नई MSP, गेहूं 40 रुपए, सरसों और मसूर का रेट 400-400 रुपए कुंतल बढ़ा, किसानों ने याद दिलाई डीजल की महंगाई
 गाँव कनेक्शन |  Sep 08, 2021, 10:02 IST
नई MSP
Highlight of the story: रबी सीजन के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं, जौ और सरसों समेत 6 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया है। सबसे ज्यादा ज्यादा बढ़ोतरी सरसों और मसूर में हुई है। लेकिन किसान और किसान संगठनों ने इसे नाकाफी बताया है।
    केंद्र सरकार ने रबी सीजन 2022-23 के लिए गेहूं, सरसों, जौ, मसूर, चना और सूरजमुखी समेत 6 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया है। सबसे ज्यादा बढ़ोतरी सरसों और मसूर में 400-400 रुपए प्रति कुंटल हुई है, जबकि एमएसपी में सबसे कम बढ़ोतरी जौ में हुई है। जौ की कीमतों में 35 रुपए तो गेहूं के रेट में 40 रुपए की बढ़ोतरी हुई है। नरेंद्र मोदी सरकार के मुताबिक बढ़ाए गए रेट स्वामीनाथन आयोग के हिसाब से लागत से डेढ़ गुना हैं लेकिन किसानों का कहना है कि डीजल 25 रुपए लीटर महंगा हुआ है और गेहूं  का रेट 40 रुपए कुंतल बढ़ने से किसान के पास क्या बचेगा।   
   
सरकारी एजेंसियां अब गेेहूं 1975 रुपए की जगह 40 रुपए बढ़ाकर 2015 रुपए प्रति कुंटल में खरीदेंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 8 सितंबर को हुई केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) में इस बैठक में रबी सीजन 2022-23 (RMS 2022-23) के लिए फसलों के रेट में बढ़ोतरी पर मुहर लगाई गई। अब गेहूं का रेट 1975 से बढ़ाकर 2015 रुपए प्रति कुंटल, जौ 1600 से बढ़ाकर 1635 रुपए और चना 5100 से बढ़ाकर 5230 रुपए, मसूर की एमएसपी 5100 से बढ़ाकर 5500, सरसों का रेट 4650 से बढ़ाकर 5050 रुपए और सूरजमुखी से बढ़ाकर 5327 से बढ़कर 5441 रुपए किसानों को दिया जाएगा।
   
न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी (minimum support price) वो रेट है जिस सरकारी एजेंसियां किसानों से अनाज की खरीद करती हैं। इससे पहले केंद्र सरकार ने 9 जून को खरीफ की फसलों के लिए 22 फसलों की एमएसपी घोषित की थी। जिसमें धान का रेट 72 रुपए बढ़ाया गया था। धान की खरीद अक्टूबर महीने से शुरु होगी। जबकि धान कटने के बाद अक्टूबर-नवंबर में ही गेहूं की बुवाई की जाती है। सरकार फसलों की बुवाई से पहले एमएसपी घोषित करती है, ताकि किसान उसके अनुरूप फसलों की बुवाई कर सके।
   
केंद्र सरकार ने कहा कि विपणन सीजन 2022-23 के लिए रबी फसलों (Rabi Crops) के लिए एमएसपी में वृद्धि केंद्रीय बजट 2018-19 में घोषित उत्पादन लागत के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर एमएसपी तय करने के सिद्धांत के अनुरूप है। किसान खेती में जितना खर्च करता है, उसके आधार पर होने वाले लाभ का अधिकतम अनुमान किया गया है। इस संदर्भ में गेहूं, कैनोला व सरसों (प्रत्येक में 100 प्रतिशत) लाभ होने का अनुमान है। इसके अलावा दाल (79 प्रतिशत), चना (74 प्रतिशत), जौ (60 प्रतिशत), कुसुम के फूल (50 प्रतिशत) के उत्पादन में लाभ होने का अनुमान है।
   
    
          केंद्र सरकार द्वारा बढ़ाई गई एमएसपी को किसानों ने नाकाफी बताया है। किसान नाम एक ट्वीटर हैंडल किए गए ट्वीट में गेहूं की एमएसपी और डीजल की कीमतों में तुलना की गई है। "गेहूं के दाम 40 रुपए बढ़े हैं डीजल पिछले एक साल में 25 रुपए और खाद बीज के दाम डेढ़ गुना बढ़ गए हैं। महंगाई आसमान पर है। सरकार ने 40 रुपए बढ़ाकर किसानों के साथ धोखा किया है। वैसे बताते चलें कि MSP पर देश में सिर्फ 6 फीसदी खरीद होती है। ये सिर्फ एक सिर्फ घोषणा होती है गारंटी नहीं।" 
   
