे।
सर्वे में गिनाई गई 67 बीमारियों के एक उपसमूह में इन स्वास्थ्य समस्याओं को रखा गया था। अनियमित मासिक धर्म, नज़र से जुड़ी समस्याएँ , गैस्ट्रिक दर्द, हाथ, पैर और घुटनों में दर्द, त्वचा की एलर्जी और खुजली जैसी समस्याएँ इसमें शामिल थी।
2022 के अध्ययन में इस बात पर ध्यान दिया गया कि झींगा सीडलिंग इकट्ठा करना ही इन महिलाओं के लिए आमदनी का एक ज़रिया है। इसकी वजह उनका इस जगह से कभी बाहर न जाना और निम्न शिक्षा स्तर है।
चांदना के सोनागर गाँव से दो घंटे की नौका सवारी की दूरी पर बाली द्वीप है। बाली ग्राम पंचायत में रहने वाली कुमला सरकार ने 2007 में सुंदर बन के गहरे मैंग्रोव जंगलों में छोटी सी नहर से मछली पकड़ते समय एक बाघ के हमले में अपने दोस्त को खो दिया था। बावज़ूद इसके वह मींधरा बनी हुई है।
66 साल की कुमला ने कहा, “जब मैंने बगदा पकड़ना शुरू किया तो मेरी अंदरूनी जांघों में भयानक खुजली होने लगी। पानी में खड़ा होना भी आसान नहीं था। मैंने देखा कि मेरी त्वचा सूखने लगी और छिलने लगी।''
परेशानी बस इतनी भर नहीं थी। समय के साथ कुमला की नज़र भी कमजोर हो गई। इसकी वजह से उनकी गंदे पानी में भूरे बालों जैसे बारीक सीडलिंग को देखने की क्षमता कम हो गई।
कुमाला ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरी आँखों में पानी आने लगा और दर्द बढ़ने लगा। आखिरकार मुझे उन्हें पकड़ना बंद करना पड़ा।''
जब कुमला ने शुरुआत की थी, तो उन्हें प्रति बगदा एक रुपये मिलता था, लेकिन जैसे-जैसे माँग घटती गई, कीमत भी कम होती गई। 1,000 सीडलिंग पर अब सिर्फ 200 रुपये मिलते हैं। उन्हें इस पेशे से बाहर हुए पाँच साल से अधिक समय हो गया है। उसकी आँखों के बारे में अब क्या कहा जाए। वह न तो चश्मा पहनती है और न ही उनके पास इलाज कराने के लिए पैसे हैं।
कुमला, चंदना और देविका जैसी महिलाओं की स्वास्थ्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिए न तो बाली और न ही सोनागर गाँव में कोई अस्पताल है।
गोसाबा ग्रामीण अस्पताल ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले नौ द्वीपों की आबादी की सेहत की देख-रेख करता है। यहाँ पाँच डॉक्टर हैं और रोज़ाना 150 से 180 मरीज आते हैं। हालाँकि, अस्पताल में यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन की पुष्टि करने के लिए किसी तरह की जाँच की कोई सुविधा मौजूद नहीं है।
गोसाबा ग्रामीण अस्पताल में जनरल ड्यूटी मेडिकल ऑफिसर सुमित खान ने कहा, “लगातार खारे पानी के संपर्क में रहने के कारण मछुआरों महिलाओं में वेजाइनल इन्फेक्शन आम हो सकता है। आसपास के सभी द्वीपों के निवासियों के लिए यह एकमात्र अस्पताल है। जैसा कि मुझे याद है, सर्वाइकल कैंसर के पाँच मामले सामने आए थे, जिन्हें कैनिंग रेफर किया गया था।”
बाली द्वीप पर, 2022 में एक ग्रामीण अस्पताल खोला गया था लेकिन वहाँ लोग मुश्किल से ही आते हैं। बाली की निवासी यशोदा डार ने कहा, “हम उस अस्पताल में नहीं जाते। डॉक्टर वहाँ कभी-कभार ही आते हैं। यह सिर्फ बुखार, टीकाकरण और दवाओं के मामले में सहायक है। ”
लेकिन कुछ राहत देने के लिए प्रसन्नजीत मंडल की ओर से सुंदरबन फाउंडेशन के दायरे में एक गैर-लाभकारी स्वास्थ्य सुविधा चलाई जा रही है। यह अस्पताल 2016 में बाली द्वीप में खोला गया था।
उन्होंने सुंदरबन के द्वीपों में ग्रामीणों को टेलीमेडिसिन सहायता के लिए योग्य डॉक्टरों का एक नेटवर्क बनाया है।
प्रसनजीत ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं मरीजों को उनके लक्षण बताते हुए एक वीडियो बनाता हूँ और इसे इन डॉक्टरों के साथ बनाए गए व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा करता हूँ। संबंधित डॉक्टर मरीज को देखता है और उपचार का सुझाव देता है। जब तक कुछ गंभीर न हो, हम इसे अपने स्तर पर संभालने में सक्षम हैं।”
