ओडिशा: मयूरभंज के आदिवासी मेहनत से महुआ इकट्ठा करते हैं, लेकिन फायदा बिचौलिए ले जाते हैं
Ashis Senapati | Apr 21, 2022, 09:01 IST
ओडिशा: मयूरभंज के आदिवासी मेहनत से महुआ इकट्ठा करते हैं
Highlight of the story: ओडिशा में आदिवासी समाज के लोगों के जीवन का एक अहम हिस्सा महुआ भी होता है। लेकिन बाजार तक उनकी सीधी पहुंच न होने के कारण आदिवासियों को मजबूरी में महुआ 25 से 30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिचौलियों को बेचना पड़ता है। वही बिचौलिये महुआ को शराब की दुकान पर दोगुने दाम में बेचते हैं।
मयूरभंज जिले का अनलकाटा गांव हर साल मार्च और अप्रैल के महीने में वीरान नज़र आता है। बूढ़े और बीमार लोगों को छोड़कर इस गांव के सभी लोग जिनमें उनके छोटे बच्चे भी शामिल हैं, सुबह सवेरे जंगल के लिए निकल जाते हैं और पूरा दिन महुआ चुनने में बिताते हैं। महुआ को स्थानीय भाषा में माहुली के नाम से जाना जाता है।
ओडिशा में आदिवासी समाज के लिए महुआ चुनना एक जरूरी काम है। अपनी रोजी रोटी के लिए इसकी शराब बना कर बेचते भी हैं। हालांकि, बाजार तक सीधी पहुंच नहीं होने के कारण, ये आदिवासी समुदाय बिचौलियों को औने-पौने दाम पर अपना महुआ बेच देते हैं।
57 वर्षीय महुआ चुनने वाली रंग लता मुंडा ने गांव कनेक्शन को बताया, "मंडी हमारे घर से दूर है, हमारे जैसे ग्रामीणों के लिए कोई सुविधा नहीं है। मुझे नहीं लगता कि बिचौलियों के साथ पैसों को लेकर बहस करने का हमारे लिए कोई मतलब है। हमें जो कुछ भी दिया जाता है हम खुशी से ले लेते हैं, यही हम अपने बचपन से देखते चले आ रहे हैं।"
इस क्षेत्र में ग्रामीण निवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाली आदिवासी कार्यकर्ता किरण कुजूर ने गांव कनेक्शन को बताया, "बिचौलिए महुआ जिस कीमत पर आदिवासियों से खरीदते हैं उससे दोगुनी कीमत पर मार्केट में बेचते हैं।"
कुजूर ने आगे कहा, ष्आदिवासी आम तौर पर 25 से 30 रुपये में एक किलो सूखा महुआ बेचते हैं। लेकिन बिचौलिए सूखे महुए को 50 से 60 रुपये प्रति किलो के हिसाब से देशी शराब बनाने वालों को बेचते हैं।"
देश की महुआ इकॉनमी में ओडिशा का एक अहम स्थान है। देश का लगभग तीन चौथाई आदिवासी परिवार (लगभग 7.5 मिलियन व्यक्ति) महुआ चुनता है। महुआ का अनुमानित राष्ट्रीय उत्पादन 0.85 मिलियन टन है, जबकि कुल उत्पादन क्षमता 4.9 मिलियन टन है।
मध्य प्रदेश में महुआ का औसत व्यापार लगभग 5,730 मीट्रिक टन है, ओडिशा में 2,100 मीट्रिक टन है। आंध्र प्रदेश में लगभग 13,706 क्विंटल महुआ (8.4 मिलियन रुपये मूल्य) और 6188 क्विंटल महुआ बीज (6.5 मिलियन रुपये) का उत्पादन होता है।
