सरकारी योजनाओं की लचर व्यवस्था ने नंदुरबार के आदिवासी मछुआरों की परेशानियां बढ़ायी
Gaon Connection | Apr 21, 2023, 08:16 IST
सरकारी योजनाओं की लचर व्यवस्था ने नंदुरबार के आदिवासी मछुआरों की परेशानियां बढ़ायी
Highlight of the story: इन लोगों ने सरदार सरोवर बांध के लिए अपनी जमीन खो दी और अब उत्तरी महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल जिले नंदुरबार के भील आदिवासी मछुआरे बांध के जलाशय में मछली उत्पादन में गिरावट से जूझ रहे हैं। मछुआरों की आजीविका बढ़ाने के लिए केज फिश फार्मिंग की शुरूआत के बावजूद, उनकी मुश्किलें कम नहीं हो रहीं हैं।
मणिवेली (नंदुरबार), महाराष्ट्र। महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले के मणिवेली गाँव में सरदार सरोवर बांध के जलाशय के पास रहने वाले मछुआरों के लिए यह समय मुश्किल भरा है। अरविंद तडवी बताते हैं कि पूरे एक हफ्ते तक मछली पकड़ने के बाद उन्हें महज 300 रुपये का फायदा हुआ है। उनकी आवाज में गहरी निराशा थी।
"इतना पैसा तो मैं अपनी नाव के ईंधन पर खर्च कर देता हूं। अक्सर, बांध के जलाशय के चक्कर लगाने में एक सप्ताह से ज्यादा का समय लग जाता है और फिर भी खाली हाथ लौटना पड़ता है, "भील आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले 40 साल के मछुआरे ने गाँव कनेक्शन को अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा।
ठीक इसी तरह की शिकायत आदिवासी समुदाय के एक अन्य भील मछुआरे रायसिंह वासवे ने भी की। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "अगर ऐसा ही चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब हमें पूरी तरह से मछली पकड़ना बंद करना पड़ेगा।"
सरदार सरोवर बांध के जलाशय के पास रहने वाले मछुआरों के लिए यह समय मुश्किल भरा है
मणिवेली गाँव इस परेशानी से जूझने वाला अकेला गाँव नहीं है। इस इलाके के 19 अन्य गाँव भी ठीक इसी तरह की समस्या का सामना कर रहे हैं। ये वो गाँव हैं जो बांध के जलाशय के अगल-बगल में बसे हैं। यह जलाशय 88,000 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। मछुआरों ने गाँव कनेक्शन को बताया कि 2020 के बाद से मछली पकड़ने की मात्रा में लगातार गिरावट आई है।
नंदुरबार में कुछ समय से मछलियों की ढुलाई भी चिंता का कारण बनी हुई है।
मणिवेली के एक मछुआरे जय सिंह से जब मछली पकड़ने में आई गिरावट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “तीन साल पहले तक, एक सप्ताह में आसानी से 60 किलो मछली पकड़ना एक आम बात थी। लेकिन आज पकड़ी गई मछलियां छह किलो भी नहीं होती है।"
इस समस्या को हल करने के लिए 2017 में लगभग 100 मछुआरों के साथ एक ‘नर्मदा नवनिर्माण सतपुड़ा सरदार सरोवर जलसहाय मछली व्यवसायी सहकारी मर्यादित संघ धड़गाँव अकर्णी’ नामक एक संघ का गठन किया गया था। इसमें इस इलाके के कई गाँवों की 20 समितियां शामिल थीं।
ये वो गाँव हैं जो बांध के जलाशय के अगल-बगल में बसे हैं। यह जलाशय 88,000 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है।
इस संघ का उद्देश्य मछुआरों को सरदार सरोवर बांध के जलाशय में केज (पिंजरा) मछली पालन करने में सक्षम बनाना था क्योंकि जलाशय की गहराई इतनी नहीं थी कि यहां फिशनेट के जरिए सतही मछलियों को पकड़ा जा सके। मछुआरों ने कहा कि समान गहराई के समान जल निकायों में प्राकृतिक रूप से मछली पकड़ने के विपरीत इतने गहरे पानी में मछली पालना मुश्किल है।
केज एक्वाकल्चर मीठे पानी की मछली के उत्पादन की बात करता है। इसमें मछलियों को एक तार या फाइबर नेट से बने फ्लोटिंग फ्रेम वाले पिंजरों में एक सीमित क्षेत्र में पाला जाता है। लेकिन, इस सबके बावजूद नंदुरबार के आदिवासी मछुआरों की समस्याओं का समाधान आज भी कोसों दूर है।
मछुआरा संघ के सचिव सियाराम पदवी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमने 2017 में केज मछली पालन शुरू किया था। हमें राज्य सरकार के मत्स्य विभाग से पिंजरा और मछली के बीज खरीदने के लिए पैसा भी मिला।" उनके अनुसार, हालांकि उन्हें सरकार से सौ फीसदी सब्सिडी मिली थी, लेकिन उन्हें मछली की के लिए बाजार खोजने और ढुलाई के लिए परिवहन की व्यवस्था के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
