बनारस: गंगा घाट पर रोजी-रोटी कमाने वाले नाविक कर्ज में डूबे, अभी भी पर्यटकों का कर रहे इंतजार
 Anand kumar |  Mar 31, 2021, 13:55 IST
बनारस: गंगा घाट पर रोजी-रोटी कमाने वाले नाविक कर्ज में डूबे
Highlight of the story: कोरोना के चलते देश के कुछ हिस्सों में दोबारा लॉकडाउन लग गया है। देश के ज्यादातर हिस्सों में एहतियात के साथ सभी काम जारी है लेकिन कई सेक्टर का कामकाज ढर्रे पिछले लॉकडाउन के बाद से ही ढर्रे पर नहीं आ पाया है, इन्हीं में एक हैं वो नाविक जो बनरास के घाटों पर नाव चलाकर अपनी आजीविका चलाते थे।
    वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। "सुबह से अभी तक 200 रुपए की कमाई हो पाई है, खुद आप समझ जाइए कि काम कैसा चल रहा है।" आजकल काम कैसा चल रहा हैं, इस सवाल के जवाब में शंकर मांझी उखड़ते हुए कहते हैं। वे रहने वाले तो वाराणसी के मानसरोवर घाट के हैं लेकिन पिछले 30 साल से रविदास घाट पर नाव चलाते हैं। गांव कनेक्शन की टीम जब दोपहर के वक्त उनसे मिलने पहुंचे तो वो घाट पर पसरे सन्नाटे के बीच लेटे हुए थे।   
   
   
लॉकडाउन में शंकर माझी की स्थिति इतनी खराब हो गई कि परिवार का भरण-पोषण करने के लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ा। "90 हजार रुपए से ऊपर का कर्जा लिया है और घर में रखे गहने तक को बेचना पड़ा। समझ नहीं आ रहा है कि कैसे यह कर्ज चुका पाएंगे।" वे गाँव कनेक्शन से कहते हैं।
   
   
कितनी कमाई हो जा रही है? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, "बस किसी तरह दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त हो जा रहा है। जब पता चला कि कामगारों को राज्य सरकार 1000-1000 रुपए देगी, तब हमने भी फॉर्म भर के जमा किया, लेकिन आज तक बैंक खाते में कोई पैसा नहीं आया।"
   
   
शंकर ये जरुर बताते हैं कि लॉकडॉउन के दौरान उन्हें सरकारी कोटा से पांच किलो चावल और गेहूं जरूर मिला है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत सरकार ने लॉकडाउन के दौरान 80 करोड़ लोगों को मार्च2020 से नवंबर 2020 तक मुफ्त राशन दिया था।
   
देश के कई हिस्से एक बार फिर कोरोना महामारी की चपेट में हैं। कुछ महीने पहले लग रहा था कि अब सब कुछ सामान्य हो जायेगा, फिर अचानक से कोरोना के मामले बढ़ने लगे हैं। हालांकि बनारस में स्थिति इस समय सामान्य सी लग रही है। बाजार खुले हैं, कहीं कोई रोक-टोक नहीं है।
   
   
    
   
   
इस सवाल के जवाब में नाविकों के संगठन वाराणसी निषाद राज कल्याण समिति ने बताया कि लॉकडाउन के बाद से लगभग 30 फीसदी ही नाविक नाव चलाकर रोजी-रोटी की कमाई कर पा रहे हैं। बाकि ने दूसरे काम अपना लिए हैं।
   
   
   लॉकडाउन के एक साल हो जाने के बाद स्थिति में कितना बदलाव आया है? इस सवाल के जवाब में वाराणसी निषाद राज कल्याण समिति के अध्यक्ष प्रदीप सहानी (42 वर्ष) कहते हैं, "नाविकों का रोजगार पूरी तरह से पर्यटन पर निर्भर करता है। लॉकडाउन का असर उन सभी लोगों पर है जिनकी कमाई पर्यटन पर निर्भर करती है। सबसे ज्यादा असर पड़ता है घाट के किनारे नाविकों पर। विदेशी पर्यटकों के नहीं आने से नाविकों की कोई कमाई नहीं हो पा रही है। घरेलू पर्यटक भी पहले की तरह नाव पर सैर नहीं कर रहे हैं।"   
   
