'हम मर जाएंगे, लेकिन बागमती नदी पर तटबंध नहीं बनने देंगे'
 Umesh Kumar Ray |  Apr 05, 2021, 06:59 IST | 
 ‘हम मर जाएंगे
बिहार में बागमती नदी का बहुत कम ही हिस्सा है, जिस पर तटबंध नहीं बना है और मुक्त बहाव है। मुजफ्फरपुर जिले के इस हिस्से के किसान राज्य सरकार के उस प्रस्ताव के खिलाफ हैं, जिसमें सरकार इस मुक्त हिस्से में भी तटबंध बनाना चाहती है। उन्हें डर है कि इससे क्षेत्र में बाढ़ के हालात और बदतर होंगे व उनके खेतों को और नुकसान होगा।
    मुजफ्फरपुर (बिहार)। लल्लन मंडल का घर बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बागमती नदी के किनारे पर है। यह उनका तीसरा घर है, जिसे उन्होंने हाल के कुछ वर्षों में बनवाया है। उनके पहले के दो घर नदी के कटाव के जद में आ गए थे। उनका लगभग पांच एकड़ (2.03 हेक्टेयर) जमीन/ खेत भी नदी के इस कटाव में बह गया। इसके बावजूद वह बागमती नदी पर तटबंध का निर्माण (जिसे स्थानीय लोग बांध कहते हैं) नहीं चाहते हैं, जो कि सरकार द्वारा प्रस्तावित है।   
   
   
"ये तटबंध हमें बर्बाद कर देंगे। ये हमारे घरों, खेतों, अस्पतालों और स्कूलों को निगल जा रहे हैं। कटाव से होने वाले नुकसान को हम सह भी सकते हैं, लेकिन तटबंध के कारण होने वाले विनाश का सामना अब नहीं कर सकते, "गोसाईटोला गांव के लल्लन मंडल गाँव कनेक्शन को बताते हैं।
   
मंडल और उनके आस-पास के गाँव के किसान बागमती नदी के एक हिस्से पर तटबंध बनाने के राज्य सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ हैं और कोई भी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। इन लोगों को डर है कि तटबंध के कारण क्षेत्र में बाढ़ की तीव्रता बढ़ेगी और खेतों में भारी गाद जमा होगा। इससे खेतों की उर्वरा शक्ति भी कमजोर होगी।
   
     गोसाईटोला गांव के लल्लन मंडल का कहना है कि वह एक बार नदी के कटाव को तो सह सकते हैं लेकिन तटबंध के विनाश को नहीं सह सकते।
         गोसाईटोला गांव के लल्लन मंडल का कहना है कि वह एक बार नदी के कटाव को तो सह सकते हैं लेकिन तटबंध के विनाश को नहीं सह सकते।     
     
बिहार सरकार ने बागमती बाढ़ प्रबंधन योजना के तीसरे और पांचवें चरण के तहत एक नए तटबंध के निर्माण और एक पुराने तटबंध की ऊंचाई बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है। इस योजना के तहत, सरकार बागमती नदी के बाएं तट पर मुजफ्फरपुर के बेनीबाद से दरभंगा के हयाघाट तक 56 किलोमीटर लंबे तटबंध का निर्माण करेगी।
   
   
इसी तरह नदी के दाहिने किनारे पर मुजफ्फरपुर जिले के बेनीबाद गाँव से दरभंगा जिले के सोमरार हाट तक एक और 56 किलोमीटर लंबा तटबंध बनाया जाएगा। यह बिहार में लगभग 586 किलोमीटर लंबी बागमती नदी का एक छोटा सा खंड है, जो कि अभी भी 'मुक्त' है और जिस पर अभी तक तटबंध का निर्माण नहीं हुआ है।
   
     मानचित्र में लाल रेखा बताती है कि नदी के इस भाग में तटबंध का निर्माण हो चुका है, जबकि पीला भाग बताता है कि वहां पर तटबंध निर्माण प्रस्तावित है। (सोर्स- सेंट्रल वाटर कमीशन)
          मानचित्र में लाल रेखा बताती है कि नदी के इस भाग में तटबंध का निर्माण हो चुका है, जबकि पीला भाग बताता है कि वहां पर तटबंध निर्माण प्रस्तावित है। (सोर्स- सेंट्रल वाटर कमीशन)     
     