लेकिन, कई गरीब मीनधराओं के पास आभासी परामर्श के लिए न तो समय है और न ही स्मार्टफोन।
(यह दो भाग वाली सीरीज का दूसरा भाग है। आप पहला भाग यहाँ पढ़ सकते हैं। यह लेख लाडली मीडिया फ़ेलोशिप, 2023 के तहत लिखा गया है। व्यक्त की गई सभी राय और विचार लेखक के अपने हैं। लाडली और यूएनएफपीए आवश्यक रूप से विचारों का समर्थन नहीं करते हैं।)
टाइगर झींगा से बने स्वादिष्ट व्यंजन शहरों के बड़े-बड़े रेस्तरां में काफी ऊँचे दामों में मिलते हैं।
लेकिन उनकी कीमत अक्सर चंदना मोंडोल जैसी महिलाओं द्वारा चुकाई गई वास्तविक कीमत को छिपा देती है। वह और उसके जैसी कई महिलाएँ खारे पानी में कमर तक खड़े होकर बगदा या झींगा के सीडलिंग इकट्ठा करने में घंटों बिताती हैं। इस काम की वजह से उन्हें त्वचा के संक्रमण से लेकर प्रजनन संबंधी कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
इन महिलाओं को मीनधरा या झींगा के सीडलिंग इकट्ठा करने वालों के रूप में जाना जाता है। वो इन्हें झींगा की ख़ेती करने वाले बिचौलियों को बेचती हैं।
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चांदना ने अपनी हथेलियों से बेरँग हो चुकी त्वचा को छीलते हुए गाँव कनेक्शन को बताया, "नून जल थेके होये (यह खारे पानी के कारण हुआ है)।"
47 साल की चांदना को एक्जिमा है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें त्वचा में सूजन आ जाती है और खुजली होने लगती है। उसमें दरारें पड़ने लग जाती है और त्वचा खुरदरी हो जाती है।
13 साल की उम्र में अपनी शादी के बाद से चांदना भारतीय सुंदरबन क्षेत्र में अपने गाँव सोनगर के पास बिद्याधारी नदी के खारे पानी में हर दिन कई घंटे बिताती हैं। यह इलाका भारत में टाइगर झींगा का सबसे बड़ा उत्पादक माना जाता है।
बंगाल की खाड़ी में गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के संगम पर स्थित ज्वारीय क्षेत्र, पश्चिम बंगाल के सुंदरवन के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली सबसे गरीब महिलाएँ झींगा के सीडलिंग इकट्ठा करके अपना जीवन यापन करती हैं। अनुमान है कि नदियों से झींगा के सीडलिंग इकट्ठा करना सुंदरबन के मुहाने के डेल्टा पर एक लाख से अधिक गरीब महिलाओं के लिए आजीविका का ख़तरनाक लेकिन एक महत्वपूर्ण जरिया है।
कड़ी मेहनत के बाद ये महिलाएँ सीडलिंग इकट्ठा करती है। लेकिन महज 200 रुपयों में 1000 सीडलिंग को स्थानीय बिचौलियों को बेचा जाता है। ये बिचौलिए कैनिंग और दक्षिण 24 परगना ज़िले के अन्य हिस्सों में बेहरिया या बड़े कृत्रिम बाड़ों में झींगा की ख़ेती करते हैं।
बेहरियों में बगदा की ख़ेती यानी मछलियों का पालन-पोषण तीन महीने से अधिक समय तक करने के बाद वयस्क झींगा को थोक बाज़ारों में बेचा जाता है और फिर निर्यात बाज़ार में ले जाया जाता है।
पश्चिम बंगाल भारत में टाइगर झींगा का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो 51,000 हेक्टेयर क्षेत्र से 50,000 टन का उत्पादन करता है। लेकिन, मीनधराओं को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है, जिन्हें अपने काम के कारण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
चांदना ने कहा, “मेरी हथेली में खुजली होती रहती है। मुझे अपने पैरों, पेट और पीठ में भी खुजली महसूस होती है। मैं नहाने के लिए घर जाती हूँ और दिन भर अपने शरीर से चिपकी रहने वाली गीली साड़ी को बदलकर दूसरी साड़ी पहन लेती हूँ।'' उन्होंने बताया कि वह इलाज के लिए हर महीने 500 रुपये खर्च कर देती हैं। जबकि उनकी मासिक आय 2,000 रुपये से अधिक नहीं है।
