झुग्गी-झोपड‍़ी में पले-बढ़े इस आदमी ने गरीब बच्चों के लिए छोड़ी नौकरी, खोला मॉडल स्कूल

Neetu Singh | Sep 07, 2017, 20:38 IST |
झुग्गी-झोपड‍़ी में पले-बढ़े इस आदमी ने गरीब बच्चों के लिए छोड़ी नौकरी
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। झुग्गी-झोपड़ियों में बचपन गुजारने वाला ये शख्स आज मलिन बस्तियों के बच्चों का भविष्य संवार रहा हैं। ‘हर बच्चा स्कूल जाए और उसे पेट भर खाना मिले’ इस उद्देश्य के साथ एक व्यक्ति पिछले 12 वर्षों से झुग्गी-झोपड़ियों में काम कर रहा है।

“मेरा बचपन एक मलिन बस्ती में गुजरा है, कभी पल्ली की झोपड़ी में तो कभी मन्दिर में रात गुजारते थे। हर दिन पेट भर खाना मिल जाए ये हमारे लिए बड़ी बात होती थी। मै हमेशा से सोचता था, जब मैं पढ़ लिख जाऊंगा तो यहां के बच्चों का बचपन खत्म नहीं होने दूंगा।” ये कहना है कानपुर जूही परमपुरवा मलिन बस्ती में रहने वाले धर्मेन्द्र कुमार सिंह (40 वर्ष) का। एमएससी की पढ़ाई पूरी करने के बाद अच्छी नौकरी मिल गयी पर मन हमेशा अपनी बस्ती में रहा। 2001 में अपनी नौकरी छोड़ अपनी बस्ती के बच्चों के लिए वापस आ गये।

इन्होंने 12 वर्षों में हजारों बच्चों को न सिर्फ स्कूल तक पहुंचाया बल्कि उन्हें पेट भर भोजन मिले ये भी सुनिश्चित कराया। धर्मेन्द्र ने पूरे जिले के झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों के लिए एक मॉडल स्कूल अपनी बस्ती परमपुरवा में खोला है, जिसमे टैबलेट और एलईडी की मदद से पढ़ाई होती है। इस तरह का ये पहला स्कूल है। स्कूल की फीस भी बहुत न्यूनतम है और जो बच्चे फीस देने में सक्षम नहीं हैं उन्हें निशुल्क शिक्षा दी जा रही है। धर्मेन्द्र की संस्था से अब तक 10 हजार से ज्यादा बच्चे पढ़ चुके हैं।



इन बस्ती के बच्चों को धर्मेन्द्र समय-समय पर देते हैं इनकी जरूरत की चीजें धर्मेन्द्र कुमार सिंह जूही परमपुरवा की मलिन बस्ती में जन्मे और गरीबी को बहुत नजदीकी से महसूस किया है। उन्हें पता है कैसे बच्चों का बचपन गरीबी छीन लेती है। इनका भी बचपन सभी बच्चों की तरह मुश्किलों भरा रहा। चार भाई बहनों में सबसे बड़े होने के की वजह से परिवार को इनसे बड़ी उम्मीदें थी कि ये पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करेंगे जिससे घर की गरीबी दूर होगी। लेकिन धर्मेन्द्र ने वही किया जो वो बचपन से करना चाहते थे। अपने बचपन का जिक्र करते हुए बताते हैं, “मैंने कभी अपने बचपन को जिया नहीं, पूरे दिन यहीं रहता था, पेटभर खाना मिलेगा या नहीं ये निश्चित नहीं होता था। टाट-पट्टी लेकर स्कूल जाता था। पिता जी की पान की छोटी सी दुकान से पूरे परिवार का खर्च चलता था, खाली समय में पापा की पान की दुकान पर बैठता था पन्द्रह सोलह साल की उम्र ऐसे ही गुजर गयी।”



