गांव कनेक्शन विशेष : इन 6 भिखारियों की आप बीती सुनकर आप की सोच बदल जाएगी
 Neetu Singh |  Sep 15, 2017, 20:17 IST | 
 गांव कनेक्शन विशेष : इन 6 भिखारियों की आप बीती सुनकर आप की सोच बदल जाएगी
भिखारियों के साथ आम तौर पर हम आप कैसा व्यवहार करते हैं, चल भाग, दूर हट। कभी बहुत दया आ गई तो दूर से पैसे दे दिए, या खाना खिला दिया। लेकिन लंबे बाल, फटे और मैले कुचैले कपड़ों के पीछे जो आदमी होता है वो हमारे आप जैसा ही होता। वो भिखारी क्यों बनें, ये सवाल कुछ से पूछ लेंगे तो आप की सोच बदल जाएगी, गांव कनेक्शन की विशेष सीरीज में पढ़िए-
लखनऊ। कोई अपनी दिल की मरीज बेटी का इलाज कराते-कराते सब कुछ गंवा दिया, बेटी नहीं बची और जमीन भी बिक गई, मजबूरी में वो भिखारी बन गया। रेलवे स्टेशन के बाहर मैले-कुचेले कपड़े पहने बैठा था, उसे कुष्ट रोग हो गया था, परिवार वालों ने घर से निकाल दिया। इन सब में एक वो भी था जो नौकरी करने शहर आया था, ताकि परिवार को अच्छी जिंदगी दे सके, यहां हालात ने हाथ में कटोरा पकड़ा दिया।
लखनऊ के सैकड़ों भिखारियों की जिंदगी बदलने में जुटे एक शख्स की मेहनत की बदौलत बहुत से भिखारी अब हाथ नहीं फैलाते वो अपने हाथों से काम कर पेट भरते हैं। गांव कनेक्शन ऐसे 6 भिखारी रहे लोगों की जिंदगी से आपको रुबरु करा रहा है।
35 साल मांगी भीख मांगने वाले हाथ अब रिक्शा चलाते हैं..
अपना रिक्शा दिखाते हुए वो आगे कहते हैं, “दिनभर मेहनत करके डेढ़ दो सौ रुपए कमा लेता हूँ, अपनी मेहनत की कमाई से जो खाता हूँ उसमे सुकून मिलता है, पहले खाने के लिए घंटों लाइन में खड़े होकर धक्के खाना पड़ता था। भीख माँगना छोड़ना तो चाहते थे पर कभी किसी ने रास्ता नहीं दिखाया, पिछले एक साल से इन भैया की सलाह से रिक्शा चला रहे हैं अब अपनी कमाई का खाते हैं मन को बहुत संतोष मिलता है।” विजय बहादुर की तरह ऐसे कई भिक्षुकों का यही कहना है कि वो भीख माँगना तो छोड़ना चाहते हैं पर दो वक़्त मजदूरी करके उनका पेट भर जाएगा ये कौन जिम्मेदारी लेगा।
गाजीपुर जिले के नरेन्द्र देव यादव कुष्ठ रोग की वजह से बन गये भिखारी
कुष्ठ रोग तो घरवालों ने भगा दिया, भीख मांगना नरेंद्र की मजबूरी बन गई थी
नरेंद्र देव यादव काफी देर तक अपने चेहरे को दोनों घुटनों में छुपाए रखते हैं फिर काफी कुरेदने पर मायूसी के साथ बताते हैं, “मुझे अपनी इस जिन्दगी से घुटन होती है पर मजबूरी में पेट भरने के लिए सर नीचे झुकाकर हाथ फैलाना पड़ता है।”
इतना बताते-बताते उनका आंखे डबडबा आती हैं, “ अगर मुझे कोई काम करने को मिल जाये तो मै अभी से भीख मांगना छोड़ दूँ, शरीर साथ नहीं देता है कि हर दिन मजदूरी कर पाऊं, भीख मांगकर पैसे इकट्ठा नहीं करता हूँ अब तो सिर्फ पेट भरने के लिए ही मांगता हूँ।” वो आगे बताते हैं। कुष्ठ रोग होने की वजह से नरेन्द्र के हाथ-पैर बहुत ज्यादा नहीं चलते हैं। आसपास के लोगों के मुताबिक नरेंद्र पिछले कई वर्षों से सदमे में रहते हैं।
मनोज कुमार राजधानी आये थे नौकरी करने, काम नहीं मिला तो बन गये भिखारी
ये पेट जो न कराए वो कम है
मनोज की आँखों में आंसू थे, “उसी दौरान शरद भैया मिले तबतक मै बहुत कमजोर हो चुका था, ये भैया मुझे अस्पताल ले गये कई जांचे हुई तब पता चला मुझे टीबी है, हर दिन अस्पताल में दवा खानी थी, मजदूरी करने की क्षमता नहीं थी, महीनों भीख मांगकर पेट भरा।” मनोज पहले से अब ठीक हो गये हैं, अब ये मजदूरी करने जाते हैं। मनोज आज ‘भिक्षावृत्ति मुक्त अभियान’ के सक्रिय सदस्य बन गये हैं। जो दिनभर तो मजदूरी करते हैं पर शाम को भीख मांग रहे लोगों को काम करने के लिए प्रेरित करते हैं।
