विद्यालय प्रबंध समितियां अच्छा काम करें तो सुधर सकती है सरकारी स्कूलों की तस्वीर

Shrinkhala Pandey | Jan 24, 2018, 15:51 IST |
विद्यालय प्रबंध समितियां अच्छा काम करें तो सुधर सकती है सरकारी स्कूलों की तस्वीर
प्राथमिक विद्यालय करनपुर में पहले कोई भी अध्यापक समय पर नहीं पहुंचता था और न ही पढ़ाई होती थी लेकिन जब से विद्यालय प्रबंध समितियों ने अपनी जिम्मेदारी समझी और स्कूलों में जाना शुरू किया वहां की तस्वीर बदल गई।

प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 35 किमी दूर करनपुर की रहने वाली गीता (35) पढ़ी लिखी नहीं थीं लेकिन जब उन्हें विद्यालय प्रबंध समिति (एसएमसी) का अध्यक्ष बनाया गया तो उन्होनें अपने अधिकारों को समझा और स्कूल की अव्यवस्थाओं को दूर करने में लग गईं।

गीता बताती हैं, ''मेरे तीन बच्चे इसी स्कूल में पढ़ते हैं और हमारे जैसे बहुत से दलित महिलाएं हैं जो चाहती हैं कि उनके बच्चे पढ़लिखकर आगे बढ़ें। पहले स्कूल के अध्यापक लोग बराबर में नहीं बैठने देते थे क्योंकि हम दलित थे लेकिन जब हमें एसएमसी में चुना गया तो हम स्कूल जाने लगे और मास्टरों से कहा कि बच्चों को घर के लिए भी काम दें, स्कूल रोज स्कूल समय पर आएं।

गीता खुद तो पढ़ी लिखी नहीं हैं लेकिन पढ़ाई के महत्व को भलीभांति समझती हैं इसलिए वो विद्यालय की हर मीटिंग में जाती हैं। विद्यालय प्रबंध समितियों का गठन शिक्षा व्यवस्था का सुधारने के लिए किया गया है,इसमें 15 लोगों को चयनित किया जाता है।

देशभर में शैक्षिक गणना करने वाली संस्था राष्ट्रीय शैक्षिक प्रबंधन सूचना प्रणाली डीआईएसई की रिपोर्ट 2014-15 के अनुसार उत्तर प्रदेश में प्राइमरी स्कूलों की संख्या 1,53,220 है और माध्यमिक स्कूलों की संख्या 31,624 है। इन सभी स्कूलों में एक-एक समिति होती है।

''विद्यालय प्रबंध समिति में 11 सदस्य ऐसे होते हैं जिनके बच्चे स्कूल में पढ़ते हों, इसके अलावा एक लेखपाल, एनएएम, प्रधान या उसके द्वारा चयनित कोई व्यक्ति होते हैं, हेडमास्टर इसका सचिव होता है। इनका काम स्कूल की मासिक बैठकों में सम्मिलित होना और विद्यालय के लिए दी गई धनराशि को खर्च करना होता है।” बारांबकी प्राथमिक विद्यालय गुलहेरिया के प्रधानाध्यापक सुशील कुमार बताते हैं। इनका चयन दो साल के लिए किया जाता है उसके बाद समिति का दोबारा गठन होता है।

गोण्डा जिला मुख्यालय से लगभग 45 किमी दूर उत्तर दिशा में प्राथमिक विद्यालय माधवपुर में मिड डे मील अच्छा बनता है और बच्चों की उपस्थिति भी ज्यादा रहती है क्योंकि विद्यालय प्रबंधन समिति समय समय पर इसका पूरा ब्यौरा रखती है। समिति की अध्यक्ष रीता देवी (40वर्ष) बताती हैं, ''हमारे बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं तो हमें तो ध्यान देना ही चाहिए। इतनी सरकारी योजनाएं हैं बच्चों के लिए किताबें, ड्रेस सभी लेकिन अगर हम लोग जागरूक नहीं होगें तो ऐसे ही हमारे बच्चे गंदा खाना खाएंगें और स्कूलों में झाड़ू लगाते रहेगें।”

विद्यालय प्रबंध समितियां अगर अपने दायित्वों को समझें और स्कूलों पर ध्यान दें तो उनकी तस्वीर बदल सकती है। गीता बताती हैं, ''हम लोगों के बच्चे पढ़ते हैं तो हमें ज्यादा अच्छे से पता होता है कि हमारे बच्चों को पढ़ाया जा रहा है या नहीं लेकिन ज्यादातर स्कूलों में समितियां केवल नाम के लिए होती हैं इसलिए स्कूल अपनी मनमानी करते हैं।”

प्राथमिक विद्यालय करनपुर में अब बच्चों को रोज गृहकार्य दिया जाता है, टीचर समय पर स्कूल आते हैं लेकिन कुछ बुनियादी समस्याएं जैसे साफ पानी की कमी, मिड डे मील की गुणवत्ता में कमी, शौचालय में सफाई न होना है, जिसके लिए गीता प्रयास कर रही हैं।

विद्यालय प्रबंध समितियों के बारे में लखनऊ जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीणमणि त्रिपाठी बताते हैं, ''ये समितियां स्कूलों का पूरा प्रबंधन देखती हैं, अभिवावकों के होने से ये फायदा रहता है कि वो स्कूल का अच्छा करेंगें क्योंकि उनके खुद के बच्चे पढ़ते हैं। हालांकि अशिक्षा के कारण ज्यादातर अभिवावक मीटिंगों में नहीं आते और अपने दायित्वों को नहीं समझते।”

वो आगे बताते हैं, ''परिषदीय स्कूलों में शिक्षा की व्यवस्था को सुधारा जा सकता है अगर समितियां आगे आएं और अपने अधिकारों को समझें।”





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  • education system

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