मलिन बस्ती के बच्चों को खाना खिलाते धर्मेन्द्र झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को वक़्त से खाना मिल जाये और उनको उचित शिक्षा मिल जाए, यही इनके लिए बड़ी बात होती है। इन बस्तियों में बहुत ज्यादा संस्थाएं काम नहीं करतीं क्योंकि इनकी अपनी खुद की कोई पहचान नहीं होती है, जरूरी कागजात नहीं होते ऐसा धर्मेन्द्र का मानना है। धर्मेंन्द्र ने इन बस्तियों में काम करने के लिए जून 2004 में सम्राट अशोक मानव कल्याण एवम शिक्षा समिति (साहवेस) नाम की एक संस्था की नींव रखी। संस्था का मुख्य उद्देश्य मलिन बस्ती का हर बच्चा स्कूल जाए और कोई भी बच्चा भूखा न सोये, था। काम की शुरुआत इन्होंने अपनी बस्ती परमपुरवा से ही की। आज इस बस्ती का हर बच्चा पढ़ाई कर रहा है, आगे की पढ़ाई के लिए कई बच्चे दूसरे शहरों में चले गये। धर्मेन्द्र के इस काम में उनके पिता, पत्नी और दोस्तों का बहुत सहयोग रहा है जिसकी वजह से आज ये अपना सपना पूरा कर पा रहे हैं।



बेकार सामान को उपयोग करने योग्य बनाते हुए

इन बस्तियों में अब हो रहा बदलाव

कानपुर झकरकटी बस अड्डे के पीछे डलिया वालों की झुग्गी बस्ती में धर्मेन्द्र पिछले दस महीनों से काम कर रहे हैं। इस बस्ती में तीन तरह के लोग रहते हैं जिसमें मलिन बस्ती के कामगार, भिखारी समुदाय और रेलवे क्वाटर्स में रहने वाले सामान्य सरकारी कर्मचारी। एक समय था जब यहाँ के लोग एक दूसरे से बात नहीं करते थे, आपस में भेदभाव और अराजकता थी, भिक्षावृत्ति थी, छीना झपटी थी, छुआछूत था। जबसे धर्मेन्द्र ने ‘भिक्षा से शिक्षा की ओर’ और ‘चिल्ड्रेन रोटी बैंक अभियान’ शुरू किया तबसे यहाँ के बच्चे जो झोपड़ियों और डेरों में जाकर भीख मांगते थे आज वे खुद दूसरों को भंडारा करवा रहे हैं। धर्मेन्द्र के काम करने के बाद ये बस्ती सम्पन्न तो नहीं हो गयी पर इनमें बदलवाव जरूर हो रहा है।

बदलाव के लिए चलाते हैं ये अभियान

धर्मेन्द्र इन बस्तियों में काम करने के लिए कई अभियान चला रहे हैं, जिसमे ‘भिक्षा से शिक्षा की ओर, स्ट्रीट कोचिंग, चिल्ड्रेन रोटी बैंक, मोक्ष प्रमुख हैं। धर्मेन्द्र इन अभियानों के बारे में बताते हैं, “भिक्षा मांगने वाला हर बच्चा स्कूल जाए ये भिक्षा से शिक्षा की ओर चलने वाले अभियान का मुख्य उद्देश्य हैं। स्ट्रीट कोचिंग में गरीब बच्चों को निशुल्क दो घंटे प्रतिदिन पढ़ाया जाता है। चिल्ड्रेन रोटी बैंक में गरीब और भूखे बच्चों को खाना खिलाया जाता है, मोक्ष में कोई भी व्यक्ति अपने घर का पुराना समान दे सकता है जिसे टीम की मदद से काम का सामान बनाकर बच्चों में बाँट दिया जाता है।” वो आगे बताते हैं, “अब हमारे इस अभियान में शहर के कई लोग सहयोग कर रहे हैं, ये लोग अपना जन्मदिन, शादी की सालगिरह, पुण्यतिथि, जैसे खास दिनों को इन बच्चों को खाना खिलाकर मनाते हैं।”



Tags:
  • झुग्गी बस्ती
  • कानपुर
  • बदलता इंडिया
  • रोटी बैंक
  • free education
  • मलिन बस्ती
  • बेहतर शिक्षा
  • भिक्षामुक्त
  • मॉडल स्कूल
  • एलईडी
  • आधुनिक शिक्षा
  • slums living
  • badlata india

Previous Story
500 रुपए लेकर दिल्ली आई थीं कृष्णा यादव, आज हैं अचार फैक्ट्री की मालकिन, जीते कई अवार्ड

Contact
Recent Post/ Events