तब गेहूं और जौ पर होता था प्रेगनेंसी टेस्ट, लंबा है मां बनने के फैसले से जुड़ी आजादी का इतिहास
 हिमानी दीवान |  Jul 14, 2021, 11:31 IST | 
 तब गेहूं और जौ पर होता था प्रेगनेंसी टेस्ट
डियर मां...बेशक अब मैं भी मां बन चुकी हूं। मगर मुझे वो दिन भी याद है जब मैं करियर में आगे बढ़ने और मां बनने के फैसले के बीच उलझी हुई थी। मैं मां बनना चाहती थी लेकिन इसका अहसास आपने मुझे कराया था। साथ ही ये भी समझाया था कि मां बनने का फैसला लड़की को अपने पूरे मन से करना चाहिए, किसी दबाव में नहीं। डियर मां पार्ट-2
    घर पर किए जाने वाले प्रेगनेंसी टेस्ट की वो दो गुलाबी लाइनें कितना मायने रखती हैं, ये हर वो लड़की समझ सकती है, जो मां बनना चाहती है।   
   
   
कई बार आप खुशी की चादर पर लगे शक और आशंकाओं के दाग से इस कदर घिरे होते हैं कि पहली बार वो दो गुलाबी लाइनें नजर आने के बाद भी कुछ दिन का समय लेकर दोबारा टेस्ट करना चाहते हैं। जब कहीं टेस्ट के साथ-साथ आपका शरीर भी आपको ये इशारे करने लगता है कि गुलाबी लाइनें सिर्फ टेस्ट किट पर ही नहीं हैं, आपकी जिंदगी का मौसम भी हरा-भरा होने वाला है, तो दिल एक अलग ही दुनिया में पहुंच जाता है। वो दुनिया जहां आपको सबसे बड़ा प्रमोशन मिलने वाला है और कोई आपको मां कहकर पुकारने वाला है।
   
मेरी प्रेगनेंसी का सफर भी कुछ ऐसा ही था। कई महीने अनियमित पीरियड्स रहने की वजह से हर महीना जैसे इस इंतजार में बीत रहा था। मैं मां बनना चाहती थी। इसके लिए खुद को तैयार कर रही थी और पॉजिटिव प्रेगनेंसी रिजल्ट देखने के लिए बेसब्र थी। फिर वो दिन भी आया जब टेस्ट किट का रिजल्ट पॉजिटिव था। मगर रुककर फिर मैंने एक हफ्ते बाद टेस्ट किया। फिर डॉक्टर को दिखाया। जब अल्ट्रासाउंड देखा, तब जाकर कहीं मैं इस खुशी को पूरी तरह सच मान पाई कि मैं सच में मां बनने वाली हूं।
   
     
         
प्रेगनेंसी किट ने महिलाओं की मदद की लेकिन...
   
   
मगर हर लड़की मां नहीं बनना चाहती। जो मां बनना भी चाहती हैं, उन्हें भी ये तय करने का पूरा अधिकार है कि वो कब मां बनने के लिए तैयार हैं। मगर फिर भी हमारे समाज में इन बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता और शादी के बाद हर लड़की पर मां बनने का दबाव बनाया जाने लगता है। कहा जाता है कि इसमें क्या बड़ी बात है, ये तो हर लड़की की जिम्मेदारी है। हर लड़की को मां बनना होता है। शादी हो गई, अब बच्चा भी करो। इस सबसे जूझने और बाहर निकलने का हर लड़की का अपना एक अलग ही संघर्ष होता है। इस संघर्ष में प्रेगनेंसी टेस्ट किट ने भी बहुत मदद की है और इसका भी अपना एक लंबा इतिहास है।
   