अरिखिता बनारा, एक शिक्षिका हैं, जो चेलिपोसी (अनलकाटा गांव से लगभग सात किलोमीटर दूर) में स्थित एक स्कूल में पढ़ाती हैं, कहती हैं कि वह रोज़ इन आदिवासी ग्रामीणों को महुआ चुनने के लिए जंगलों की तरफ जाते हुए देखती हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया कि इन ग्रामीण वासियों को महुआ के लिए सही भुगतान न मिलने के बावजूद, इन फूलों को इकट्ठा करने में घंटों खर्च करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
उन्होंने आगे बताया, "कड़ी मेहनत और उसमें रिस्क के हिसाब से आमदनी बहुत कम है। ये गरीब लोग अपनी जान जोखिम में डालते हैं क्योंकि जंगल जंगली जानवरों से भरे पड़े हैं।" उन्होंने बताया, "वे लोग सुबह जल्दी उठते हैं और महुआ इकट्ठा करने के लिए जंगल में जल्दी निकल जाते हैं। दोपहर में भोजन आराम करने के लिए घर वापस आते हैं और फिर शाम को जंगल की तरफ निकल जाते हैं। गर्मी के मौसम में यही उनकी दिनचर्या है।"
57 वर्षीय मुंडा ने बताया, "महुआ के मौसम में पास के जंगलों से महुआ इकट्ठा करके रोजाना 150 से 200 रुपये कमा लेती हूं।" वह बताती हैं, "जंगल में हाथी, तेंदुआ और अन्य जानवर रहते हैं, लेकिन पैसा कमाने के लिए ग्रामीण और उनके बच्चों को महुआ लेने के लिए घने जंगलों में जाना पड़ता है। मैं उन लोगों को जानती हूं जो जंगली जानवरों के हमले में मारे गए या गंभीर रूप से घायल हो गए।"
दिलचस्प बात यह है कि केंद्रीय जनजातीय मामलों का मंत्रालय होने के बावजूद महुआ समेत गैर-लकड़ी जंगली पैदावार (एनटीएफपी) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में करने के लिए, ओडिशा सरकार के पास कोई प्रावधान नहीं है।
आदिवासी विकास सहकारी निगम के मार्केटिंग मैनेजर चंदन गुप्ता से संपर्क करने पर उन्होंने बताया, "हमने ओडिशा में एमएसपी के तहत महुआ को शामिल नहीं किया है। आबकारी विभाग देसी शराब निर्माताओं को लोगों से महुआ इकट्ठा करने के लिए लाइसेंस देता है।"
जब गांव कनेक्शन ने मयूरभंज जिले के आबकारी अधीक्षक से संपर्क किया, तो अधिकारी ने स्वीकार किया कि बिचौलिए अक्सर ग्रामीणों का शोषण करते हैं, जिनके पास इन व्यापारियों को बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है।
अशोक कुमार सेठ ने गांव कनेक्शन को बताया, "अभी तक महुआ के धंधे में बिचौलियों को रोकने आबकारी विभाग की कोई भूमिका नहीं है।"
लेकिन आदिवासी कार्यकर्ता कुजूर ने जोर दे कर कहा, देशी शराब बनाने वाली इकाइयों को सीधे इन गरीब लोगों से महुआ खरीदना चाहिए।
आदिवासी कार्यकर्ता ने कहा, "महुआ चुनने वालों की मदद करने के लिए बिचौलियों को हटाना जरूरी है। अपनी पैदावार का बेहतर मूल्य प्राप्त करने के लिए ग्रामीणों को बाजार तक पहुंचने की आवश्यकता है।
2019 में लिखे गए शोध पत्र "Mahua (Madhuca indica): A boon for tribal economy" के अनुसार, महुआ भारत में सबसे महत्वपूर्ण गैर-लकड़ी जंगली पैदावार (NTFP) में से एक है, जिसका देश की जनजातीय अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। महुआ के फूलों का संग्रह और व्यापार हर वर्ष 28,600 लोगों को रोजगार प्रदान करता है, जबकि हर साल 163,000 लोगों को रोजगार प्रदान करने की क्षमता है।
