मजबूरी में शुरु किया था डेयरी का काम, आज हैं जिले के सबसे बड़े दूध उत्पादक

गाँव कनेक्शन | Sep 23, 2017, 20:50 IST |
मजबूरी में शुरु किया था डेयरी का काम
डॉ. प्रभाकर सिंह, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

चित्रकूट। सूखे से जूझ रहा बुंदेलखंड में रोजगार की बड़ी समस्या है। सूखी धरती में खेती मुश्किल है तो दूसरे रोजगार न होने के चलते युवा पलायन करते हैं। चित्रकूट के गाँवों से भी हजारों युवा पलायन कर चुके हैं लेकिन कई युवा ऐसे भी हैं युवा हैं जो दूसरे ग्रामीणों के लिए भी प्रेरणा बन रहे हैं।

चित्रकूट ज़िला मुख्यालय से लगभग 46 किमी. दूर मऊ ब्लॉक के पटपरहा गाँव के किसान ज्ञानेन्द्र सिंह (42 वर्ष) 12वीं की पढ़ाई के बाद सेना में जाना चाहते थे। दो-तीन बार कोशिश भी की, लेकिन नौकरी न लग पायी। तब उन्होंने भैंस का दूध बेचना शुरू कर दिया। साथ ही कुछ दिनों गाँव के दूसरे पशुपालकों के घर से भी दूध ले जाकर बेचने लगे।



नौकरी न मिलने पर मैंने दूध का काम शुरू कर दिया। पहले कम दूध होता था, लेकिन फिर गाँव के दूसरे पशुपालकों से भी दूध लेने लगा और दो सौ लीटर दूध इकट्ठा होने लगा। उसे साइकिल पर लादकर पराग डेयरी तक ले जाता था।
ज्ञानेन्द्र सिंह, पशुपालक

समय के साथ ज्ञानेन्द्र को देखकर दूसरे पशुपालकों को लगा कि हमें भी पराग में दूध देना चाहिए। तब उन्होंने तीन और भी साथियों को जोड़ा और 700 लीटर दूध पराग में पहुंचाने लगे।

पराग डेयरी ने इनकी मेहनत देखकर इनके यहां केन्द्र बना दिया। इसमें बर्फ, कूलर, जनरेटर, पानी की व्यवस्था, कम्प्यूटर इत्यादि की व्यवस्था हो गयी। इससे दूध स्टोर करने में सरलता हो गयी, जिससे उत्साहित होकर ज्ञानेन्द्र सिंह ने सैकड़ों युवाओं को जोड़ा और 2800 लीटर तक दूध पराग डेयरी मुख्यालय में जाने लगा। ज्ञानेन्द्र 15 वर्षों से यह काम कर रहे हैं। यहीं नहीं अन्य लोगों को भी गाँव से पलायन करने से रोकते हैं और गाँव में ही रोजगार करने के लिए प्रेरित करते हैं।

मिला सम्मान

ज्ञानेन्द्र को उत्तर प्रदेश सरकार ने गोकुल पुरस्कार से भी सम्मानित किया है। ज्ञानेन्द्र बताते हैं, "पुरस्कार मिलने से हमसे और भी लोग जुड़ गए हैं, इस समय हम पराग डेयरी के साथ ही कई प्राइवेट डेयरी को भी दूध दे रहे हैं। उन्हें देखकर कई युवा पशुपालन करने लगे हैं।

वीडियो, देखिए एक सफल डेयरी कारोबारी की कहानी



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