मेरी एक सहेली कम उम्र में ही शादी होने के कारण कुछ सालों तक बच्चे की प्लानिंग नहीं करना चाहती थीं। मगर मासिक चक्र अनियमित होने पर उसे कुछ शक हुआ और उसने प्रेगनेंसी टेस्ट किट का इस्तेमाल किया। इसमें टेस्ट रिजल्ट पॉजिटिव आया। उस पर बच्चा पैदा करने का दबाव था, मगर पति के काफी सपोर्टिव होने के कारण उसने डॉक्टर से कंसल्ट करके प्रेगनेंसी को आगे ना बढ़ाने का फैसला किया।
   
   आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि एक समय में ऐसा करना कितना मुश्किल काम था। अब से कई सौ साल पहले की बात करें तो सामने आता है कि पहले काफी अलग-अलग तरह से गर्भावस्था के बारे में पता लगाया जाता था। मसलन मिस्र में महिलाएं प्रेगनेंसी का पता लगाने के लिए गेहूं या जौ के बीजों पर पेशाब करती थीं। अगर हफ्ते भर में ये बीज अंकुरित हो जाते थे, तो इसे प्रेगनेंसी का संकेत माना जाता था। आज भी बेशक तीन हजार साल पुरानी ये विधि ना सही, लेकिन बेकिंग पाउडर, नमक, कोलगेट और डिटॉल के साथ किए जाने वाले प्रेगनेंसी टेस्ट की चर्चा गाहे-बगाहे होती रहती है।   
   
बीते 19 सालों से बतौर कंसल्टेंट ऑब्सटेट्रिशियन और गायनेकॉलोजिस्ट कई अस्पतालों में सेवाएं दे चुकी दिल्ली की डॉ. वाणी पुरी कहती हैं- 'घर पर किए जाने वाले इन टेस्ट्स पर पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता। मेडिकली सर्टिफाइड प्रेगनेंसी टेस्ट किट से ही प्रेगनेंसी का पता लगाया जाना चाहिए।"
   
वो आगे बताती हैं, "जब आपके पीरियड्स का तय समय आगे निकल जाए, तब उसके एक हफ्ते बाद प्रेगनेंसी टेस्ट किया जाना चाहिए। इस समय तक शरीर में HCG की इतनी मात्रा होती है कि उसे यूरिन के जरिए किए जाने वाले टेस्ट से जांचा जा सकता है। यूरिन में मौजूद एक हॉर्मोन HCG की मौजूदगी से पता चलता है कि महिला गर्भवती है या नहीं।' प्रेगनेंसी टेस्ट किट बाजार में आई और घर बैठी महिलाओं तक मां बनने के फैसले से जुड़ी निजता की सहजता, आजादी और अधिकार भी पहुंच गया। मगर ये कहानी भी यहीं खत्म नहीं होती।"
   
1970 के आखिरी वर्षों में अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा पहली बार प्रेग्नेंसी टेस्ट किट्स को मान्यता मिली थी। इस टेस्ट किट में रिजल्ट आने में दो घंटे तक का समय लग जाता था। जो टेस्ट किट आज इस्तेमाल हो रही हैं, उनकी शुरुआत 1990 में हुई बताई जाती है।
   
प्रेग्नेंसी टेस्ट किट की उपलब्धता के बावजूद भी ऐसी खबरें और आंकड़े भरे पड़े हैं, जहां आज भी महिला घर बैठे अपनी गर्भावस्था की जानकारी नहीं जुटा पाती। अपने ही शरीर और स्वास्थ्य का अधिकार उसकी बजाय परिवार का कोई अन्य सदस्य ले लेता है। इसकी तसदीक करते हैं तमाम आंकड़े और रिपोर्ट्स। साल 2017 में प्रकाशित मेडिकल जर्नल लेंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रेग्नेंसी के आधे से ज्यादा मामले यानी तकरीबन 48.1 मिलियन मामले अनैच्छिक होते हैं।
   
यही नहीं 2005 से 2012 तक डब्ल्यूएचओ (WHO) द्वारा दुनिया भर में किए गए एक हेल्थ सर्वे में सामने आया कि 111,301 महिलाएं ऐसी थीं, जो गर्भवती नहीं होना चाहती थीं। इनमें सबसे ज्यादा 17.1 प्रतिशत महिलाएं भारत से थीं, जिन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध गर्भवती होना पड़ा।
   