नाविकों के सामने चुनौती है कि सैलानी अभी भी बनारस के घाट घूमने नहीं आ रहे हैं। नाविक शंकर बताते हैं, "अपने ही देश में दिल्ली, कोलकाता, मुंबई आदि स्थानों से जो पर्यटक घूमने आते हैं, वे भी इन दिनों घूमने नहीं आ रहे हैं। विदेशी पर्यटक तो ही बहुत कम रहे।" भारत सरकार ने अभी भी विदेशी पर्यटकों पर रोक लगा रखी है।
   
   
    
   
   
नाविकों के एक और संगठन "जय मां गंगा एसोसिएशन" के अनुसार अस्सी से लेकर राजघाट तक लगभग 3,500 नावें चलती हैं और लगभग 14 हजार नाविक हैं। अनुमान के मुताबिक 50 हजार से ज्यादा लोगों की जीविका नौका संचालन से होने वाली कमाई पर ही निर्भर करती हैं। नाविकों के लिए वैसे ही सालभर में लगभग तीन महीने का अघोषित लॉकडाउन लगा रहता है, क्योंकि बारिश के बाद तीन महीने तक नौका संचालन पर रोक लग जाती है।
   
प्रदीप सहानी कहते हैं, "इस साल जनवरी महीने में माझी समाज कमाई बढ़ गई थी, पहले जितनी तो नहीं लेकिन उसकी आधी जरुर हो गई थी। ऐसा लग रहा था कि जल्द ही यह कारोबार वापस पटरी पर लौटेगा। इस बीच कोरोना के मामले फिर से बढ़ने लगे हैं जिस कारण अब घरेलू पर्यटक भी कम आ रहे हैं। आज के दिन में नाविक बोहनी को भी मोहताज हो गया है 3 से 4 दिनों में एक–दो ग्राहक मिल जाते हैं।"
   
   
   बनारस का अस्सी घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट और दशाश्वमेध घाट उन घाटों की सूची में शामिल हैं, जहां पर्यटकों की आवाजाही काफी रहती हैं। इसके चलते इन घाटों पर नाव चलाने वाले नाविकों की कमाई अन्य घाटों पर नाव चलाने वाले नाविकों की तुलना में ज्यादा होती है। इन्हीं घाटों में से एक है शिवालय घाट। यहां के निवासी प्रमोद माझी (53 वर्ष) 1978 से गंगा में नाव चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं।   
   
   
प्रमोद माझी से जब हमने पूछा कि इस बार देव दीपावली पर कैसी कमाई हुई? इसके जवाब में प्रमोद माझी ने गांव कनेक्शन को बताया, "देव दीपावली के मौके पर ही हम लोग साल भर में आय का मुख्य जरिया मान कर चलते हैं। इसी पैसे से ही नाव की मरम्मत करा पाते हैं, लेकिन इस बार की देव दीपावली नाविकों के लिए काफी नीरस रही।"
   
    
वजह पूछने पर वे कहते हैं, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन के कारण जिन क्षेत्रों में उन्हें घूमना था, उसे जिला प्रशासन ने प्रतिबंधित कर दिया था। नाविकों के विरोध के बाद प्रशासन ने देर रात अनुमति दी इसके चलते बहुत लोगों यहां तक कि नाविकों को भी सूचना नहीं मिल पाई।
   
   
देव दीपावली पर पर प्रशासन ने राजघाट से ललिता घाट तक नौका संचालन पर रोक लगा दी गई थी, बाकी के घाटों पर नौका संचालन की अनुमति थी लेकिन नाविक संगठनों के ऐलान किया कि पूरे घाट पर नौका संचालन नहीं करेंगे। इसके बाद देव दीपावली से एक दिन पहले की रात में जिला प्रशासन ने नौका संचालन करने की अनुमति दे दी।
   