मध्य प्रदेश हरदा जिले के किसान हरिओम पटवारे इस बढ़ोतरी पर बात नहीं करना चाहते। वो कहते हैं, "बढ़ोतरी इतनी 'ज्यादा' (मजाकिया लहजे में) है कि बताते हुए भी आदमी शरमा जाए। सिर्फ 2 फीसदी बढ़ोतरी है। जबकि महंगाई के अनुरूप बढ़ोतरी कम से कम 10 फीसदी होनी चाहिए। आज 2000 रेट है तो अगले साल 2200 होना चाहिए। डीजल के दाम का हिसाब देख लेते तो पता चलता कि लागत के कितने फीसदी पैसे किसान को वापस आ रहे हैं।"
   
    
          किसान संगठनों ने भी एमएसपी में बढ़ोतरी पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने इसे धोखा बताया है। टिकैत ने कहा कि सीजन 2022- 23 की खरीद हेतु जो न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया है वह किसानों के साथ सबसे बड़ा मजाक है। कृषि मूल्य आयोग द्वारा पिछले साल गेहूं की पैदावार की लागत 1459 रुपए बताई गई थी और इस साल लागत घाटकर 1008 रुपए कर दी गई है। इससे बड़ा मजाक कुछ हो नहीं सकता।"   
   
उन्होंने कहा कि अगर महंगाई दर की बात करें तो इस वर्ष 6% महंगाई में वृद्धि हुई है। जिस तरह से पिछले वर्ष समर्थन मूल्य में इजाफा किया गया था अगर उस फार्मूले को भी लागू किया जाए तो किसानों को 71 रुपए कम दिए गए हैं, जो सरकार एमएसपी को बड़ा कदम बता रही है उसने किसानों की जेब को काटने का काम किया है। दूसरी कुछ फसलों में थोड़ी बहुत वृद्धि की गई है लेकिन उन फसलों की खरीद न होने के कारण किसानों का माल बाजार में सस्ते मूल्य पर लूटा जाता है।"
   
टिकैत ने कहा कि सरकार को किसानों को यह भी बताना चाहिए कि पंतनगर विश्वविद्यालय और लुधियाना विश्वविद्यालय और जो दूसरे गेहूं उत्पादन करने वाले अनुसंधान केंद्र हैं उनकी क्या लागत आती है?
   
किसान नेता टिकैत ने अपने बयान में आगे कहा, "किसानों के साथ सरकारों द्वारा हमेशा अन्याय किया जाता रहा है। 1967 में 2.5 कुंतल गेहूं बेचकर एक तोला सोना खरीदा जा सकता था, आज अगर किसान को एक तोले सोने की खरीद करनी हो तो 25 कुंटल गेहूं बेचने की आवश्यकता पड़ेगी। असली अन्याय यही है। किसानों के साथ किसी भी सरकार ने आर्थिक न्याय नहीं किया है। किसानों को ऊर्जावान बनाना है तो उन्हें उनकी फसलों की कीमत देनी ही होगी"
   
    
   
   
उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश में एमएसपी पर खरीद में सरकार ने रिकॉर्ड बनाया है। वर्तमान रबी विपणन सत्र 2021-22 18 अगस्त तक देशभर में 433.44 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की गई थी (जो कि अब तक की खरीद का सबसे उच्चतम स्तर है) जबकि बीते साल की इसी समान अवधि में 389.93 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया था। वहीं 5 सितंबर तक देश में 130.47 लाख किसानों से 889.62 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद हुई। जिसके बदले किसानों को 1,67,960.77 करोड़ रुपए मिले हैं।
   
   दूसरी तरफ आरएसएस के अनुषंगी संगठन भारतीय किसान संघ भी लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य घोषित करने और उस पर खरीदी सुनिश्चित करने के लिए आंदोलनरत है। भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय महामंत्री बद्री नाराणय चौधरी  ने अपने बयान में कहा कि भारतीय किसान संघ न देशव्यापी आंदोलन के तहत अभी तक 513 जिला केंद्रों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम कलेक्टर को ज्ञापन सौंपे हैं।   
   
भारतीय किसान संघ ने प्रधानमंत्री को सौंपे ज्ञापन में मांग की है कि सरकार देश के किसानों की लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य की प्रमुख मांग पर सकारात्मक विचार कर किसान हित में निर्णय ले। साथ ही भारतीय किसान संघ ने कहा कि दस दिवस में यदि कोई कार्यवाही हमारी मांगों पर नहीं की गई तो किसान संघ आंदोलन के अगले चरण की ओर बढ़ेगा।
   