ग्रामीण चाहते हैं कि नदी का यह हिस्सा 'मुक्त' बना रहे। इस क्षेत्र में बाढ़ आने पर कुछ ही दिनों में बाढ़ का पानी निकल जाता है, लेकिन किसानों को डर है कि तटबंध बन जाने के बाद उनकेखेतों में तीन से चार महीने तक पानीभरा रहेगा और कम से कम एक सीजन (खरीफ-धान) की फसल बर्बाद हो जाएगी।
   
   
इसलिए आस-पास के सैकड़ों गाँवों के किसान 2012 से ही नदी के इस भाग पर तटबंध के निर्माण का विरोध कर रहे हैं। पिछले पांच-छह दशक में, बागमती नदी परभारत-नेपाल सीमा से सीतामढ़ी जिले के रुन्नी सैदपुर गाँव तक और खगड़िया के बड़लाघाट से लेकर दरभंगा जिले के हयाघाट तक तटबंधों का निर्माण किया गया है।
   
   बिहार भारत का सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य है। राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग के अनुसार,बिहार के 38 में से 28 जिले बाढ़ग्रस्त हैं।   
   
नेपाल से सटे बिहार के मैदानी इलाकों में कई नदियां बहती हैं। इसमें कोसी, गंडक, बागमती, कमला बलान और महानंदा नदी शामिल हैं।ये नदियां हिमालय सेगाद और तलछट को ले आती हैं और बिहार के मैदानी इलाकों को ऊपजाऊ बनाती हैं।
   
     मुजफ्फरपुर से गुजरती बागमती नदी
         मुजफ्फरपुर से गुजरती बागमती नदी     
     
बिहार सरकार हर साल आने वाले बाढ़ के 'समाधान' के रूप में तटबंधों को देखती है। तटबंध मूलरूप से मिट्टी और पत्थर के दीवार होते हैं।जमीन पर 10 से 12 मीटर और शीर्ष पर यह 5 मीटर चौड़े होते हैं। लोगों और उनकी संपत्ति को बाढ़ से बचाने के उद्देश्य से तटबंधों का निर्माण किया जाता है। लेकिन आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि ये तटबंध राज्य में बाढ़ की समस्याको दूर करने में विफल ही रहे हैं।
   
   
1954 तक बिहार में नदियों पर केवल 154 किलोमीटर तटबंध बनाए गए थे। 34 साल बाद 1988 तक, यह लंबाई 3,454 किलोमीटर तक पहुंच गई। मार्च 2017 तक, बिहार में तटबंधों की कुल लंबाई 3,759.94 किलोमीटर थी। बिहार जल संसाधन विभाग के अनुसार2005 से 2013 तक, अकेले बागमती पर लगभग 88.97 किलोमीटर लंबाई का तटबंध बनाया गया।
   
हालांकिइसके साथ ही बिहार में हर सालबाढ़ से प्रभावित क्षेत्र बढ़ते गए। 1954 में जहां बिहार के सिर्फ 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही बाढ़ का खतरा था, 1988 में यह बढ़कर 65 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच गया। वर्तमान में भी यही चलन (ट्रेंड) जारी है। (ग्राफ देखें)
   
     (ग्राफ सोर्स- दी थर्ड पोल)
          (ग्राफ सोर्स- दी थर्ड पोल)     
     
          लल्लन मंडल की तरह बागमती नदी के किनारे रहने वाले हजारों किसान, नदी के कटान के कारण कई बार अपना जमीन, खेत और घरों को अप्रत्याशित रूप से खो चुके हैं, लेकिन फिर भी नदी के प्रति उनका कोई रोष नहीं है। इसका कारण यह है कि यह नदी अपने साथ गाद भी लाता है, जो कि खेतों को ऊपजाऊ बनाता है।   
   
2012 से ही किसान बागमती पर बांध बनाने का विरोध कर रहे हैं। इसीसाल'चासबास जीवन बचाओ बागमती संघर्ष मोर्चा' नाम से एक संगठन भी बनाया गया था, जिसमें सैकड़ों सामाजिक कार्यकर्ता और 120 गाँव के प्रतिनिधि मौजूद थे।इस संगठन का उद्देश्य है-तटबंध के खिलाफ आंदोलन को और मजबूत करना।
   
बागमती नदी पर भारत-नेपाल बॉर्डर और दरभंगा की तरफ सेतू तटबंध बन चुका है। नदी के दाहिने किनारे को 201.8 किलोमीटर और बाएं किनारे को 127.5 किलोमीटर तक तटबंधित किया गया है। लेकिन यह विरोध उस मध्य भाग में हो रहा है, जहां पर अभी भी तटबंध बनाया जाना बाकी है।
   