श्रवण सिंह को दूसरों की मदद करने की है आदत
दूसरों की मदद करते और पानी का पाउच बेचते हैं श्रवण सिंह
श्रवण के माता-पिता का देहांत 11 साल की उम्र में हो गया था। ये तीन बहने और दो भाई हैं, बहन की ससुराल में इन्हें काम बहुत करना पड़ता था इसलिए 13 साल की उम्र में वहां से भागकर लखनऊ आ गये। श्रवण कहते हैं, “आज से 15-20 साल पहले जब मजदूरी करते थे तो मालिक सम्मान देते थे। अब तो अगर होटलों पर काम करने जाओ तो बहुत बुरा हाल है।”
श्रवण होटल पर काम करने को लेकर अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, “होटल पर दिन भर काम करता था तब पेटभर खाना खा पाता था। कई बार वो गाली देकर बात करते थे, कभी-कभी मालिकों का हाथ भी उठ जाता था, मै इन सबसे परेशान हो गया था, मेरे कुछ दोस्तों ने सलाह दी इससे अच्छा भीख मांगने लगो, तभी से मै भीख मांगने लगा।”
श्रवण का मानना है जब कोई एक बार भीख मांगने लगता है तो ये आदत में शामिल हो जाता है। श्रवण बात करते हुए एक बात बार-बार दोहरा रहे थे, “मुझे दूसरों की मदद करना बहुत अच्छा लगता है, शरद भैया को देखकर मुझे अपने अच्छे काम करने में मदद मिली है, भैया ने मुझे 500 रुपए देकर पानी के पाउच बेचने की सलाह दी, अब मै भीख नहीं मांगता हूँ, पाउच गर्मियों में ही बेच पाता हूँ बाकी के समय मजदूरी करता हूँ। अभी भी कई बार ऐसा होता है जब काम नहीं मिलता है तो मजबूरी में मन्दिर में जाकर मांगकर खाना खाना पड़ता है, भीख में पैसे तो नहीं मांगते हैं।”
रोहित सक्सेना बेटी की इलाज के कर्ज से आ गये थे लखनऊ, रोजगार न मिला तो मन्दिर मांगकर खाना पड़ा खाना
बेटी की इलाज में बिक गयी जमीन, कर्जदारों से जान बचाने के लिए बन गए भिखारी
जिन्दगी में सबकुछ अच्छा चल रहा था, पर बेटी की इलाज में आज हम फुठपाथ पर सो रहे हैं, इलाज में सब कुछ गंवा दिया पर उसे बचा नहीं सके। हमेशा मेहनत की है तब खाया है, अब तो फुटपाथ पर जब सोते हैं तो पुलिस की लाठियां खाते हैं
“जिन्दगी में सबकुछ अच्छा चल रहा था, पर बेटी की इलाज में आज हम फुठपाथ पर सो रहे हैं, इलाज में सब कुछ गंवा दिया पर उसे बचा नहीं सके। हमेशा मेहनत की है तब खाया है, अब तो फुटपाथ पर जब सोते हैं तो पुलिस की लाठियां खाते हैं। जब कई दिनो तक काम नहीं मिला तो मजबूरी में मन्दिर में सर झुकाकर खाना खाकर आ जाते थे, और घंटों एकांत में बैठे रहते थे।” ये बताते हुए रोहित की आवाज़ लड़खड़ा रही थी और आँखों में आंसू थे, “मन्दिर के आस-पास लगी दुकानों से धीरे-धीरे व्यवहार बनाया और एक फूल की दुकान पर काम करने लगे, मन्दिर और दुकान पर आते-जाते लोगों को देखता रहता था उनसे बात करता था जिससे मुझे कहीं अच्छा काम मिल सके।”
रोहित के मिलनसार स्वभाव से एक सज्जन व्यक्ति ने इन्हें पानी के प्याऊ पर काम दे दिया। अब गर्मियों में ये प्याऊ पर काम करते हैं और सर्दियों में रैन बसेरा में काम करते हैं। जब इन्हें काम नहीं मिलता है तो जो पैसे जमा किये होते हैं उसी से खाना खाते हैं अब ये मन्दिर पर जाकर खाना खाने नहीं जाते हैं पर सोना इन्हें आज भी खुले सामने के नीचे सड़क पर ही पड़ता है।
मोहम्मद शरीफ आज भिखारियों के लिए उठा रहे आवाज़