बैंक हड़ताल : कर्मचारी बोले, "बैंक नहीं बिकने देंगे भले सरकार बदलनी पड़ जाए"
 Arvind Shukla |  Dec 16, 2021, 14:40 IST
बैंक हड़ताल : कर्मचारी बोले
Highlight of the story: सार्वजनिक क्षेत्र की 2 बैकों के प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ बैंक कर्मियों ने अपनी 2 दिन की हड़ताल के पहले दिन देश भर में जोरदार प्रदर्शन किया। बैंक कर्मियों का कहना है दो दिन की हड़ताल से सरकारी नहीं मानी तो अनिश्चित कॉलीन हड़ताल पर भी जा सकते हैं, जरुरत पड़ी सड़क पर भी उतरेंगे।
    लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। दिन भर पैसों के लेन-देन का गुणा भाग करने वाले, खाता धारकों के पैसा निकालने और जमा करने वाले बैंक कर्मचारी बृहस्पतिवार को अलग ही रुप में नजर आए। हाथों में बैनर, पोस्टर और प्लेकार्ड लिए बैंक कर्मचारी बैंक बचाओ, देश बचाओ, हम बैंक नहीं बिकने देंगे, निजीकरण के खिलाफ नारेबाजी करते नजर आए।   
   
दो बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में दो दिन की हड़ताल कर रहे बैंक कर्मचरियों ने 16 दिसंबर को देशभर में प्रदर्शन किया। बैंक कर्मचारियों ने कहा अगर सरकार ने उनकी मांगी नहीं मानी तो दो दिन की हड़ताल अनिश्चितकालीन हड़ताल में भी बदल सकती है।
   
ऑल इंडिया इलाहाबाद बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन के संयुक्त सचिव संदीप अखौरी के मुताबिक देशभर से हड़ताल के पहले दिन की जो रिपोर्ट आई है वो उत्साहित करने वाली है। पूरे देश में सक्रिय भागीदारी रही है।
   
संदीप अखौरी मुंबई से फोन पर गांव कनेक्शन को बताते हैं, "पिछले 10 वर्षों में बैंक कर्मियों की ये 43वीं हड़ताल है। जिसमें हम लोग न अपनी सैलरी की बात कर रहे हैं न सुविधाओं की, हम देश की संस्थाओं को कैपिटलिस्ट (पूंजीपतियों) से बचाने की एक मात्र मांग कर रहे हैं। सरकारी बैंक की पहुंच आम गरीब लोगों तक है ये सामाजिक दायित्व के तहत चल रहे हैं। इन्हें पूंजीपतियों के हाथ में न बेचा जाए।"
   
    
   
   
पवन कुमार ने गांव कनेक्शन से कहा, "पहले हम दो दिन की हड़ताल कर रहे हैं। इससे कुछ नहीं होगा तो अनिश्चितकालीन पड़ताल पर जाएंगे। सड़क पर उतरेंगे। उसके बाद भी कुछ नहीं होगा तो हम बंगाल की तरह हम लोग घर-घर जाएंगे और लोगों को बताएंगे कि ये बैंक बेचने वाली सरकार है। बैंक बेचने वाली सरकार आपको चाहिए तो इन्हें वोट दीजिए वर्ना न दीजिए। ये सरकार सिर्फ वोट से डरती है।"
   
उन्होंने आगे कहा, "देश की आम जनता ने जो भरोसे के साथ सरकारी बैंकों में 157 लाख करोड़ रुपए जमा किए हैं। इस पर पूंजीपतियों की नजर है। निजीकरण हुआ तो 1969 जैसे हालात होंगे जब एक इंडस्ट्री को लोन दिया जाता था और बैंक डूब जाते थे। देश में बहुत सारे प्राइवेट बैंक खुले और बंद हो गए लेकिन सरकारी बैंकों ने आपके भरोसे को बनाकर रखा। पब्लिक ने हम पर भरोसा किया है तो हम ये भरोसा नहीं तोड़ेंगे। चाहे आने वाले चुनावों में हमें सरकार बदलनी पड़े।"
   
    
   
   
विक्रम कहते हैं, "सरकार ने दो बैंकों के निजीकरण की बात की है लेकिन वो दो बैंक कौन किसी को नहीं पता? वो हमारी बैंक भी हो सकती है। 1969 में जब निजीकरण हुआ था वो यूहीं नहीं हुआ था उसके लिए बैंकर ने बहुत लंबी लड़ाई लड़ी थी। पहले 27 बैंक थे जो मर्जर के बाद अब सिर्फ 12 बचे हैं अब उन बैंकों का भी निजीकरण किया जा रहा है।"
   
