लहसुन भंडारण के समय आप भी तो नहीं करते हैं यही गलतियां

गाँव कनेक्शन | Apr 27, 2023, 12:25 IST |
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लहसुन भंडारण के समय आप भी तो नहीं करते हैं यही गलतियां
इस समय ज्यादातर किसानों ने लहसुन की हार्वेस्टिंग कर ली है, या अभी अगले कुछ दिनों में करने वाले हैं। ऐसे में किसानों के मन में ये सवाल उठता है कि कैसे लहसुन का भंडारण करें, जिससे लंबे समय तक इसे सुरक्षित रख सकते हैं।
देश के एक बड़े हिस्से में लहसुन की खेती होती है, इसके साथ ही बहुत से लोग अपने किचन गार्डेन में लहसुन की खेती करते हैं। इससे साल भर लहुसन मिलता रहता है, लेकिन सही तरीके से लहसुन का भंडारण न किया गया तो खराब भी हो सकता है।

राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान और विकास फाउंडेशन (NHRDF) के देवरिया केंद्र के विशेषज्ञ विनोद कुमार सिंह लहसुन के भंडारण की सही जानकारी दे रहे हैं।

लहसुन के पोस्ट हार्वेस्टिंग में दो चीजों का ध्यान देना चाहिए, हार्वेस्टिंग के पहले पहचानना जरूरी है कि लहसुन तैयार हो गया है कि नहीं। अगर पौधों में ऊपर गांठ बन रही है तो समझिए कि लहसुन हार्वेस्टिंग के लिए तैयार है।

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ये तो बात हो गई कि लहसुन तैयार हो गया की नहीं, अब ध्यान देना है कि किस तरह से लहसुन का भंडारण करना चाहिए। लहसुन की हार्वेस्टिंग के बाद इसका बंडल बना लेते हैं और इन्हें रखते समय ये ध्यान देते हैं कि एक बंडल के ऊपर दूसरा बंडल ऐसे रखते हैं कि लहसुन के बल्ब एक के ऊपर एक न आए, बल्कि एक-दूसरे के विपरीत अवस्था में बंडल रहना चाहिए।

ऐसे ही एक-दूसरे के विपरीत आप छह फीट तक लहसुन का बंडल रख सकते हैं। बस ध्यान दें कि लहसुन एक-दूसरे को छू न पाए, क्यों अभी भी इसमें नमी होती है, जिससे ब्लैक फंगस नाम की बीमारी हो सकती है।

इसी तरह अगर चाहें तो एक गोल घेरे में भी इसे रख सकते हैं। बस बल्ब को बाहर तरफ रखेंगे।

हार्वेस्टिंग के समय मे किसान बन्धुओं को ध्यान देना है कि 10 से 15 दिन पहले सिंचाई रोक देनी चाहिए। अगर ज्यादा हरापन है तो एक मैलिक हाइड्राजाइड का स्प्रे 20 दिन पहले कर देना है, इससे जो पौधों कि वृद्धि तो रुक जाएगी, लेकिन लहसुन के बल्ब में वृद्धि हो जाएगी।

लहसुन की हार्वेस्टिंग के बाद इसे कम से कम 15 दिनों तक सुखाना चाहिए, अगर इसे मार्केट ले जाना चाहते हैं तो इसके पौधों को ऊपर के भाग को काट देंगे, नीचे की जड़ को नहीं डिस्टर्ब करेंगे। बस ऊपर से काटकर पैक करके आप आराम से इसे बाजार ले जा सकते हैं।

साभार: डॉ दया शंकर श्रीवास्तव, प्रभारी, कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया, सीतापुर, उत्तर प्रदेश

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