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उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरे पति हर साल कुछ महीनों के लिए आंध्र प्रदेश चले जाते हैं। लेकिन हम अपने जीने के लिए उसके पैसे पर निर्भर नहीं हैं। यह इस मीन (मछली) का पैसा है जो हमें जिंदा बनाए रखता है और हमारी भूख मिटाता है।"
चांदना के गाँव का सबसे नज़दीकी अस्पताल गोसाबा ग्रामीण अस्पताल है। सबसे छोटे रास्ते से जाने पर भी इसकी दूरी सात किलोमीटर है। वहीं नाव से वहाँ पहुँचने में एक घंटे से ज़्यादा का समय लगता है।
ग्रामीण अस्पताल में जनरल ड्यूटी मेडिकल ऑफिसर सागरिका सरदार ने कहा, "साफ-सफाई के मामले में यहाँ की स्थिति काफी ख़राब है। यहाँ रहने वाली महिलाओं में यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन बहुत आम है। और जिस खारे पानी में वे खड़ी होकर काम करती हैं उससे ये और बढ़ जाता है।"
इसके अलावा उन्हें और भी कई स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हैं। कोलकाता में स्त्री रोग और प्रसूति रोग विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. इंद्रनील साहा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "ये महिलाएँ (मीन धरा) कूल्हे तक खारे पानी में भीगी खड़ी रहती हैं और अक्सर अपने पैर की उँगलियों, नाखूनों और जाँघों के बीच में फंगल संक्रमण से पीड़ित हो जाती हैं।"
अपनी माँ की तरह चंदना की 33 वर्षीय बेटी देविका बर्मन भी मीनधरा हैं। दस साल की उम्र से वह ये काम कर रही है।
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देविका ने कहा, “मैं काम से एक दिन की भी छुट्टी नहीं लेती हूँ, यहाँ तक कि जब मुझे पीरियड्स होते हैं तब भी नहीं। एक दिन भी गायब रहने का मतलब है एक दिन की मज़दूरी खोना।'' उन्होंने आगे कहा, “खारा पानी जलन और दर्द का कारण बनता है। मैं दवा लेने के लिए हर महीने गाँव के डॉक्टर (नीम-हकीम) के पास जाती हूँ। लेकिन इसका पूरी तरह से इलाज नहीं हो पाता और संक्रमण बार-बार लौट आता है।''
दर्द निवारक दवाएँ इन महिलाओं को उनके बेहद मुश्किल भरे काम से होने वाले दर्द से निपटने में मदद करती हैं। देविका ने कहा, “मैं लगभग हर दिन एक दर्द निवारक दवा लेती हूँ। मीन मछली पकड़ने के लिए अपनी ताकत को बनाए रखने का यही एकमात्र तरीका है। मेरे गाँव में डॉक्टर मुझे कुछ ऐसा देते हैं जिससे जोड़ों का दर्द दूर हो जाता है। लेकिन कुछ समय बाद दर्द फिर से शुरू हो जाता है और मुझे दूसरी गोली खानी पड़ती है।''
डॉ. इंद्रनील साहा के अनुसार, लंबे समय तक खारे पानी में खड़े रहने और मछली पकड़ने से वेजाइनल इंफेक्शन हो सकता है। उन्होंने कहा, "सही स्वास्थ्य देखभाल के अभाव में, ये महिलाएँ झोलाछाप डॉक्टरों से रेंडम एंटीबायोटिक या एंटी फंगल लेती हैं और फिर ये दवाएँ उन पर असर करना बंद कर देती हैं।"
उन्होंने बताया “इस स्थिति में अगर वे संबंध बनाती हैं, तो उन्हें यौन संचारित रोग होने की भी संभावना है। बार-बार होने वाले संक्रमण से कभी-कभी बांझपन हो सकता है।''
टाइगर झींगा सीडलिंग इकट्ठा करने वालों की सेहत
सर्वे में गिनाई गई 67 बीमारियों के एक उपसमूह में इन स्वास्थ्य समस्याओं को रखा गया था। अनियमित मासिक धर्म, नज़र से जुड़ी समस्याएँ , गैस्ट्रिक दर्द, हाथ, पैर और घुटनों में दर्द, त्वचा की एलर्जी और खुजली जैसी समस्याएँ इसमें शामिल थी।
2022 के अध्ययन में इस बात पर ध्यान दिया गया कि झींगा सीडलिंग इकट्ठा करना ही इन महिलाओं के लिए आमदनी का एक ज़रिया है। इसकी वजह उनका इस जगह से कभी बाहर न जाना और निम्न शिक्षा स्तर है।