     
         
2007 में,बागमती बाढ़ प्रबंधन योजना को बागमती के शेष भाग पर तटबंध बनाने के लिए तैयार किया गया था। जल संसाधन और सिंचाई मंत्रालय की सलाहकार समिति की बैठक में इस प्रस्ताव को स्वीकार किया गया। इस योजना के तहत, कई चरणों में तटबंध का निर्माण किया जाना था।
   
   
लेकिन स्थानीय ग्रामीणों के विरोध प्रदर्शन के कारण यह परियोजना शुरू नहीं हो पाई। बागमती संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवेंद्र कुमार ठाकुर गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "हम सरकार की गोली से मरने के लिए तैयार हैं, लेकिन तटबंध बनने के बाद बाढ़ के पानी में मरने के लिए नहीं। हमारा जीवन खेती से चलता हैऔर तटबंध खेती को बर्बाद कर देगा। हम इसे बनने नहीं देंगे।"
   
गंगा मुक्ति आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता अनिल प्रकाश कहते हैं, "ग्रामीणों के विरोध के कारण सरकार ने एक तरफ से तटबंध निर्माण का काम तो रोक दिया, लेकिन 2017 में दूसरी तरफ से तटबंध निर्माण का काम शुरू है।"
   
   बागमती पर तटबंध निर्माण के विरोध को देखते हुए 27 अप्रैल, 2017 को आठ सदस्यीय एक रिव्यू कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी में नदी विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और इंजीनियर शामिल थे। इस कमेटी का कार्यकाल एक महीने का था, लेकिन 27 मई, 2017 तक इसकी कोई बैठक नहीं हुई।   
   
बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के तकनीकी सलाहकार अंजनी कुमार सिंह ने पुष्टि की कि इस रिव्यू कमेटी की केवल एक बैठक पिछले साढ़े तीन वर्षों में हुई है। पिछले साल 14 मई को, इस कमेटी का कार्यकाल 31 दिसंबर, 2020 तक बढ़ाया गया था।
   
     बागमती नदी पर बना एक पीपे का पुल, जो दो गांवों को एक-दूसरे से जोड़ता है
          बागमती नदी पर बना एक पीपे का पुल, जो दो गांवों को एक-दूसरे से जोड़ता है     
     
सिंह के मुताबिक, "तटबंध के पास रहने वाले और मुआवजा राशि ले चुके लोग ही विरोध कर रहे हैं। बागमती नदी के अधिकांश क्षेत्र में तटबंध है, तो हम एक छोटे से क्षेत्र को नहीं छोड़ सकते। जो लोग तटबंध की बाहरी परिधि में रह रहे हैं, उन्हें इससे लाभ ही होगा।"
   
   
हालांकि विशेषज्ञ इससे अलग राय रखते हैं। "बाढ़ नियंत्रण के लिए तटबंधों का निर्माण लोगों को लाभ पहुंचाने के बजाय नुकसान पहुंचा रहा है। अब तक जितने तटबंध निर्माण हुए हैं, उनका मूल्यांकन करने के बाद सरकार को यह बताना चाहिए कि लोगों ने अब तक इससे क्या हासिल किया है? अगर कोई फायदा नहीं है, तो तटबंधों का निर्माण रुक जाना चाहिए," रिव्यू कमेंट के सदस्य दिनेश मिश्रा कहते हैं। वह बिहार में बाढ़ पर काम करने वाले गैर-लाभकारी संगठन 'बाढ़ मुक्ति अभियान' के संयोजक भी हैं।
   
"सरकार के रवैये से यह स्पष्ट है कि वह किसी भी कीमत पर तटबंध बनाना चाहती है। रिव्यू कमेटी का गठन केवल प्रदर्शनकारी ग्रामीणों को शांत करने के लिए किया गया है," रिव्यू कमेटी के सदस्य अनिल प्रकाश कहते हैं।
   
   तटबंध निर्माण के बाद कई लोगों का खेत, घर, जमीन काल के गाल में समा गया। स्थानीय लोगों के विरोध का कारण ऐसे लोगों की पीड़ा के कारण ही है, जो तटबंध निर्माण के बाद से ही इसका खामियाजा भुगत रहे हैं।   
   