पड़वी ने कहा कि 20 गाँवों के 82 सदस्य-मछुआरों ने मछली पालन के लिए 240 पिंजरे खरीदे थे।
उसी साल 2017 में, हर मछुआरे से समिति की सदस्यता शुल्क के तौर पर 2,000 रुपये लिए गए थे। लेकिन तब सरकार के कल्याण अनुदान से पैसा मिलने के बाद उनसे लिया गया ये शुल्क वापस कर दिया गया था।
मणिवेली के एक नाराज मछुआरे जयसिंह वसावे ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमें पैसे तो वापस मिल गए। लेकिन आज तक हमारी आजीविका में कोई सुधार ही नहीं हुआ है। आखिर इस यूनियन का क्या फायदा है। मेरी समझ से ये बाहर है।"
मणिवेली फिशिंग केज कमेटी के सचिव दिनेश वसावे ने गाँव कनेक्शन को बताया कि सरकार की ओर से दिए गए 1,800,000 रुपये में से एक हिस्से का इस्तेमाल 2019-20 में मछुआरों को पैसे वापस करने के लिए किया गया था।
कमेटी के सचिव ने कहा, “रिफंड के अलावा, हमने 2021 में मछली के बीज और मछली का चारा खरीदने पर भी कुछ पैसा खर्च किया। लेकिन खरीदे गए 75,000 मछली बीजों में से लगभग आधे जलाशय में ऑक्सीजन की कमी के कारण मर गए। फिलहाल हमारे पास फिर से मछली के बीज खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। अगर हमें और फंड नहीं मिला तो हमारे लिए काम करना जारी रखना मुश्किल हो जाएगा।' उनके मुताबिक, सरकार की तरफ से दी गई एक जीप और दो मोटर बोट भी बेकार पड़ी हैं।
मणिवेली फिशिंग केज कमेटी के सचिव ने स्वीकार किया कि खर्च किए जा रहे पैसे का सही रिकॉर्ड बनाए रखने में समस्या रही है।
उन्होंने कहा, " हमने पैसा कहां खर्च किया इसका कोई उचित रिकॉर्ड नहीं हैं। इसलिए हम खर्च किए गए पैसे का सटीक विवरण नहीं दे सकते हैं।"
धुले स्थित मत्स्य विभाग में सहायक आयुक्त किरण पडवी ने कहा कि समितियों का कुप्रबंधन मछुआरों के विकास में एक बड़ी रुकावट है।
पड़वी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ये 20 समितियां जो इस मछुआरा संघ का हिस्सा हैं, पूरी तरह से अव्यवस्थित हैं। मछुआरों को लाभ पहुंचाने के सरकार की तरफ से किए गए प्रयासों के लिए समितियों का कुप्रबंधन उल्टा रहा है।"
मछुआरों ने गाँव कनेक्शन को बताया कि 2020 के बाद से मछली पकड़ने की मात्रा में लगातार गिरावट आई है।
उन्होंने कहा, "रिकॉर्ड कीपिंग खराब है, सरकार की तरफ से दी गई मशीनरी की स्थिति पर रिपोर्ट मौजूद नहीं है। इसके अलावा हमें समितियों द्वारा अपने मुनाफे पर कोई रिपोर्ट नहीं दी जाती है।"
हालांकि, अभी भी कुछ मछुआरों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है।
चिमलखेड़ी गाँव में रहने वाले नूरजी भाई ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमने पिछले साल अपने गाँव में 20 पिंजरों लगाए थे। और इस साल हम कुल 6,000,000 रुपये के मुनाफे की उम्मीद कर रहे हैं।"
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"इतना पैसा तो मैं अपनी नाव के ईंधन पर खर्च कर देता हूं। अक्सर, बांध के जलाशय के चक्कर लगाने में एक सप्ताह से ज्यादा का समय लग जाता है और फिर भी खाली हाथ लौटना पड़ता है, "भील आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले 40 साल के मछुआरे ने गाँव कनेक्शन को अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा।
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ठीक इसी तरह की शिकायत आदिवासी समुदाय के एक अन्य भील मछुआरे रायसिंह वासवे ने भी की। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "अगर ऐसा ही चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब हमें पूरी तरह से मछली पकड़ना बंद करना पड़ेगा।"
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मणिवेली गाँव इस परेशानी से जूझने वाला अकेला गाँव नहीं है। इस इलाके के 19 अन्य गाँव भी ठीक इसी तरह की समस्या का सामना कर रहे हैं। ये वो गाँव हैं जो बांध के जलाशय के अगल-बगल में बसे हैं। यह जलाशय 88,000 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। मछुआरों ने गाँव कनेक्शन को बताया कि 2020 के बाद से मछली पकड़ने की मात्रा में लगातार गिरावट आई है।
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नंदुरबार में कुछ समय से मछलियों की ढुलाई भी चिंता का कारण बनी हुई है।