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चांदना के सोनागर गाँव से दो घंटे की नौका सवारी की दूरी पर बाली द्वीप है। बाली ग्राम पंचायत में रहने वाली कुमला सरकार ने 2007 में सुंदर बन के गहरे मैंग्रोव जंगलों में छोटी सी नहर से मछली पकड़ते समय एक बाघ के हमले में अपने दोस्त को खो दिया था। बावज़ूद इसके वह मींधरा बनी हुई है।
66 साल की कुमला ने कहा, “जब मैंने बगदा पकड़ना शुरू किया तो मेरी अंदरूनी जांघों में भयानक खुजली होने लगी। पानी में खड़ा होना भी आसान नहीं था। मैंने देखा कि मेरी त्वचा सूखने लगी और छिलने लगी।''
परेशानी बस इतनी भर नहीं थी। समय के साथ कुमला की नज़र भी कमजोर हो गई। इसकी वजह से उनकी गंदे पानी में भूरे बालों जैसे बारीक सीडलिंग को देखने की क्षमता कम हो गई।
कुमाला ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरी आँखों में पानी आने लगा और दर्द बढ़ने लगा। आखिरकार मुझे उन्हें पकड़ना बंद करना पड़ा।''
जब कुमला ने शुरुआत की थी, तो उन्हें प्रति बगदा एक रुपये मिलता था, लेकिन जैसे-जैसे माँग घटती गई, कीमत भी कम होती गई। 1,000 सीडलिंग पर अब सिर्फ 200 रुपये मिलते हैं। उन्हें इस पेशे से बाहर हुए पाँच साल से अधिक समय हो गया है। उसकी आँखों के बारे में अब क्या कहा जाए। वह न तो चश्मा पहनती है और न ही उनके पास इलाज कराने के लिए पैसे हैं।
खराब स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचा
गोसाबा ग्रामीण अस्पताल ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले नौ द्वीपों की आबादी की सेहत की देख-रेख करता है। यहाँ पाँच डॉक्टर हैं और रोज़ाना 150 से 180 मरीज आते हैं। हालाँकि, अस्पताल में यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन की पुष्टि करने के लिए किसी तरह की जाँच की कोई सुविधा मौजूद नहीं है।
गोसाबा ग्रामीण अस्पताल में जनरल ड्यूटी मेडिकल ऑफिसर सुमित खान ने कहा, “लगातार खारे पानी के संपर्क में रहने के कारण मछुआरों महिलाओं में वेजाइनल इन्फेक्शन आम हो सकता है। आसपास के सभी द्वीपों के निवासियों के लिए यह एकमात्र अस्पताल है। जैसा कि मुझे याद है, सर्वाइकल कैंसर के पाँच मामले सामने आए थे, जिन्हें कैनिंग रेफर किया गया था।”
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बाली द्वीप पर, 2022 में एक ग्रामीण अस्पताल खोला गया था लेकिन वहाँ लोग मुश्किल से ही आते हैं। बाली की निवासी यशोदा डार ने कहा, “हम उस अस्पताल में नहीं जाते। डॉक्टर वहाँ कभी-कभार ही आते हैं। यह सिर्फ बुखार, टीकाकरण और दवाओं के मामले में सहायक है। ”
लेकिन कुछ राहत देने के लिए प्रसन्नजीत मंडल की ओर से सुंदरबन फाउंडेशन के दायरे में एक गैर-लाभकारी स्वास्थ्य सुविधा चलाई जा रही है। यह अस्पताल 2016 में बाली द्वीप में खोला गया था।
उन्होंने सुंदरबन के द्वीपों में ग्रामीणों को टेलीमेडिसिन सहायता के लिए योग्य डॉक्टरों का एक नेटवर्क बनाया है।
प्रसनजीत ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं मरीजों को उनके लक्षण बताते हुए एक वीडियो बनाता हूँ और इसे इन डॉक्टरों के साथ बनाए गए व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा करता हूँ। संबंधित डॉक्टर मरीज को देखता है और उपचार का सुझाव देता है। जब तक कुछ गंभीर न हो, हम इसे अपने स्तर पर संभालने में सक्षम हैं।”
लेकिन, कई गरीब मीनधराओं के पास आभासी परामर्श के लिए न तो समय है और न ही स्मार्टफोन।
(यह दो भाग वाली सीरीज का दूसरा भाग है। आप पहला भाग यहाँ पढ़ सकते हैं। यह लेख लाडली मीडिया फ़ेलोशिप, 2023 के तहत लिखा गया है। व्यक्त की गई सभी राय और विचार लेखक के अपने हैं। लाडली और यूएनएफपीए आवश्यक रूप से विचारों का समर्थन नहीं करते हैं।)