भारतीय किसान संघ ने भारत सरकार के मुखिया को सुझाव दिया कि, "देश में उत्पादन बढ़ाने के साथ किसान की आय बढ़ाने व कृषि लागत कम करने की नीति पर काम करना चाहिये। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की बजाय लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य दिया जाना चाहिये। महंगाई के अनुपात में न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाया जाये। फिर जो लागत के आधार पर मूल्य घोषित हो उस पर किसान की उपज का बिक्री भी हो। चाहे वह मंडी के बाहर हो या फिर मंडी के अंदर या फिर सरकार खरीदे। लेकिन घोषित मूल्य से नीचे खरीदी को अपराध मानना होगा और इसके लिये कानून बनाया जाना जाये।"
   
ज्ञापन में कहा गया है कि एमएसपी घोषित होने के बाद भी मंडी में भाव उससे कम रहते हैं। कृषि आदान (एग्री इनपुट) लगातार महंगे हो रहे हैं और उसकी तुलना में एमएसपी बहुत कम है। इन तरह से कृषि आदान पूर्तिकर्ता व्यापारी, उद्योग चलाने वाली संस्थायें सभी लाभ कमा रहे हैं। लेकिन अन्न उत्पादन करने वाला गरीब किसान गरीब से और गरीब होता जा रहा है। बाजार भाव व न्यूनतम समर्थन मूल्य में सैकड़ों रूपयों का अंतर है।
   