वो आगे कहते हैं, "हम (बैंक संगठन) एक गैर राजनीतिक संस्था हैं, लेकिन अगर ये सरकारी नहीं मानी तो आने वाले चुनावों, यूपी, पंजाब और महाराष्ट्र के चुनाव में हम गली-गली में निकलेंगे और पब्लिक में जाएंगे, उन्हें निजीकरण के नुकसान बताएंगे। पहले यूपी फिर देश में इस सरकार रिपीट होने नहीं देंगे।"
   
16 दिसंबर को जब दिल्ली में आगामी बजट 2022-23 के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन वित्तीय क्षेत्र के विशेषज्ञों और पूंजी बाजार के विशेषज्ञों से चर्चा कर रही देशभर बैंकर बैंक बंदकर प्रदर्शन कर रहे थे।
   
बैंकों के निजीकरण के मुद्दा सबसे पहले 2021-22 के बजट सत्र के दौरान उठा था जब वित्त मंत्री ने कई संस्थाओं के साथ दो बैंकों के विनिवेश की बात की थी। बैंकों के निजीकरण को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में वित्त मंत्री ने लोकसभा में कहा, "सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट 2021-22 में सार्वजिनक क्षेत्र के दो बैंकों (पीएसबी) का निजीकरण आरंभ करने तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के कार्यनीतिक विनिवेश की नीति को अनुमोदित करने की घोषणा की थी, विनिवेश से संबंधित विभिन्न मामलों, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ बैंकों का चयन भी शामिल है पर विचार करने का कार्य इस प्रयोजन हेतु नामोदिष्ट मंत्रिमंडल समिति को सौपा गया है। पीएसबी के निजीकरण के संबंध में मंत्रिमंडल समिति द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया है।"
   
बैंककर्मियों के मुताबिक बैंकिंग संबंधित बिल इसी सत्र में पेश होना था लेकिन किसान आंदोलन की सफलता और बैंक कर्मियों के विरोध के चलते सरकार थोड़ा ठहरी नजर आ रही है लेकिन ये बिल कभी भी आ सकता है। इसलिए बैंककर्मचारी अपने साथ दूसरे संगठनों को लाने और ज्यादा से ज्यादा समर्थन जुटाने की कोशिश में हैं।
   
   
संदीप अखौरी आगे कहते हैं, "सरकार ने संसद में जो बयान दिया कि बैंकिंग बिल, बैंक रिफार्म या जो अमेडमेंट लाने वाली है उस पर कोई फैसला नहीं हुआ है। बैंक यूनियन के यूनाइटेड फोरम (UFSB) ने सरकार के साथ दो दिन लगातार बात की लेकिन उन्होंने लिखित में ये नहीं दिया कि बैंकिंग बिल इस सत्र में नहीं आएगा। जिसके चलते मजबूरी में हमें हड़ताल करनी पड़ रही है। दो दिन हड़ताल के बाद बैंक यूनियन समीक्षा करेंगे। फिर भी अगर सरकार ने मांग नहीं मानी तो अनिश्चित कालीन हड़ताल पर जाने पर विचार होगा।"
   
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पवन कुमार कहते हैं, "हमारे साथ किसान मोर्चा, आरबीआई, नाबार्ड, केंद्र सरकार के कर्मचारी, यूपी कर्मचारियों के संगठन अटेवा, सभी चार केंद्रीय ट्रेड यूनियन हमारे साथ हैं। हम इस लड़ाई को सफल बनाकर रहेंगे।"
   
बैंक यूनियन को संयुक्त किसान मोर्चा, ट्राइबल आर्मी, निजीकरण विरोधी मोर्चा, हल्ला बोल जैसे संगठनों और कुछ दूसरे संगठनों ने भी समर्थन दिया है।
   
इस हड़ताल में ग्रामीण बैंकों की भागीदारी रही है। ऑल इंडिया रुरल बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन के सचिव बीपी सिंह गांव कनेक्शन से कहते हैं, "पहले दिन दी हड़ताल पूरी तरफ सफल रही है। गांव के जिन किसानों, मजदूरों की हम सेवा करते हैं, वो हमारे साथ हैं।"
   
   
आर्यावर्त ग्रामीण बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी आनंद कुमार कहते हैं, "अगर मैं नुकसान की बात करूं तो सबसे बड़ी बात कि किसी निजीबैंक में जीरो बैलेंस पर खाता नहीं खुलता। राष्ट्रीयकरण के वक्त ये तय हुआ कि दूरदराज के गांवों तक बैंक की सुविधाएं पहुंचाई जाएं। निजी बैंक 5000 से नीचे खाता नहीं खोलते, हमारे यहां जीरो बैंलेस और 100 रुपए पर खोले जाते हैं। कई बार हम उतना लोगों को लोन देते हैं। तो इन सब सुविधाओं से आम जनता से वंचित रह जाएगी।"
   
