मेघालय की इस हल्दी ने बदली गाँव वालों की किस्मत, मिला जी आई टैग

Gaon Connection | Dec 06, 2023, 11:15 IST |
मेघालय की इस हल्दी ने बदली गाँव वालों की किस्मत
मेघालय की हल्दी अब ख़ास हो गई है, उसे भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग दे दिया गया है; इसका सबसे ज़्यादा फायदा जैंतिया हिल्स के लाकाडोंग क्षेत्र के किसानों को होगा जहाँ ये सबसे ज़्यादा होती है।
लाकाडोंग की हल्दी को सबसे अच्छी हल्दी माना जाता है, सिर्फ अपने देश में नहीं, विदेशों में भी। जीआई टैग मिलने के बाद अब यहाँ के लोगों को इस बात की ख़ुशी है कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उनकी हल्दी की अपनी अलग पहचान होगी, कोई लाकाडोंग के नाम पर दूसरी हल्दी नहीं बेच पाएगा।

मेघालय के कृषि मंत्री अम्पारीन लिंगदोह के मुताबिक लाकाडोंग हल्दी के साथ-साथ गारो डाकमांडा (पारंपरिक पोशाक), लारनाई मिट्टी के बर्तन और गारो चुबिची (मादक पेय) को भी जीआई टैग से सम्मानित किया गया है।

क्यों ख़ास है लाकाडोंग की हल्दी

लाकाडोंग की हल्दी को विश्व स्तर का मानने के पीछे वजह है। इसमें करक्यूमिन सामग्री 6.8 से 7.5 प्रतिशत तक होती है। उर्वरकों के इस्तेमाल के बिना जैविक रूप से उगाए जाने पर इसका रंग गहरा होता है। मौज़ूदा समय में लाकाडोंग क्षेत्र के 43 गाँवों के करीब 14,000 किसान 1,753 हेक्टेयर खेत में इस हल्दी की खेती कर रहे हैं।

लाकाडोंग हल्दी को जीआई टैग मिलने से इसके किसानों को अब मार्केटिंग में मदद मिलेगी। ज़ाहिर है जीआई टैग मिलने से खरीददारों को भी अच्छा सामान मिल सकेगा।

करी से लेकर दाल, सब्जी और काढ़ा तक, हल्दी कई जगह खाने में डाली जाती है। ये न सिर्फ सूजन को कम कर सकती है, अंदरूनी चोटों को भी ठीक कर देती है; सर्दियों के मौसम में शरीर को फ्लू से बचाने में कमाल की है। इसे सुनहरा मसाला भी कहा जाता है, हल्दी को आयुर्वेद में कई सदियों पुराने उपचारों में पाया जा सकता है।

369605-meghalaya-lakadong-turmeric-gets-geographical-indication-tag-gi-tag-2

लाकाडोंग की तरह ही केरल के अलेप्पी की भी बाज़ार में माँग रहती है। अलेप्पी केरल का एक छोटा सा खूबसूरत शहर है जो प्राकृतिक सुँदरता के साथ साथ हल्दी उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है।


एलेप्पी हल्दी में हालाँकि 5 फीसदी करक्यूमिन होता है और इसका इस्तेमाल कई घरेलू उपचार और आयुर्वेदिक दवाएँ बनाने के लिए किया जाता है।

दक्षिण भारतीय हल्दी की एक किस्म मद्रास की भी आती है। इसका रंग हल्का पीला होता है और इसमें लगभग 3.5 प्रतिशत करक्यूमिन होता है।

Also Read: हल्दी किसानों की आमदनी बढ़ाने में मददगार बनेगा हल्दी बोर्ड
ऐसे ही तमिलनाडु की इरोड हल्दी है , इसे मार्च 2019 में जीआई टैग दिया गया था। इरोड एक छोटा सा शहर है जो करीब तीन से चार प्रतिशत करक्यूमिन के साथ हल्दी का उत्पादन करता है। इसके अलावा सांगली हल्दी, निजामाबाद हल्दी भी है।


सांगली हल्दी को भी अपनी अलग पहचान और खूबी के लिए साल 2018 में जीआई टैग मिला। इसकी खेती महाराष्ट्र के सांगली में होती है और राज्य के हल्दी उत्पादन में इसका योगदान 70 फीसदी से ज़्यादा है। सांगली हल्दी का रंग गहरा नारंगी होता है और इसका इस्तेमाल ज़्यादातर दवा के लिए किया जाता है।

बाहरी देशों में भारतीय हल्दी की धाक

भारतीय हल्दी की धाक दूसरे देशों में भी खूब है। हल्दी के विश्व बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी 62 फीसदी से ज़्यादा है। साल 2022-23 के दौरान करीब 380 से अधिक निर्यातकों ने 207.45 मिलियन अमरीकी डालर कीमत की 1.534 लाख टन हल्दी और हल्दी उत्पादों का निर्यात किया। भारत से जिन देशों में हल्दी का निर्यात होता है उनमें अमेरिका,मॉरीशस, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात और मलेशिया शामिल हैं। हालही में हल्दी बोर्ड के गठन के बाद उम्मीद की जा रही है कि हल्दी का निर्यात 2030 तक 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।

भारत सरकार ने 4 अक्टूबर को राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड के गठन को अधिसूचित किया था। राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड देश में हल्दी और हल्दी उत्पादों के विकास और वृद्धि पर ध्यान देगा।

देश के कई राज्यों में किसान हल्दी की खेती करते हैं, लेकिन कई बार उन्हें उत्पादन का सही दाम नहीं मिल पाता है, ऐसे में उन किसानों को हल्दी बोर्ड की मदद और जीआईआई टैग आमदनी बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।

Also Read: बीजों को लंबे समय तक सुरक्षित रखती है हल्दी, विशेषज्ञ से जानिए कैसे करते हैं इस्तेमाल
Tags:
  • turmeric
  • Meghalaya

Previous Story
Uttar Pradesh: Fresh Trouble For Paddy Farmers As Rain Damages Ripened Crop

Contact
Recent Post/ Events