अच्छे मौसम में औसतन हर शख्स 70 किलो तक सूखा महुआ इकट्ठा कर सकता है। महुआ 4 से 6 सप्ताह (मार्च से मई) में होता है। हालांकि महुआ इकट्ठा करने का समय 15 से 20 दिनों का होता है जब सबसे ज्यादा फूल लगते हैं। महुआ के पेड़ की औसत वार्षिक पैदावार 50.756 किलोग्राम प्रति पेड़ होती है। उदाहरण के लिए, ओडिशा में, औसतन हर परिवार हर मौसम में लगभग 5 से 6 क्विंटल महुआ इकट्ठा करता है, जो उनकी वार्षिक नकद आय में 30 प्रतिशत तक योगदान देता है।
अनुवाद: मोहम्म्द अब्दुल्ला
अंग्रेजी में पढ़ें
Ad 1
ओडिशा में आदिवासी समाज के लिए महुआ चुनना एक जरूरी काम है। अपनी रोजी रोटी के लिए इसकी शराब बना कर बेचते भी हैं। हालांकि, बाजार तक सीधी पहुंच नहीं होने के कारण, ये आदिवासी समुदाय बिचौलियों को औने-पौने दाम पर अपना महुआ बेच देते हैं।
Ad 2
57 वर्षीय महुआ चुनने वाली रंग लता मुंडा ने गांव कनेक्शन को बताया, "मंडी हमारे घर से दूर है, हमारे जैसे ग्रामीणों के लिए कोई सुविधा नहीं है। मुझे नहीं लगता कि बिचौलियों के साथ पैसों को लेकर बहस करने का हमारे लिए कोई मतलब है। हमें जो कुछ भी दिया जाता है हम खुशी से ले लेते हैं, यही हम अपने बचपन से देखते चले आ रहे हैं।"
Ad 3
Ad 4
359085-tribal-community-odisha-mahua-flower-economy-msp-livelihood-3
इस क्षेत्र में ग्रामीण निवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाली आदिवासी कार्यकर्ता किरण कुजूर ने गांव कनेक्शन को बताया, "बिचौलिए महुआ जिस कीमत पर आदिवासियों से खरीदते हैं उससे दोगुनी कीमत पर मार्केट में बेचते हैं।"
कुजूर ने आगे कहा, ष्आदिवासी आम तौर पर 25 से 30 रुपये में एक किलो सूखा महुआ बेचते हैं। लेकिन बिचौलिए सूखे महुए को 50 से 60 रुपये प्रति किलो के हिसाब से देशी शराब बनाने वालों को बेचते हैं।"
देश की महुआ इकॉनमी में ओडिशा का एक अहम स्थान है। देश का लगभग तीन चौथाई आदिवासी परिवार (लगभग 7.5 मिलियन व्यक्ति) महुआ चुनता है। महुआ का अनुमानित राष्ट्रीय उत्पादन 0.85 मिलियन टन है, जबकि कुल उत्पादन क्षमता 4.9 मिलियन टन है।
मध्य प्रदेश में महुआ का औसत व्यापार लगभग 5,730 मीट्रिक टन है, ओडिशा में 2,100 मीट्रिक टन है। आंध्र प्रदेश में लगभग 13,706 क्विंटल महुआ (8.4 मिलियन रुपये मूल्य) और 6188 क्विंटल महुआ बीज (6.5 मिलियन रुपये) का उत्पादन होता है।
महुआ बीनना है मेहनत का काम
359086-tribal-community-odisha-mahua-flower-economy-msp-livelihood-2
उन्होंने आगे बताया, "कड़ी मेहनत और उसमें रिस्क के हिसाब से आमदनी बहुत कम है। ये गरीब लोग अपनी जान जोखिम में डालते हैं क्योंकि जंगल जंगली जानवरों से भरे पड़े हैं।" उन्होंने बताया, "वे लोग सुबह जल्दी उठते हैं और महुआ इकट्ठा करने के लिए जंगल में जल्दी निकल जाते हैं। दोपहर में भोजन आराम करने के लिए घर वापस आते हैं और फिर शाम को जंगल की तरफ निकल जाते हैं। गर्मी के मौसम में यही उनकी दिनचर्या है।"