इन हालातों के मद्देनजर अमेरिकी एक्टिविस्ट मार्गेट सेंगर की लिखी बात याद आती है। उनका कहना था- कोई भी महिला खुद को तब तक आजाद और स्वतंत्र नहीं मान सकती, जब तक कि वो ये फैसला खुद ना ले सके कि वो मां बनना चाहती है या नहीं।
   
उम्मीद है ये सब पढ़ने के बाद आप मां बनने का फैसला अपने पूरे मन से लेंगी किसी दबाव में आकर नहीं।
   
नोट- अगली किश्त में पढ़ें गर्भावस्था के नौ महीनों से जुड़े वो सात शब्द जो पलट देते हैं पूरी काया
   
        
         
          
   
   
 
कई बार आप खुशी की चादर पर लगे शक और आशंकाओं के दाग से इस कदर घिरे होते हैं कि पहली बार वो दो गुलाबी लाइनें नजर आने के बाद भी कुछ दिन का समय लेकर दोबारा टेस्ट करना चाहते हैं। जब कहीं टेस्ट के साथ-साथ आपका शरीर भी आपको ये इशारे करने लगता है कि गुलाबी लाइनें सिर्फ टेस्ट किट पर ही नहीं हैं, आपकी जिंदगी का मौसम भी हरा-भरा होने वाला है, तो दिल एक अलग ही दुनिया में पहुंच जाता है। वो दुनिया जहां आपको सबसे बड़ा प्रमोशन मिलने वाला है और कोई आपको मां कहकर पुकारने वाला है।
मेरी प्रेगनेंसी का सफर भी कुछ ऐसा ही था। कई महीने अनियमित पीरियड्स रहने की वजह से हर महीना जैसे इस इंतजार में बीत रहा था। मैं मां बनना चाहती थी। इसके लिए खुद को तैयार कर रही थी और पॉजिटिव प्रेगनेंसी रिजल्ट देखने के लिए बेसब्र थी। फिर वो दिन भी आया जब टेस्ट किट का रिजल्ट पॉजिटिव था। मगर रुककर फिर मैंने एक हफ्ते बाद टेस्ट किया। फिर डॉक्टर को दिखाया। जब अल्ट्रासाउंड देखा, तब जाकर कहीं मैं इस खुशी को पूरी तरह सच मान पाई कि मैं सच में मां बनने वाली हूं।
354366-mother-1-1
प्रेगनेंसी किट ने महिलाओं की मदद की लेकिन...
मगर हर लड़की मां नहीं बनना चाहती। जो मां बनना भी चाहती हैं, उन्हें भी ये तय करने का पूरा अधिकार है कि वो कब मां बनने के लिए तैयार हैं। मगर फिर भी हमारे समाज में इन बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता और शादी के बाद हर लड़की पर मां बनने का दबाव बनाया जाने लगता है। कहा जाता है कि इसमें क्या बड़ी बात है, ये तो हर लड़की की जिम्मेदारी है। हर लड़की को मां बनना होता है। शादी हो गई, अब बच्चा भी करो। इस सबसे जूझने और बाहर निकलने का हर लड़की का अपना एक अलग ही संघर्ष होता है। इस संघर्ष में प्रेगनेंसी टेस्ट किट ने भी बहुत मदद की है और इसका भी अपना एक लंबा इतिहास है।
मेरी एक सहेली कम उम्र में ही शादी होने के कारण कुछ सालों तक बच्चे की प्लानिंग नहीं करना चाहती थीं। मगर मासिक चक्र अनियमित होने पर उसे कुछ शक हुआ और उसने प्रेगनेंसी टेस्ट किट का इस्तेमाल किया। इसमें टेस्ट रिजल्ट पॉजिटिव आया। उस पर बच्चा पैदा करने का दबाव था, मगर पति के काफी सपोर्टिव होने के कारण उसने डॉक्टर से कंसल्ट करके प्रेगनेंसी को आगे ना बढ़ाने का फैसला किया।
