शिक्षक दिवस पर विशेष : स्कूल में बेटे का मजाक उड़ाते थे, इसलिए डॉक्टरी छोड़ टीचर बनी माँ

Neetu Singh | Sep 05, 2017, 17:14 IST |
शिक्षक दिवस पर विशेष : स्कूल में बेटे का मजाक उड़ाते थे
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

आजाद नगर (कानपुर नगर)। डॉक्टरी कर वे खूब पैसे कमा सकती थीं, नाम आैर सोहरत कमा सकती थीं, लेकिन उन्होंने अपने मानसिक और शारीरिक रूप से अक्षम बच्चे के लिए अपना कैरियर तो छोड़ा ही, साथ ही कई आटिज्म बच्चों की परेशानी को देखते हुए उनके लिए ‘संकल्प स्कूल’ खोला ताकि उनकी उचित देखभाल हो सके।

“मेरे लिए वो एक मुश्किल दौर था, तब मुझे किसी एक का चुनाव करना था, अपना कैरियर या बेटे की परवरिश। उस समय बेटे को मेरे साथ की बहुत जरूरत थी, इसलिए मैंने अपना कैरियर छोड़ दिया और अपने बेटे जैसे सैकड़ों बच्चों के लिए एक स्कूल खोल दिया।” ये कहना है कानपुर शहर के आजाद नगर में रहने वालीं डॉ दीप्ती तिवारी (45 वर्ष) का । वर्ष 1995 में एमबीबीएस की डिग्री लेनी वालीं डॉ. दीप्ति खुश होकर बताती हैं, “मैं सफल डॉक्टर तो नहीं बन पाई पर एक अध्यापक जरूर बन गई हूं।”



भरत को खिलौने से मन बहलाती डॉ दीप्ति डॉ. दीप्ति की शादी वर्ष 1996 में हुई थी । शादी के दो साल बाद एक बेटे का जन्म हुआ । दीप्ति का कहना है, “बेटे के जन्म के कुछ महीने बाद ही हमें ये एहसास हो गया था, मेरे बेटे में कुछ कमी है। इलाज के लिए कानपुर, लखनऊ, दिल्ली, बेंगलुरु जैसे तमाम बड़े शहरों के चक्कर लगाये, पर उसकी स्तिथि में कोई सुधार नहीं हुआ ।”

थक हारकर दीप्ति ने मेडिकल की प्रैक्टिस छोड़ दी, आैर घर पर रहकर बेटे की देखरेख करने लगीं।दीप्ति का मन नहीं माना भरत का एक स्कूल में एडमिशन करा दिया। स्कूल में एडमिशन के बाद मुशिकलें आैर ज्यादा बढ़ गयीं।

दीप्ति का कहना है, “मेरा बेटा सामान्य बच्चों से अलग जरूर था, लेकिन वो लोगों के गलत व्यवहार को अच्छे से समझता था। स्कूल के बच्चे उसका मजाक बनाते थे, उसे चिढ़ाते थे, भरत अपना गुस्सा चिल्लाकर निकालता, तब मुझे लगा शायद सामान्य स्कूल में हमारा बच्चा नहीं पढ़ सकता है, आटिज्म बच्चे जिसमें पढ़ सकें ऐसे स्कूल की तलाश करने लगी। इसी दौरान हमारी मुलाकात वर्ष 2006 में डॉ आलोक वाजपेयी से हुई जो प्राणी हीलिंग मेडिटेशन कराते हैं ।” इनसे मिलने के बाद डॉ. दीप्ति ने खुद जनवरी 2007 में ‘संकल्प स्पेशल स्कूल’ खोला जिसमें 10 सालों में अब तक सैकड़ों बच्चे पढ़ चुके हैं और अभी भी भरत जैसे 50 बच्चे पढ़ रहे हैं।



भरत के खिलौने हैं मनपसंद संकल्प स्कूल में बच्चे सुबह 10 बजे से ढाई बजे तक रहतें हैं। स्कूल में 8 टीचर हैं, एक टीचर आठ बच्चों की देखरेख करते हैं। शुरुआत में प्रति बच्चे 1200 रुपए जमा करवाए जाते हैं जो माता-पिता फीस देने में सक्षम नहीं है उनसे फीस नहीं ली जाती है, जो जितना दे देता है, उतना ही ले लिया जाता है। इस स्कूल में पांच साल से 28 साल तक के बच्चे अभी पढ़ रहे हैं ।

डॉ. दीप्ति का कहना है, “हमारी पहली कोशिश रहती है स्कूल में बच्चों को ऐसा माहौल मिले जिससे वो खुश रह सकें, बच्चों पर किसी तरह का कोई जोर दबाव नहीं डाला जाता है, यहाँ पर आये बच्चे कुछ समय बाद आपस में घुल मिल जाते हैं, खेल-खेल में पढ़ना लिखना तो सीखते ही है साथ ही रंगमंच पर नाटक भी करते हैं ।”

वो अपने 19 वर्षीय बेटे भरत का अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “मेरे बेटे को खिलौने से बहुत प्यार है, हर हफ्ते शुक्रवार को एक खिलौना लेकर हमे आना होता है, भरत पहले मेरे साथ ही ज्यादा वक़्त बिताता था लेकिन अब वो सबके साथ बात करके घुल मिल जाता है, पहले से ज्यादा खुश रहता है ये सब देखकर मुझे आत्मसंतुष्टि मिलती है।”



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