57 वर्षीय मुंडा ने बताया, "महुआ के मौसम में पास के जंगलों से महुआ इकट्ठा करके रोजाना 150 से 200 रुपये कमा लेती हूं।" वह बताती हैं, "जंगल में हाथी, तेंदुआ और अन्य जानवर रहते हैं, लेकिन पैसा कमाने के लिए ग्रामीण और उनके बच्चों को महुआ लेने के लिए घने जंगलों में जाना पड़ता है। मैं उन लोगों को जानती हूं जो जंगली जानवरों के हमले में मारे गए या गंभीर रूप से घायल हो गए।"
ओडिशा में नहीं महुआ के लिए कोई एमएसपी पॉलिसी
आदिवासी विकास सहकारी निगम के मार्केटिंग मैनेजर चंदन गुप्ता से संपर्क करने पर उन्होंने बताया, "हमने ओडिशा में एमएसपी के तहत महुआ को शामिल नहीं किया है। आबकारी विभाग देसी शराब निर्माताओं को लोगों से महुआ इकट्ठा करने के लिए लाइसेंस देता है।"
जब गांव कनेक्शन ने मयूरभंज जिले के आबकारी अधीक्षक से संपर्क किया, तो अधिकारी ने स्वीकार किया कि बिचौलिए अक्सर ग्रामीणों का शोषण करते हैं, जिनके पास इन व्यापारियों को बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है।
अशोक कुमार सेठ ने गांव कनेक्शन को बताया, "अभी तक महुआ के धंधे में बिचौलियों को रोकने आबकारी विभाग की कोई भूमिका नहीं है।"
359087-tribal-community-odisha-mahua-flower-economy-msp-livelihood-1
लेकिन आदिवासी कार्यकर्ता कुजूर ने जोर दे कर कहा, देशी शराब बनाने वाली इकाइयों को सीधे इन गरीब लोगों से महुआ खरीदना चाहिए।
आदिवासी कार्यकर्ता ने कहा, "महुआ चुनने वालों की मदद करने के लिए बिचौलियों को हटाना जरूरी है। अपनी पैदावार का बेहतर मूल्य प्राप्त करने के लिए ग्रामीणों को बाजार तक पहुंचने की आवश्यकता है।
2019 में लिखे गए शोध पत्र "Mahua (Madhuca indica): A boon for tribal economy" के अनुसार, महुआ भारत में सबसे महत्वपूर्ण गैर-लकड़ी जंगली पैदावार (NTFP) में से एक है, जिसका देश की जनजातीय अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। महुआ के फूलों का संग्रह और व्यापार हर वर्ष 28,600 लोगों को रोजगार प्रदान करता है, जबकि हर साल 163,000 लोगों को रोजगार प्रदान करने की क्षमता है।
अच्छे मौसम में औसतन हर शख्स 70 किलो तक सूखा महुआ इकट्ठा कर सकता है। महुआ 4 से 6 सप्ताह (मार्च से मई) में होता है। हालांकि महुआ इकट्ठा करने का समय 15 से 20 दिनों का होता है जब सबसे ज्यादा फूल लगते हैं। महुआ के पेड़ की औसत वार्षिक पैदावार 50.756 किलोग्राम प्रति पेड़ होती है। उदाहरण के लिए, ओडिशा में, औसतन हर परिवार हर मौसम में लगभग 5 से 6 क्विंटल महुआ इकट्ठा करता है, जो उनकी वार्षिक नकद आय में 30 प्रतिशत तक योगदान देता है।
अनुवाद: मोहम्म्द अब्दुल्ला
अंग्रेजी में पढ़ें