उत्तर प्रदेश: सीतापुर में कुछ लोग जानवरों के लिए बने फरिश्ते, घायल आवारा पशुओं का करते हैं इलाज

Ramji Mishra | Jul 01, 2022, 13:12 IST |
उत्तर प्रदेश: सीतापुर में कुछ लोग जानवरों के लिए बने फरिश्ते
उत्तर प्रदेश के ग्रामीण सीतापुर के पच्चीस युवा घायल आवारा पशुओं की हर संभव मदद करते हैं। गाँव वालों या सरकार की मदद के बगैर, ये लोग घायल जानवरों की चिकित्सा सहायता करने के लिए खुद के संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं।
महोली (सीतापुर), उत्तर प्रदेश। 29 जून को सुबह करीब दस बजे विकास शुक्ला को एक फोन आया जिसमें चिकित्सा सहायता की मदद मांगी गई थी। उन्होंने जगह नोट की, चंद और कॉल किए, अपना मेडिकल बॉक्स चेक किया और बाहर निकल गए।

26 वर्षीय के पास एसओएस कॉल 12 किलोमीटर दूर महोली तहसील, सीतापुर के गाँव बिहट गौर से आया था। जिस विकास वहां पहुंचे, वहां उनके कुछ साथी पहले से ही 6 गायों की देखरेख कर रहे थे, जिनमें से कुछ के पैरों और पेट पर घाव थे।


विकास शुक्ला और उनके साथी आवारा पशुओं और कुत्तों की चिकित्सा सहायता और देखरेख करते हैं। उनके पास पहला मामला 2017 में आया था, जब तपती दोपहर में शुक्ला के पास एक ग्रामीण का फोन आया, जिसमें उन्हें एक गाय के बारे में बताया गया, जिसने खेत में लगे कांटेदार तारों से अपनी खाल को जख्मी कर लिया था।


विकास शुक्ला ने गाँव कनेक्शन को बताया, "इलाका करीब चार किलोमीटर दूर था, मैंने घावों को साफ पानी से धोया और उस पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाई। उसके बाद मैंने घाव पर पट्टी बांध दी। कुछ दिनों के बाद, गाय पूरी तरह से ठीक हो गई।" पिछले पांच सालों में, शुक्ला और उनके साथियों ने बहुत से घायल जानवरों का इलाज किया है।

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उन्होंने आगे बताया, "जानवरों को दर्द में देखना कुछ ऐसा था जिसे मैं नजरअंदाज नहीं कर सकता था।" जब से उन्होंने अपने घर के पास जानवरों को प्राथमिक उपचार देने का फैसला किया है।


जानवरों की देखरेख की यात्रा शुक्ला ने अकेले शुरू की थी। लेकिन महोली के 25 दूसरे युवा भी स्वयंसेवक के रूप में जुड़े और मिशन का हिस्सा बन गए।


सीतापुर जिले के अलावा, उन्हें आसपास के जिले हरदोई और लखीमपुर खीरी से भी फोन आते हैं।


महोली निवासी मनमोहन मिश्रा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हम सभी को इन युवकों पर गर्व है। सरकार या प्रशासन जितना कर सकता था, उससे कहीं अधिक इन्होंने किया है।"


46 वर्षीय संतोष दीक्षित, एक स्कूल वैन ड्राइवर हैं, शुक्ला की टीम का हिस्सा हैं जो आवारा जानवरों को बचाता है और उनकी चिकित्सा सहायता करता है। दीक्षित ने बताया, "अक्सर रात में हमें लोगों की काल आती है। रात के अंधेरे में सड़कों पर नेविगेट करना और घायल जानवर ढूंढना मुश्किल हो जाता है। इसलिए, हम लोगों को घायल जानवर को सुरक्षित जगह पर बांधने के लिए कहते हैं ताकि वह इधर उधर ना भटक जाए।"


यूपी में बढ़ रही आवारा पशुओं की समस्या

2019 में हुए पशुधन जनगणना के अनुसार, 2012 से लेकर 2019 के बीच देश भर में आवारा मवेशियों की संख्या में 3.2 प्रतिशत की कमी आई है, हालांकि उत्तर प्रदेश में उनकी संख्या में 17.34 प्रतिशत की भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।


आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 1.18 मिलियन से अधिक आवारा मवेशी हैं।

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उन्होंने कहा,"योगी जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से आवारा मवेशियों की तादाद लगातार बढ़ रही है। आवारा जानवरों को ज्यादातर चोटें कांटेदार तारों की वजह से लगती हैं। कुछ मवेशियों को पीटा भी जाता है या फसलों की हिफाजत करते समय पत्थरों से मारा जाता है।"


