भारत के लिए ख़ास क्यों है टूटे चावल से कूटनीतिक रिश्तों को पकाना

Gaon Connection | Nov 27, 2023, 12:41 IST |
भारत के लिए ख़ास क्यों है टूटे चावल से कूटनीतिक रिश्तों को पकाना
ज़रूरतमंद देशों में अनाज भेजना भारत के लिए नई बात नहीं है, समय समय पर दान के अलावा गेहूँ, चावल का निर्यात भी करता रहा है; लेकिन पिछले साल घरेलू बाज़ार में कीमतों को स्थिर करने के लिए टूटे चावल पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, बावजूद इसके सरकार ने अब सिंगापुर, नेपाल, मलेशिया और फिलीपींस सहित नौ प्रमुख एशियाई और अफ्रीकी देशों को 2.77 मिलियन टन (एमटी) गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात को मंज़ूरी दे दी है; इससे किसानों को भी फायदा होगा।
भारत से चावल मिलने की ख़बर उन देशों के लिए बेशक अच्छी है जो अपनी खाद्यान्न जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत पर निर्भर है, लेकिन चावल उत्पादक भी कम खुश नहीं हैं।

माली को 100,000 टन टूटे हुए चावल के निर्यात की हरी झंडी दिए जाने के संकेत हैं।

भारतीय खाद्य निगम के मुताबिक जिस चावल का 3/4 हिस्सा टूटा है या बीच से आधा टूटा है उसे भी टूटा चावल कहा जाता है। इसके अलावा 1/4 हिस्से में टूटे चावल को छोटा टूटा चावल कहा जाता है।

ऐसा पहली बार नहीं है कि भारत की तरफ से माली को टूटे हुए चावल की आपूर्ति की उम्मीद है; इससे पहले, पश्चिम अफ्रीकी देश को निर्यात करने के लिए कुछ मात्रा को मंज़ूरी दी गई थी। हाल ही में, केंद्र सरकार ने भूटान को करीब 50,000 टन टूटे हुए चावल के निर्यात को मंज़ूरी दी।

इसी तरह सिंगापुर, नेपाल, मलेशिया और फिलीपींस सहित नौ प्रमुख एशियाई और अफ्रीकी देशों को 2.77 मिलियन टन (एमटी) गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात को भी मंज़ूरी दी गई।

टूटे चावल पर इसलिए लगा था प्रतिबंध

भारत सरकार की तरफ से इस चावल के निर्यात पर प्रतिबंध की बड़ी वजह थी। पिछले साल घरेलू बाज़ार में चावल की कीमत स्थिर नहीं थी , जिसका असर चावल उत्पादक और खरीददार दोनों पर पड़ रहा था। हालाँकि चावल के बड़े उत्पादक जो पंजाब और हरियाणा में हैं उनका कहना था कि निर्यात पर प्रतिबंध से पहले उनकी राय नहीं ली गई।

सरकार का कहना था कि मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिए सितंबर 2022 और जुलाई 2023 में टूटी हुई किस्म और गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध करना पड़ा।

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हालाँकि भारत एशिया और पश्चिम अफ्रीकी देशों में अपने रणनीतिक भागीदारों को चावल की आपूर्ति कर रहा है। चावल का निर्यात सरकार-से-सरकार स्तर पर हो रहा है और इन्हें राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड की तरफ से सुविधा दी जा रही है, जो एक सरकारी निर्यात निकाय है, जिसे बहु-राज्य सहकारी समितियों (एमएससीएस) के तहत स्थापित किया गया था।


टूटे हुए चावल के निर्यात के मामले में सरकार ने मई में अपनी खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए अन्य देशों को शिपमेंट के लिए टूटे हुए चावल के निर्यात की इजाज़त दी थी।

खाद्य और कृषि संगठन के सभी चावल मूल्य सूचकांक का औसत अक्टूबर में 138.9 अंक था, जो सितंबर के स्तर से 2 प्रतिशत कम है। लेकिन वित्तीय वर्ष 2002 और 2023 के बीच चावल के निर्यात की बात करें तो 2.6 एमएमटी से दस गुना बढ़कर वो 21.8 एमएमटी हो गया, जिससे भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश बन गया जो 55.6 मिलियन टन वैश्विक चावल व्यापार में 40 फीसदी हिस्सेदारी रखता है।

टूटे हुए चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के बावजूद, भारत ने अप्रैल से अक्टूबर के दौरान 498,000 टन का निर्यात किया, जबकि पिछले साल की इसी अवधि में यह 24 लाख टन था। जानकारों का कहना है कि पूरी तरह प्रतिबंध से बेहतर है बाज़ार को देखते हुए हम फैसला लें, जो वैश्विक बाज़ार के साथ-साथ भारत के व्यापार पर भी दूरगामी प्रभाव छोड़ता है।

भारत के चावल की दुनिया के कई देशों में काफ़ी माँग है, खासकर बासमती चावल की।

भारत में बासमती चावल की खेती

भारत में करीब 20 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बासमती चावल की खेती होती है और दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।

47 फीसदी में पूसा बासमती 1121 किस्म की खेती की जाती है। चावल के इस किस्म की काफ़ी डिमांड हैं। इसके अलावा देश के 53 फीसदी हिस्सों में 44 किस्मों के चावल की खेती होती है।

ख़ास बात ये हैं कि देश के 7 राज्यों को बासमती चावल का जीआई टैग (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन्स) भी मिला हुआ है। इनमें हरियाणा,पंजाब ,उत्तराखंड,दिल्ली और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश के 30 जिले और जम्मू कश्मीर के 3 जिलों को भी ये टैग मिला है। हालाँकि इसके उत्पादन के मामले में पंजाब सबसे आगे हैं।

यहाँ देश के कुल बासमती चावल का 44 फीसदी उत्पादन होता है।

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