मिस्र में गेहूं या जौ के बीजों पर पेशाब करती थीं महिलाएं
बीते 19 सालों से बतौर कंसल्टेंट ऑब्सटेट्रिशियन और गायनेकॉलोजिस्ट कई अस्पतालों में सेवाएं दे चुकी दिल्ली की डॉ. वाणी पुरी कहती हैं- 'घर पर किए जाने वाले इन टेस्ट्स पर पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता। मेडिकली सर्टिफाइड प्रेगनेंसी टेस्ट किट से ही प्रेगनेंसी का पता लगाया जाना चाहिए।"
वो आगे बताती हैं, "जब आपके पीरियड्स का तय समय आगे निकल जाए, तब उसके एक हफ्ते बाद प्रेगनेंसी टेस्ट किया जाना चाहिए। इस समय तक शरीर में HCG की इतनी मात्रा होती है कि उसे यूरिन के जरिए किए जाने वाले टेस्ट से जांचा जा सकता है। यूरिन में मौजूद एक हॉर्मोन HCG की मौजूदगी से पता चलता है कि महिला गर्भवती है या नहीं।' प्रेगनेंसी टेस्ट किट बाजार में आई और घर बैठी महिलाओं तक मां बनने के फैसले से जुड़ी निजता की सहजता, आजादी और अधिकार भी पहुंच गया। मगर ये कहानी भी यहीं खत्म नहीं होती।"
1970 के आखिरी वर्षों में अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा पहली बार प्रेग्नेंसी टेस्ट किट्स को मान्यता मिली थी। इस टेस्ट किट में रिजल्ट आने में दो घंटे तक का समय लग जाता था। जो टेस्ट किट आज इस्तेमाल हो रही हैं, उनकी शुरुआत 1990 में हुई बताई जाती है।
प्रेग्नेंसी टेस्ट किट की उपलब्धता के बावजूद भी ऐसी खबरें और आंकड़े भरे पड़े हैं, जहां आज भी महिला घर बैठे अपनी गर्भावस्था की जानकारी नहीं जुटा पाती। अपने ही शरीर और स्वास्थ्य का अधिकार उसकी बजाय परिवार का कोई अन्य सदस्य ले लेता है। इसकी तसदीक करते हैं तमाम आंकड़े और रिपोर्ट्स। साल 2017 में प्रकाशित मेडिकल जर्नल लेंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रेग्नेंसी के आधे से ज्यादा मामले यानी तकरीबन 48.1 मिलियन मामले अनैच्छिक होते हैं।
यही नहीं 2005 से 2012 तक डब्ल्यूएचओ (WHO) द्वारा दुनिया भर में किए गए एक हेल्थ सर्वे में सामने आया कि 111,301 महिलाएं ऐसी थीं, जो गर्भवती नहीं होना चाहती थीं। इनमें सबसे ज्यादा 17.1 प्रतिशत महिलाएं भारत से थीं, जिन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध गर्भवती होना पड़ा।
इन हालातों के मद्देनजर अमेरिकी एक्टिविस्ट मार्गेट सेंगर की लिखी बात याद आती है। उनका कहना था- कोई भी महिला खुद को तब तक आजाद और स्वतंत्र नहीं मान सकती, जब तक कि वो ये फैसला खुद ना ले सके कि वो मां बनना चाहती है या नहीं।
उम्मीद है ये सब पढ़ने के बाद आप मां बनने का फैसला अपने पूरे मन से लेंगी किसी दबाव में आकर नहीं।
नोट- अगली किश्त में पढ़ें गर्भावस्था के नौ महीनों से जुड़े वो सात शब्द जो पलट देते हैं पूरी काया
354361-pregnancy-information-in-hindi-story-of-a-mother-dear-maa