शुक्ला ने बताया, "जानवरों के फ्रैक्चर होने पर भी सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। हम सरकारी पशु डॉक्टरों से संपर्क करने की कोशिश करते हैं, लेकिन आमतौर पर हम प्राइवेट डॉक्टरों से इलाज कराते हैं और इन जानवरों के इलाज के लिए अपनी जेब से पैसा खर्च करते हैं।"


अनुज कुमार सिंह, शुक्ला समूह के सदस्य हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया कि समूह ने पिछले पांच साल में हजारों आवारा पशुओं की जान बचाई है।


सिंह ने बताया, "यह सब सिर्फ एक काल से शुरू होता है। मुझे कभी कभी एक ही दिन में पांच पांच कॉल आती हैं। ग्रामीण हमें घायल जानवरों की जगह के बारे में बताते हैं, जिसके बाद हम संपर्क करने और जगह तक पहुंचने के लिए त्वरित ग्रुप फोन कॉल करते हैं।"

एक अन्य स्वयंसेवक हिमांशु त्रिवेदी ने गांव कनेक्शन को बताया कि कभी-कभी ग्रामीणों की तरफ से आने वाली एमरजेंसी कॉलों की संख्या एक दिन में 10 तक पहुंच जाती है।


स्थानीय फार्मेसी में काम करने वाले त्रिवेदी ने बताया, "लोग हमारे अच्छे काम के बारे में बात करते हैं और अधिकारियों को सूचित करने के बजाय घायल जानवर के बारे में हमें सूचित करना पसंद करते हैं। यह हमारे काम में उनके भरोसे को दर्शाता है।"

सिंह ने बताया कि अभी तक कोई भी दान करने वाला या ग्रामीण जानवरों को चिकित्सा सहायता प्रदान के लिए समूह की मदद करने के लिए आगे नहीं आया है।

उन्होंने बताया, "ये कभी कभी हमारे लिए समस्या भी पैदा कर देता है, क्योंकि हम सभी नौकरी पेशा नहीं हैं या कमाई अच्छी नहीं कर रहे हैं।"

उन्होंने बताया,"कभी-कभी, विकास को आधी रात के आसपास दूर-दराज के इलाकों में जाना पड़ता है। हम उसके लिए लगातार फिक्रमंद रहते हैं। हम किसानों के परिवार से हैं और हमारी लगभग सारी कमाई खेती से होती है। वह जो कुछ भी कर रहा है वह वास्तव में अच्छा कर रहा है लेकिन मुझे आश्चर्य है कि क्या यह है टिकाऊ।" विकास शुक्ला के पिता धर्मेंद्र शुक्ला ने गांव कनेक्शन को बताया, जबकि वह अपने बेटे का समर्थन कर रहे हैं और उसे पैसे भी दे रहे हैं, लेकिन वह चिंतित हैं। उन्होंने कहा, "लेकिन यह हमेशा नहीं चल सकता। उसे अपने काम को टिकाऊ बनाने की जरूरत है।"

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विकास शुक्ला की बहन पूजा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "अक्सर, वह जानवरों का इलाज करके देर रात घर लौटता हैं और बिना खाना खाए सो जाता है। मुझे उसके काम पर गर्व है लेकिन उसे अपनी सेहत का भी ध्यान रखना चाहिए।"


सरकार के सहयोग जरूरत

दीक्षित, जो समूह के सबसे बुजुर्ग सदस्य हैं, उन्होंने सरकार से सहायता की कमी के बारे में शिकायत की।

दीक्षित ने गांव कनेक्शन से बताया, "आवारा जानवरों की मदद के लिए हम जो कुछ भी कर सकते हैं हम करते हैं लेकिन सरकारी मशीनरी कभी हमारी मदद नहीं करती है। अगर सरकार हम को दवाएं या वित्तीय सहायता देती है तो हम अपना काम कहीं अधिक अच्छी तरह से कर पाएंगे।"

कभी कभी आसपास के जंगलों में भी जानवरों जैसे बंदरों और सांपों को भी मदद की सख्त जरूरत होती है। उन्होंने बताया, "लेकिन हम ऐसे जानवरों की मदद करने के लिए तैयार नहीं हैं। जब हम वन विभाग को फोन करते हैं तो कोई हमारा फोन तक नहीं उठाता।"

शुक्ला ने बताया, "घायल जानवरों की मदद करने के लिए शुरू किये गए इस साधारण कार्य को अब समाज में स्वीकार किया जा रहा है। हमारा ग्रूप हरदोई और लखीमपुर जिलों के कुछ सीमावर्ती इलाकों में काफी मशहूर हो गया है"

उन्होंने बताया, "ये युवा एक-दूसरे के बीच तालमेल बिठाते हैं और इससे जगह पर समय से पहुंचने में काफी मदद मिली है जो कभी-कभी जानवरों को बचाने में महत्वपूर्ण साबित होता है।"

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