दस साल पहले, बसघट्टा गांव में एक तटबंध बनाया गया था। तबसे इस गाँव में आने वाले बाढ़ का पैटर्न बदल गया है। गोसांई टोला से लगभग 20 किलोमीटर दूर बसेघट्टा गाँव के 75 वर्षीय धनेश्वर दास कहते हैं, "तटबंध हमारे लिए एक चुनौती बन गया है। बाढ़ के पानी से धान की फसल बर्बाद होती है, पैदावार में भी काफी कमी आई है।"
   
     धनेश्वर दास का कहना है कि तटबंध के कारण उनको बहुत नुकसान हुआ है।
         धनेश्वर दास का कहना है कि तटबंध के कारण उनको बहुत नुकसान हुआ है।     
     
बसघट्टा के 60 वर्षीय महादेव दास का भी तटबंध से नुकसान हुआ है। "मेरे पास लगभग बीस एकड़ [8.09 हेक्टेयर] खेत है। 2008-2009 में बांध के निर्माण के बाद, मेरा आधा खेत बर्बाद हो गया। खेत में अब चार से पांच महीने तक रेत और पानी जमा रहता है।
   
   
"मेरे खेत में पहले सैंकड़ों क्विंटल चावल पैदा होते थे, अब तो पूजा करने के लिए भी पर्याप्त चावल नहीं होता," महादेव आगे कहते हैं।
   
विशेषज्ञों ने बागमती नदी पर आगे तटबंध ना बनाने की चेतावनी दी है। "नदी में भारी मात्रा में गाद के कारण बागमती अपना रास्ता बहुत जल्दी ही बदल देती है। तटबंधों का निर्माण करके आप नदी को अपना मार्ग बदलने के लिए मजबूर कर रहे हैं, "भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में पृथ्वी विज्ञान विभाग में प्रोफेसर राजीव सिन्हा, गाँव कनेक्शन से बताते हैं।
   
इस बीच, धनेश्वर हाथ में दरांती और लाठी लेकर खड़े हैं। उनके चेहरे पर एक दृढ़ता है। वह चाहते हैं कि बागमती उसी तरह मुक्त होकर बहे, जैसे उनके बचपन में बहती थी।
   