मणिवेली के एक मछुआरे जय सिंह से जब मछली पकड़ने में आई गिरावट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “तीन साल पहले तक, एक सप्ताह में आसानी से 60 किलो मछली पकड़ना एक आम बात थी। लेकिन आज पकड़ी गई मछलियां छह किलो भी नहीं होती है।"
इस समस्या को हल करने के लिए 2017 में लगभग 100 मछुआरों के साथ एक ‘नर्मदा नवनिर्माण सतपुड़ा सरदार सरोवर जलसहाय मछली व्यवसायी सहकारी मर्यादित संघ धड़गाँव अकर्णी’ नामक एक संघ का गठन किया गया था। इसमें इस इलाके के कई गाँवों की 20 समितियां शामिल थीं।
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इस संघ का उद्देश्य मछुआरों को सरदार सरोवर बांध के जलाशय में केज (पिंजरा) मछली पालन करने में सक्षम बनाना था क्योंकि जलाशय की गहराई इतनी नहीं थी कि यहां फिशनेट के जरिए सतही मछलियों को पकड़ा जा सके। मछुआरों ने कहा कि समान गहराई के समान जल निकायों में प्राकृतिक रूप से मछली पकड़ने के विपरीत इतने गहरे पानी में मछली पालना मुश्किल है।
केज एक्वाकल्चर मीठे पानी की मछली के उत्पादन की बात करता है। इसमें मछलियों को एक तार या फाइबर नेट से बने फ्लोटिंग फ्रेम वाले पिंजरों में एक सीमित क्षेत्र में पाला जाता है। लेकिन, इस सबके बावजूद नंदुरबार के आदिवासी मछुआरों की समस्याओं का समाधान आज भी कोसों दूर है।
मछुआरा संघ के सचिव सियाराम पदवी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमने 2017 में केज मछली पालन शुरू किया था। हमें राज्य सरकार के मत्स्य विभाग से पिंजरा और मछली के बीज खरीदने के लिए पैसा भी मिला।" उनके अनुसार, हालांकि उन्हें सरकार से सौ फीसदी सब्सिडी मिली थी, लेकिन उन्हें मछली की के लिए बाजार खोजने और ढुलाई के लिए परिवहन की व्यवस्था के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
पड़वी ने कहा कि 20 गाँवों के 82 सदस्य-मछुआरों ने मछली पालन के लिए 240 पिंजरे खरीदे थे।
एक-दूसरे पर आरोप
मणिवेली के एक नाराज मछुआरे जयसिंह वसावे ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमें पैसे तो वापस मिल गए। लेकिन आज तक हमारी आजीविका में कोई सुधार ही नहीं हुआ है। आखिर इस यूनियन का क्या फायदा है। मेरी समझ से ये बाहर है।"
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मणिवेली फिशिंग केज कमेटी के सचिव दिनेश वसावे ने गाँव कनेक्शन को बताया कि सरकार की ओर से दिए गए 1,800,000 रुपये में से एक हिस्से का इस्तेमाल 2019-20 में मछुआरों को पैसे वापस करने के लिए किया गया था।
कमेटी के सचिव ने कहा, “रिफंड के अलावा, हमने 2021 में मछली के बीज और मछली का चारा खरीदने पर भी कुछ पैसा खर्च किया। लेकिन खरीदे गए 75,000 मछली बीजों में से लगभग आधे जलाशय में ऑक्सीजन की कमी के कारण मर गए। फिलहाल हमारे पास फिर से मछली के बीज खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। अगर हमें और फंड नहीं मिला तो हमारे लिए काम करना जारी रखना मुश्किल हो जाएगा।' उनके मुताबिक, सरकार की तरफ से दी गई एक जीप और दो मोटर बोट भी बेकार पड़ी हैं।
मणिवेली फिशिंग केज कमेटी के सचिव ने स्वीकार किया कि खर्च किए जा रहे पैसे का सही रिकॉर्ड बनाए रखने में समस्या रही है।
उन्होंने कहा, " हमने पैसा कहां खर्च किया इसका कोई उचित रिकॉर्ड नहीं हैं। इसलिए हम खर्च किए गए पैसे का सटीक विवरण नहीं दे सकते हैं।"
अधिकारियों ने 'अकुशल' समितियों को दोषी ठहराया
पड़वी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ये 20 समितियां जो इस मछुआरा संघ का हिस्सा हैं, पूरी तरह से अव्यवस्थित हैं। मछुआरों को लाभ पहुंचाने के सरकार की तरफ से किए गए प्रयासों के लिए समितियों का कुप्रबंधन उल्टा रहा है।"
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उन्होंने कहा, "रिकॉर्ड कीपिंग खराब है, सरकार की तरफ से दी गई मशीनरी की स्थिति पर रिपोर्ट मौजूद नहीं है। इसके अलावा हमें समितियों द्वारा अपने मुनाफे पर कोई रिपोर्ट नहीं दी जाती है।"
हालांकि, अभी भी कुछ मछुआरों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है।
चिमलखेड़ी गाँव में रहने वाले नूरजी भाई ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमने पिछले साल अपने गाँव में 20 पिंजरों लगाए थे। और इस साल हम कुल 6,000,000 रुपये के मुनाफे की उम्मीद कर रहे हैं।"