घूस से तंग मिस्त्री ने पुराने इन्वर्टर और कबाड़ से बना दी पवनचक्की , आगे है यह योजना
 गाँव कनेक्शन |  Feb 17, 2018, 11:29 IST | 
 घूस से तंग मिस्त्री ने पुराने इन्वर्टर और कबाड़ से बना दी पवनचक्की
    तमिलनाडु के नमक्कल जिले के रासीपुरम तालुका में एक मैकेनिक हैं सी. एम. सुब्रमण्यम। अपने घर में बिजली का कनेक्शन लेने की जद्दोजहद ने उन्हें इतना थका दिया कि उन्होंने ठान लिया, अब बिजली तो मैं खुद पैदा करूंगा। उन्होंने एक सेकंड हैंड इन्वर्टर का जुगाड़ किया, हार्डवेयर की दुकान से लोहे की मोटी चादरें खरीदीं, कुछ तार वगैरह जुटा लिए। सुब्रमण्यम मैकेनिक तो थे ही, पवनचक्की के बारे में भी कुछ बेसिक जानकारी थी जहां फंसे उन्होंने वहां अपनी कल्पना का प्रयोग किया और घर की छत पर पवनचक्की बना डाली। यह कामचलाऊ विंड मिल कामयाब रही तो सुब्रमण्यम की तारीफें मीडिया के जरिए नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन को मिली और इस संस्था ने सुब्रमण्यम को सम्मानित भी किया। 
   
 जब गांव कनेक्शन ने सुब्रमण्यम से पूछा कि आपको इतनी मेहनत करने की क्या जरूरत थी तो उनका जवाब मिला, "बिजली विभाग के भ्रष्टाचार ने मुझे यह करने पर मजबूर किया।" ज्यादा पूछने पर उन्होंने बताया, "मेरा घर कहीं दूर दराज के इलाके में नहीं बल्कि हाईवे के एकदम करीब था उसके बाद भी बिजली विभाग ने मुझे बहुत चक्कर लगवाए। कनेक्शन के लिए जरूरी तेरह हजार रुपये जमा करने और महीनों की भागदौड़ के बाद भी जब कनेक्शन नहीं मिला तो समझ आया कि बिजली विभाग को और भी कुछ चाहिए था। पर मैं रिश्वत का एक पैसा भी देने को राजी नहीं था। मैं किसी दूसरे विकल्प के बारे में सोच ही रहा था कि अपने क्षेत्र में चलने वाली तेज हवा की तरफ मेरा ध्यान गया। मुझे लगा कि मैं अपने घर की छत पर विंडमिल बनाकर बिजली पैदा कर सकता हूं।" 
   
           
   
सुब्रमण्यम की तारीफ जब बिजली विभाग तक पहुंची तो बिना परेशानी 2010 में उन्हें थ्री फेज कनेक्शन मिल गया। इसके बाद उन्हें सरकारी संस्था नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने 2013 में नेशनल ग्रासरूट इनोवेशन अवॉर्ड से सम्मानित किया। सुब्रमण्यम ने अपनी इस कम लागत वाली पवनचक्की का पेंटेंट भी करा लिया है। फिलहाल वह अपने खेतों में सिंचाई के लिए एक और विंडमिल लगाना चाहते हैं लेकिन पैसों की कमी की वजह से इस पर काम नहीं कर पा रहे हैं। सुब्रमण्यम ने बताया, "मुझे सरकार की तरफ से कोई आर्थिक मदद नहीं दी गई, जबकि मेरे पास ऊर्जा संकट से निपटने के लिए बहुत से प्रोजेक्ट्स हैं। मैंने अपनी अधिकतर पूंजी इन्हीं तकनीकों को विकसित करने में गवां दी।"
   
           
   
सुब्रमण्यम के इस जज्बे को सलाम कि उन्होंने रिश्वत देने और व्यवस्था को कोसने की जगह खुद नया रास्ता बनाने में अपनी ऊर्जा लगाई।
   
- नम्रता सिंह, ट्रेनी जर्नलिस्ट
   
                             
मेरा घर कहीं दूर दराज के इलाके में नहीं बल्कि हाईवे के एकदम करीब था उसके बाद भी बिजली विभाग ने मुझे बहुत चक्कर लगवाए। कनेक्शन के लिए जरूरी तेरह हजार रुपये जमा करने और महीनों की भागदौड़ के बाद भी जब कनेक्शन नहीं मिला तो समझ आया कि बिजली विभाग को और भी कुछ चाहिए था। पर मैं रिश्वत का एक पैसा भी देने को राजी नहीं था।
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   बस इसके बाद सुब्रमण्यम ने जरूरी चीजें जुटानी शुरू कर दीं और 2009 में कम लागत वाली विंडमिल बना ली। विंडमिल बनाने में उनके करीब 70 हजार रूपये खर्च हुए। इस विंडमिल से इतनी बिजली पैदा हो जाती है कि घर में दो ट्यूब लाइट, एक पंखा और मोबाइल चार्जर आराम से चल जाते हैं। जब तेज हवा हो तो 20 से 30 वोल्ट बिजली पैदा होती है जो गाड़ियों में लगने वाली 3 बैटरियों में स्टोर हो जाती है। सुब्रमण्यम की यह विंडमिल काफी टिकाऊ है, पिछले 9 बरसों से बिना किसी खराबी या मरम्मत के बिना रुके चल रही है।   
सुब्रमण्यम की तारीफ जब बिजली विभाग तक पहुंची तो बिना परेशानी 2010 में उन्हें थ्री फेज कनेक्शन मिल गया। इसके बाद उन्हें सरकारी संस्था नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने 2013 में नेशनल ग्रासरूट इनोवेशन अवॉर्ड से सम्मानित किया। सुब्रमण्यम ने अपनी इस कम लागत वाली पवनचक्की का पेंटेंट भी करा लिया है। फिलहाल वह अपने खेतों में सिंचाई के लिए एक और विंडमिल लगाना चाहते हैं लेकिन पैसों की कमी की वजह से इस पर काम नहीं कर पा रहे हैं। सुब्रमण्यम ने बताया, "मुझे सरकार की तरफ से कोई आर्थिक मदद नहीं दी गई, जबकि मेरे पास ऊर्जा संकट से निपटने के लिए बहुत से प्रोजेक्ट्स हैं। मैंने अपनी अधिकतर पूंजी इन्हीं तकनीकों को विकसित करने में गवां दी।"
   सुब्रमण्यम उन लोगों की मदद करने को तैयार हैं जो इसी तरह की पवनचक्की अपने घर या खेतों के लिए लगाना चाहते हैं। सुब्रमण्यम का मॉडल परंपरागत पवनचक्की से काफी सस्ता है। एक परंपरागत पवनचक्की लगाने में लगभग ढाई लाख रुपये का खर्च आता है, जबकि सुब्रमण्यम इसे 70 हजार रुपयों में बनाने का दावा करते हैं। सुब्रमण्यम कहते हैं कि यह एक बार का निवेश है, इसके बाद इसमें कोई खास खर्चा नहीं आता।   
सुब्रमण्यम के इस जज्बे को सलाम कि उन्होंने रिश्वत देने और व्यवस्था को कोसने की जगह खुद नया रास्ता बनाने में अपनी ऊर्जा लगाई।
- नम्रता सिंह, ट्रेनी जर्नलिस्ट