अनुवाद: सुरभि शुक्ला
   
इस खबर को अंग्रेजी में यहां पढ़ सकते हैं
   
 
"ये तटबंध हमें बर्बाद कर देंगे। ये हमारे घरों, खेतों, अस्पतालों और स्कूलों को निगल जा रहे हैं। कटाव से होने वाले नुकसान को हम सह भी सकते हैं, लेकिन तटबंध के कारण होने वाले विनाश का सामना अब नहीं कर सकते, "गोसाईटोला गांव के लल्लन मंडल गाँव कनेक्शन को बताते हैं।
मंडल और उनके आस-पास के गाँव के किसान बागमती नदी के एक हिस्से पर तटबंध बनाने के राज्य सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ हैं और कोई भी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। इन लोगों को डर है कि तटबंध के कारण क्षेत्र में बाढ़ की तीव्रता बढ़ेगी और खेतों में भारी गाद जमा होगा। इससे खेतों की उर्वरा शक्ति भी कमजोर होगी।
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बिहार सरकार ने बागमती बाढ़ प्रबंधन योजना के तीसरे और पांचवें चरण के तहत एक नए तटबंध के निर्माण और एक पुराने तटबंध की ऊंचाई बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है। इस योजना के तहत, सरकार बागमती नदी के बाएं तट पर मुजफ्फरपुर के बेनीबाद से दरभंगा के हयाघाट तक 56 किलोमीटर लंबे तटबंध का निर्माण करेगी।
इसी तरह नदी के दाहिने किनारे पर मुजफ्फरपुर जिले के बेनीबाद गाँव से दरभंगा जिले के सोमरार हाट तक एक और 56 किलोमीटर लंबा तटबंध बनाया जाएगा। यह बिहार में लगभग 586 किलोमीटर लंबी बागमती नदी का एक छोटा सा खंड है, जो कि अभी भी 'मुक्त' है और जिस पर अभी तक तटबंध का निर्माण नहीं हुआ है।
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ग्रामीण चाहते हैं कि नदी का यह हिस्सा 'मुक्त' बना रहे। इस क्षेत्र में बाढ़ आने पर कुछ ही दिनों में बाढ़ का पानी निकल जाता है, लेकिन किसानों को डर है कि तटबंध बन जाने के बाद उनकेखेतों में तीन से चार महीने तक पानीभरा रहेगा और कम से कम एक सीजन (खरीफ-धान) की फसल बर्बाद हो जाएगी।
इसलिए आस-पास के सैकड़ों गाँवों के किसान 2012 से ही नदी के इस भाग पर तटबंध के निर्माण का विरोध कर रहे हैं। पिछले पांच-छह दशक में, बागमती नदी परभारत-नेपाल सीमा से सीतामढ़ी जिले के रुन्नी सैदपुर गाँव तक और खगड़िया के बड़लाघाट से लेकर दरभंगा जिले के हयाघाट तक तटबंधों का निर्माण किया गया है।
तटबंध और बाढ़
नेपाल से सटे बिहार के मैदानी इलाकों में कई नदियां बहती हैं। इसमें कोसी, गंडक, बागमती, कमला बलान और महानंदा नदी शामिल हैं।ये नदियां हिमालय सेगाद और तलछट को ले आती हैं और बिहार के मैदानी इलाकों को ऊपजाऊ बनाती हैं।
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बिहार सरकार हर साल आने वाले बाढ़ के 'समाधान' के रूप में तटबंधों को देखती है। तटबंध मूलरूप से मिट्टी और पत्थर के दीवार होते हैं।जमीन पर 10 से 12 मीटर और शीर्ष पर यह 5 मीटर चौड़े होते हैं। लोगों और उनकी संपत्ति को बाढ़ से बचाने के उद्देश्य से तटबंधों का निर्माण किया जाता है। लेकिन आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि ये तटबंध राज्य में बाढ़ की समस्याको दूर करने में विफल ही रहे हैं।
1954 तक बिहार में नदियों पर केवल 154 किलोमीटर तटबंध बनाए गए थे। 34 साल बाद 1988 तक, यह लंबाई 3,454 किलोमीटर तक पहुंच गई। मार्च 2017 तक, बिहार में तटबंधों की कुल लंबाई 3,759.94 किलोमीटर थी। बिहार जल संसाधन विभाग के अनुसार2005 से 2013 तक, अकेले बागमती पर लगभग 88.97 किलोमीटर लंबाई का तटबंध बनाया गया।
हालांकिइसके साथ ही बिहार में हर सालबाढ़ से प्रभावित क्षेत्र बढ़ते गए। 1954 में जहां बिहार के सिर्फ 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही बाढ़ का खतरा था, 1988 में यह बढ़कर 65 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच गया। वर्तमान में भी यही चलन (ट्रेंड) जारी है। (ग्राफ देखें)
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बागमती पर तटबंध के निर्माण के विरोध में 120 गाँव
2012 से ही किसान बागमती पर बांध बनाने का विरोध कर रहे हैं। इसीसाल'चासबास जीवन बचाओ बागमती संघर्ष मोर्चा' नाम से एक संगठन भी बनाया गया था, जिसमें सैकड़ों सामाजिक कार्यकर्ता और 120 गाँव के प्रतिनिधि मौजूद थे।इस संगठन का उद्देश्य है-तटबंध के खिलाफ आंदोलन को और मजबूत करना।