    
   
   
लखनऊ की एसबीआई ब्रांच में कार्यरत नीलम उपाध्याय अपनी लड़ाई को देश की लड़ाई, अर्थव्यवस्था बचाने की लड़ाई बताती हैं। अपनी नौकरी के बात पर वो कहती हैं, "हमने इतनी पढ़ाई की, इतने एग्जाम दिए फिर सेलेक्शन हुआ है। जब भर्तियां निकलती थी 20-20 लाख लोग अप्लाई करते थे, और 150-200 लोगों को सेलेक्शन होता था, इसका मतलब हुआ कि हम इसके योग्य हैं। प्राइवेट में नौकरी कैसे मिलती हैं हम जानते हैं। सरकारी यही चाहती है कि वो ऐसे लोगों को नौकरी दे जो उनके लिए काम करें, उनकी किसी गलत नीति का विरोध न करें। और वो अपनी मनमानी कर सकें।"
   
 
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दो बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में दो दिन की हड़ताल कर रहे बैंक कर्मचरियों ने 16 दिसंबर को देशभर में प्रदर्शन किया। बैंक कर्मचारियों ने कहा अगर सरकार ने उनकी मांगी नहीं मानी तो दो दिन की हड़ताल अनिश्चितकालीन हड़ताल में भी बदल सकती है।
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ऑल इंडिया इलाहाबाद बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन के संयुक्त सचिव संदीप अखौरी के मुताबिक देशभर से हड़ताल के पहले दिन की जो रिपोर्ट आई है वो उत्साहित करने वाली है। पूरे देश में सक्रिय भागीदारी रही है।
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संदीप अखौरी मुंबई से फोन पर गांव कनेक्शन को बताते हैं, "पिछले 10 वर्षों में बैंक कर्मियों की ये 43वीं हड़ताल है। जिसमें हम लोग न अपनी सैलरी की बात कर रहे हैं न सुविधाओं की, हम देश की संस्थाओं को कैपिटलिस्ट (पूंजीपतियों) से बचाने की एक मात्र मांग कर रहे हैं। सरकारी बैंक की पहुंच आम गरीब लोगों तक है ये सामाजिक दायित्व के तहत चल रहे हैं। इन्हें पूंजीपतियों के हाथ में न बेचा जाए।"
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पवन कुमार ने गांव कनेक्शन से कहा, "पहले हम दो दिन की हड़ताल कर रहे हैं। इससे कुछ नहीं होगा तो अनिश्चितकालीन पड़ताल पर जाएंगे। सड़क पर उतरेंगे। उसके बाद भी कुछ नहीं होगा तो हम बंगाल की तरह हम लोग घर-घर जाएंगे और लोगों को बताएंगे कि ये बैंक बेचने वाली सरकार है। बैंक बेचने वाली सरकार आपको चाहिए तो इन्हें वोट दीजिए वर्ना न दीजिए। ये सरकार सिर्फ वोट से डरती है।"
उन्होंने आगे कहा, "देश की आम जनता ने जो भरोसे के साथ सरकारी बैंकों में 157 लाख करोड़ रुपए जमा किए हैं। इस पर पूंजीपतियों की नजर है। निजीकरण हुआ तो 1969 जैसे हालात होंगे जब एक इंडस्ट्री को लोन दिया जाता था और बैंक डूब जाते थे। देश में बहुत सारे प्राइवेट बैंक खुले और बंद हो गए लेकिन सरकारी बैंकों ने आपके भरोसे को बनाकर रखा। पब्लिक ने हम पर भरोसा किया है तो हम ये भरोसा नहीं तोड़ेंगे। चाहे आने वाले चुनावों में हमें सरकार बदलनी पड़े।"
विक्रम कहते हैं, "सरकार ने दो बैंकों के निजीकरण की बात की है लेकिन वो दो बैंक कौन किसी को नहीं पता? वो हमारी बैंक भी हो सकती है। 1969 में जब निजीकरण हुआ था वो यूहीं नहीं हुआ था उसके लिए बैंकर ने बहुत लंबी लड़ाई लड़ी थी। पहले 27 बैंक थे जो मर्जर के बाद अब सिर्फ 12 बचे हैं अब उन बैंकों का भी निजीकरण किया जा रहा है।"
वो आगे कहते हैं, "हम (बैंक संगठन) एक गैर राजनीतिक संस्था हैं, लेकिन अगर ये सरकारी नहीं मानी तो आने वाले चुनावों, यूपी, पंजाब और महाराष्ट्र के चुनाव में हम गली-गली में निकलेंगे और पब्लिक में जाएंगे, उन्हें निजीकरण के नुकसान बताएंगे। पहले यूपी फिर देश में इस सरकार रिपीट होने नहीं देंगे।"