    
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सरकारी एजेंसियां अब गेेहूं 1975 रुपए की जगह 40 रुपए बढ़ाकर 2015 रुपए प्रति कुंटल में खरीदेंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 8 सितंबर को हुई केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) में इस बैठक में रबी सीजन 2022-23 (RMS 2022-23) के लिए फसलों के रेट में बढ़ोतरी पर मुहर लगाई गई। अब गेहूं का रेट 1975 से बढ़ाकर 2015 रुपए प्रति कुंटल, जौ 1600 से बढ़ाकर 1635 रुपए और चना 5100 से बढ़ाकर 5230 रुपए, मसूर की एमएसपी 5100 से बढ़ाकर 5500, सरसों का रेट 4650 से बढ़ाकर 5050 रुपए और सूरजमुखी से बढ़ाकर 5327 से बढ़कर 5441 रुपए किसानों को दिया जाएगा।
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न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी (minimum support price) वो रेट है जिस सरकारी एजेंसियां किसानों से अनाज की खरीद करती हैं। इससे पहले केंद्र सरकार ने 9 जून को खरीफ की फसलों के लिए 22 फसलों की एमएसपी घोषित की थी। जिसमें धान का रेट 72 रुपए बढ़ाया गया था। धान की खरीद अक्टूबर महीने से शुरु होगी। जबकि धान कटने के बाद अक्टूबर-नवंबर में ही गेहूं की बुवाई की जाती है। सरकार फसलों की बुवाई से पहले एमएसपी घोषित करती है, ताकि किसान उसके अनुरूप फसलों की बुवाई कर सके।
केंद्र सरकार ने कहा कि विपणन सीजन 2022-23 के लिए रबी फसलों (Rabi Crops) के लिए एमएसपी में वृद्धि केंद्रीय बजट 2018-19 में घोषित उत्पादन लागत के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर एमएसपी तय करने के सिद्धांत के अनुरूप है। किसान खेती में जितना खर्च करता है, उसके आधार पर होने वाले लाभ का अधिकतम अनुमान किया गया है। इस संदर्भ में गेहूं, कैनोला व सरसों (प्रत्येक में 100 प्रतिशत) लाभ होने का अनुमान है। इसके अलावा दाल (79 प्रतिशत), चना (74 प्रतिशत), जौ (60 प्रतिशत), कुसुम के फूल (50 प्रतिशत) के उत्पादन में लाभ होने का अनुमान है।
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गेहूं 40 रुपए कुंटल और डीजल 25 रुपए लीटर महंगा हुआ है- किसान
मध्य प्रदेश हरदा जिले के किसान हरिओम पटवारे इस बढ़ोतरी पर बात नहीं करना चाहते। वो कहते हैं, "बढ़ोतरी इतनी 'ज्यादा' (मजाकिया लहजे में) है कि बताते हुए भी आदमी शरमा जाए। सिर्फ 2 फीसदी बढ़ोतरी है। जबकि महंगाई के अनुरूप बढ़ोतरी कम से कम 10 फीसदी होनी चाहिए। आज 2000 रेट है तो अगले साल 2200 होना चाहिए। डीजल के दाम का हिसाब देख लेते तो पता चलता कि लागत के कितने फीसदी पैसे किसान को वापस आ रहे हैं।"
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राकेश टिकैत ने एमएसपी बढ़ोतरी को बताया धोखा, लागत पर उठाए सवाल
उन्होंने कहा कि अगर महंगाई दर की बात करें तो इस वर्ष 6% महंगाई में वृद्धि हुई है। जिस तरह से पिछले वर्ष समर्थन मूल्य में इजाफा किया गया था अगर उस फार्मूले को भी लागू किया जाए तो किसानों को 71 रुपए कम दिए गए हैं, जो सरकार एमएसपी को बड़ा कदम बता रही है उसने किसानों की जेब को काटने का काम किया है। दूसरी कुछ फसलों में थोड़ी बहुत वृद्धि की गई है लेकिन उन फसलों की खरीद न होने के कारण किसानों का माल बाजार में सस्ते मूल्य पर लूटा जाता है।"
टिकैत ने कहा कि सरकार को किसानों को यह भी बताना चाहिए कि पंतनगर विश्वविद्यालय और लुधियाना विश्वविद्यालय और जो दूसरे गेहूं उत्पादन करने वाले अनुसंधान केंद्र हैं उनकी क्या लागत आती है?
किसान नेता टिकैत ने अपने बयान में आगे कहा, "किसानों के साथ सरकारों द्वारा हमेशा अन्याय किया जाता रहा है। 1967 में 2.5 कुंतल गेहूं बेचकर एक तोला सोना खरीदा जा सकता था, आज अगर किसान को एक तोले सोने की खरीद करनी हो तो 25 कुंटल गेहूं बेचने की आवश्यकता पड़ेगी। असली अन्याय यही है। किसानों के साथ किसी भी सरकार ने आर्थिक न्याय नहीं किया है। किसानों को ऊर्जावान बनाना है तो उन्हें उनकी फसलों की कीमत देनी ही होगी"
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उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश में एमएसपी पर खरीद में सरकार ने रिकॉर्ड बनाया है। वर्तमान रबी विपणन सत्र 2021-22 18 अगस्त तक देशभर में 433.44 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की गई थी (जो कि अब तक की खरीद का सबसे उच्चतम स्तर है) जबकि बीते साल की इसी समान अवधि में 389.93 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया था। वहीं 5 सितंबर तक देश में 130.47 लाख किसानों से 889.62 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद हुई। जिसके बदले किसानों को 1,67,960.77 करोड़ रुपए मिले हैं।
लागत के अनुसार लाभकारी मूल्य और एमएसपी पर गारंटी मिले- भारतीय किसान संघ
भारतीय किसान संघ ने प्रधानमंत्री को सौंपे ज्ञापन में मांग की है कि सरकार देश के किसानों की लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य की प्रमुख मांग पर सकारात्मक विचार कर किसान हित में निर्णय ले। साथ ही भारतीय किसान संघ ने कहा कि दस दिवस में यदि कोई कार्यवाही हमारी मांगों पर नहीं की गई तो किसान संघ आंदोलन के अगले चरण की ओर बढ़ेगा।
भारतीय किसान संघ ने भारत सरकार के मुखिया को सुझाव दिया कि, "देश में उत्पादन बढ़ाने के साथ किसान की आय बढ़ाने व कृषि लागत कम करने की नीति पर काम करना चाहिये। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की बजाय लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य दिया जाना चाहिये। महंगाई के अनुपात में न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाया जाये। फिर जो लागत के आधार पर मूल्य घोषित हो उस पर किसान की उपज का बिक्री भी हो। चाहे वह मंडी के बाहर हो या फिर मंडी के अंदर या फिर सरकार खरीदे। लेकिन घोषित मूल्य से नीचे खरीदी को अपराध मानना होगा और इसके लिये कानून बनाया जाना जाये।"
ज्ञापन में कहा गया है कि एमएसपी घोषित होने के बाद भी मंडी में भाव उससे कम रहते हैं। कृषि आदान (एग्री इनपुट) लगातार महंगे हो रहे हैं और उसकी तुलना में एमएसपी बहुत कम है। इन तरह से कृषि आदान पूर्तिकर्ता व्यापारी, उद्योग चलाने वाली संस्थायें सभी लाभ कमा रहे हैं। लेकिन अन्न उत्पादन करने वाला गरीब किसान गरीब से और गरीब होता जा रहा है। बाजार भाव व न्यूनतम समर्थन मूल्य में सैकड़ों रूपयों का अंतर है।