बागमती नदी पर भारत-नेपाल बॉर्डर और दरभंगा की तरफ सेतू तटबंध बन चुका है। नदी के दाहिने किनारे को 201.8 किलोमीटर और बाएं किनारे को 127.5 किलोमीटर तक तटबंधित किया गया है। लेकिन यह विरोध उस मध्य भाग में हो रहा है, जहां पर अभी भी तटबंध बनाया जाना बाकी है।
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2007 में,बागमती बाढ़ प्रबंधन योजना को बागमती के शेष भाग पर तटबंध बनाने के लिए तैयार किया गया था। जल संसाधन और सिंचाई मंत्रालय की सलाहकार समिति की बैठक में इस प्रस्ताव को स्वीकार किया गया। इस योजना के तहत, कई चरणों में तटबंध का निर्माण किया जाना था।
लेकिन स्थानीय ग्रामीणों के विरोध प्रदर्शन के कारण यह परियोजना शुरू नहीं हो पाई। बागमती संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवेंद्र कुमार ठाकुर गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "हम सरकार की गोली से मरने के लिए तैयार हैं, लेकिन तटबंध बनने के बाद बाढ़ के पानी में मरने के लिए नहीं। हमारा जीवन खेती से चलता हैऔर तटबंध खेती को बर्बाद कर देगा। हम इसे बनने नहीं देंगे।"
गंगा मुक्ति आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता अनिल प्रकाश कहते हैं, "ग्रामीणों के विरोध के कारण सरकार ने एक तरफ से तटबंध निर्माण का काम तो रोक दिया, लेकिन 2017 में दूसरी तरफ से तटबंध निर्माण का काम शुरू है।"
रिव्यू कमेटी
बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के तकनीकी सलाहकार अंजनी कुमार सिंह ने पुष्टि की कि इस रिव्यू कमेटी की केवल एक बैठक पिछले साढ़े तीन वर्षों में हुई है। पिछले साल 14 मई को, इस कमेटी का कार्यकाल 31 दिसंबर, 2020 तक बढ़ाया गया था।
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सिंह के मुताबिक, "तटबंध के पास रहने वाले और मुआवजा राशि ले चुके लोग ही विरोध कर रहे हैं। बागमती नदी के अधिकांश क्षेत्र में तटबंध है, तो हम एक छोटे से क्षेत्र को नहीं छोड़ सकते। जो लोग तटबंध की बाहरी परिधि में रह रहे हैं, उन्हें इससे लाभ ही होगा।"
हालांकि विशेषज्ञ इससे अलग राय रखते हैं। "बाढ़ नियंत्रण के लिए तटबंधों का निर्माण लोगों को लाभ पहुंचाने के बजाय नुकसान पहुंचा रहा है। अब तक जितने तटबंध निर्माण हुए हैं, उनका मूल्यांकन करने के बाद सरकार को यह बताना चाहिए कि लोगों ने अब तक इससे क्या हासिल किया है? अगर कोई फायदा नहीं है, तो तटबंधों का निर्माण रुक जाना चाहिए," रिव्यू कमेंट के सदस्य दिनेश मिश्रा कहते हैं। वह बिहार में बाढ़ पर काम करने वाले गैर-लाभकारी संगठन 'बाढ़ मुक्ति अभियान' के संयोजक भी हैं।
"सरकार के रवैये से यह स्पष्ट है कि वह किसी भी कीमत पर तटबंध बनाना चाहती है। रिव्यू कमेटी का गठन केवल प्रदर्शनकारी ग्रामीणों को शांत करने के लिए किया गया है," रिव्यू कमेटी के सदस्य अनिल प्रकाश कहते हैं।
लोग तटबंध के खिलाफ क्यों हैं?
दस साल पहले, बसघट्टा गांव में एक तटबंध बनाया गया था। तबसे इस गाँव में आने वाले बाढ़ का पैटर्न बदल गया है। गोसांई टोला से लगभग 20 किलोमीटर दूर बसेघट्टा गाँव के 75 वर्षीय धनेश्वर दास कहते हैं, "तटबंध हमारे लिए एक चुनौती बन गया है। बाढ़ के पानी से धान की फसल बर्बाद होती है, पैदावार में भी काफी कमी आई है।"
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बसघट्टा के 60 वर्षीय महादेव दास का भी तटबंध से नुकसान हुआ है। "मेरे पास लगभग बीस एकड़ [8.09 हेक्टेयर] खेत है। 2008-2009 में बांध के निर्माण के बाद, मेरा आधा खेत बर्बाद हो गया। खेत में अब चार से पांच महीने तक रेत और पानी जमा रहता है।
"मेरे खेत में पहले सैंकड़ों क्विंटल चावल पैदा होते थे, अब तो पूजा करने के लिए भी पर्याप्त चावल नहीं होता," महादेव आगे कहते हैं।
विशेषज्ञों ने बागमती नदी पर आगे तटबंध ना बनाने की चेतावनी दी है। "नदी में भारी मात्रा में गाद के कारण बागमती अपना रास्ता बहुत जल्दी ही बदल देती है। तटबंधों का निर्माण करके आप नदी को अपना मार्ग बदलने के लिए मजबूर कर रहे हैं, "भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में पृथ्वी विज्ञान विभाग में प्रोफेसर राजीव सिन्हा, गाँव कनेक्शन से बताते हैं।
इस बीच, धनेश्वर हाथ में दरांती और लाठी लेकर खड़े हैं। उनके चेहरे पर एक दृढ़ता है। वह चाहते हैं कि बागमती उसी तरह मुक्त होकर बहे, जैसे उनके बचपन में बहती थी।
अनुवाद: सुरभि शुक्ला
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