16 दिसंबर को जब दिल्ली में आगामी बजट 2022-23 के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन वित्तीय क्षेत्र के विशेषज्ञों और पूंजी बाजार के विशेषज्ञों से चर्चा कर रही देशभर बैंकर बैंक बंदकर प्रदर्शन कर रहे थे।
बैंकों के निजीकरण के मुद्दा सबसे पहले 2021-22 के बजट सत्र के दौरान उठा था जब वित्त मंत्री ने कई संस्थाओं के साथ दो बैंकों के विनिवेश की बात की थी। बैंकों के निजीकरण को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में वित्त मंत्री ने लोकसभा में कहा, "सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट 2021-22 में सार्वजिनक क्षेत्र के दो बैंकों (पीएसबी) का निजीकरण आरंभ करने तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के कार्यनीतिक विनिवेश की नीति को अनुमोदित करने की घोषणा की थी, विनिवेश से संबंधित विभिन्न मामलों, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ बैंकों का चयन भी शामिल है पर विचार करने का कार्य इस प्रयोजन हेतु नामोदिष्ट मंत्रिमंडल समिति को सौपा गया है। पीएसबी के निजीकरण के संबंध में मंत्रिमंडल समिति द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया है।"
बैंककर्मियों के मुताबिक बैंकिंग संबंधित बिल इसी सत्र में पेश होना था लेकिन किसान आंदोलन की सफलता और बैंक कर्मियों के विरोध के चलते सरकार थोड़ा ठहरी नजर आ रही है लेकिन ये बिल कभी भी आ सकता है। इसलिए बैंककर्मचारी अपने साथ दूसरे संगठनों को लाने और ज्यादा से ज्यादा समर्थन जुटाने की कोशिश में हैं।
संदीप अखौरी आगे कहते हैं, "सरकार ने संसद में जो बयान दिया कि बैंकिंग बिल, बैंक रिफार्म या जो अमेडमेंट लाने वाली है उस पर कोई फैसला नहीं हुआ है। बैंक यूनियन के यूनाइटेड फोरम (UFSB) ने सरकार के साथ दो दिन लगातार बात की लेकिन उन्होंने लिखित में ये नहीं दिया कि बैंकिंग बिल इस सत्र में नहीं आएगा। जिसके चलते मजबूरी में हमें हड़ताल करनी पड़ रही है। दो दिन हड़ताल के बाद बैंक यूनियन समीक्षा करेंगे। फिर भी अगर सरकार ने मांग नहीं मानी तो अनिश्चित कालीन हड़ताल पर जाने पर विचार होगा।"
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पवन कुमार कहते हैं, "हमारे साथ किसान मोर्चा, आरबीआई, नाबार्ड, केंद्र सरकार के कर्मचारी, यूपी कर्मचारियों के संगठन अटेवा, सभी चार केंद्रीय ट्रेड यूनियन हमारे साथ हैं। हम इस लड़ाई को सफल बनाकर रहेंगे।"
बैंक यूनियन को संयुक्त किसान मोर्चा, ट्राइबल आर्मी, निजीकरण विरोधी मोर्चा, हल्ला बोल जैसे संगठनों और कुछ दूसरे संगठनों ने भी समर्थन दिया है।
इस हड़ताल में ग्रामीण बैंकों की भागीदारी रही है। ऑल इंडिया रुरल बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन के सचिव बीपी सिंह गांव कनेक्शन से कहते हैं, "पहले दिन दी हड़ताल पूरी तरफ सफल रही है। गांव के जिन किसानों, मजदूरों की हम सेवा करते हैं, वो हमारे साथ हैं।"
आर्यावर्त ग्रामीण बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी आनंद कुमार कहते हैं, "अगर मैं नुकसान की बात करूं तो सबसे बड़ी बात कि किसी निजीबैंक में जीरो बैलेंस पर खाता नहीं खुलता। राष्ट्रीयकरण के वक्त ये तय हुआ कि दूरदराज के गांवों तक बैंक की सुविधाएं पहुंचाई जाएं। निजी बैंक 5000 से नीचे खाता नहीं खोलते, हमारे यहां जीरो बैंलेस और 100 रुपए पर खोले जाते हैं। कई बार हम उतना लोगों को लोन देते हैं। तो इन सब सुविधाओं से आम जनता से वंचित रह जाएगी।"
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