    
   
   
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देव दीपावली मोदी 30 नवम्बर को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दौरे पर थे जहाँ उन्होंने सड़क मार्ग से 40 किमी की यात्रा की थी।
   
   
   पांडेय घाट निवासी नाविक राकेश सहानी (42 वर्ष) सरकार के प्रति नाराजगी जताते हुए कहते हैं, "सरकार अनलॉक करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गई, लेकिन पर्यटन में पाबंदियों के चलते नाविकों की स्थिति में अभी भी कोई खास बदलाव नहीं आया है। नाविकों की इतनी भी कमाई नहीं हो पा रही है कि वे अपने नावों की मरम्मत का खर्चा निकाल पाए। लॉकडाउन की वजह से नाविक 5 साल पीछे हो गये हैं। इसका कारण है कि सरकार ने बनारस के नाविकों पर जरा सा भी ध्यान नहीं दिया।   
   
    
   
   
लॉकडाउन के दौरान उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कहा था कि प्रदेश में सभी कामगारों के खातों में 1000-1000 रुपए परिवार के भरण-पोषण के लिए भेजे जाएंगे।
   
    
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लॉकडाउन में शंकर माझी की स्थिति इतनी खराब हो गई कि परिवार का भरण-पोषण करने के लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ा। "90 हजार रुपए से ऊपर का कर्जा लिया है और घर में रखे गहने तक को बेचना पड़ा। समझ नहीं आ रहा है कि कैसे यह कर्ज चुका पाएंगे।" वे गाँव कनेक्शन से कहते हैं।
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कितनी कमाई हो जा रही है? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, "बस किसी तरह दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त हो जा रहा है। जब पता चला कि कामगारों को राज्य सरकार 1000-1000 रुपए देगी, तब हमने भी फॉर्म भर के जमा किया, लेकिन आज तक बैंक खाते में कोई पैसा नहीं आया।"
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शंकर ये जरुर बताते हैं कि लॉकडॉउन के दौरान उन्हें सरकारी कोटा से पांच किलो चावल और गेहूं जरूर मिला है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत सरकार ने लॉकडाउन के दौरान 80 करोड़ लोगों को मार्च2020 से नवंबर 2020 तक मुफ्त राशन दिया था।
देश के कई हिस्से एक बार फिर कोरोना महामारी की चपेट में हैं। कुछ महीने पहले लग रहा था कि अब सब कुछ सामान्य हो जायेगा, फिर अचानक से कोरोना के मामले बढ़ने लगे हैं। हालांकि बनारस में स्थिति इस समय सामान्य सी लग रही है। बाजार खुले हैं, कहीं कोई रोक-टोक नहीं है।
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इस सवाल के जवाब में नाविकों के संगठन वाराणसी निषाद राज कल्याण समिति ने बताया कि लॉकडाउन के बाद से लगभग 30 फीसदी ही नाविक नाव चलाकर रोजी-रोटी की कमाई कर पा रहे हैं। बाकि ने दूसरे काम अपना लिए हैं।
पर्यटकों का लंबा इंतजार
नाविकों के सामने चुनौती है कि सैलानी अभी भी बनारस के घाट घूमने नहीं आ रहे हैं। नाविक शंकर बताते हैं, "अपने ही देश में दिल्ली, कोलकाता, मुंबई आदि स्थानों से जो पर्यटक घूमने आते हैं, वे भी इन दिनों घूमने नहीं आ रहे हैं। विदेशी पर्यटक तो ही बहुत कम रहे।" भारत सरकार ने अभी भी विदेशी पर्यटकों पर रोक लगा रखी है।
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नाविकों के एक और संगठन "जय मां गंगा एसोसिएशन" के अनुसार अस्सी से लेकर राजघाट तक लगभग 3,500 नावें चलती हैं और लगभग 14 हजार नाविक हैं। अनुमान के मुताबिक 50 हजार से ज्यादा लोगों की जीविका नौका संचालन से होने वाली कमाई पर ही निर्भर करती हैं। नाविकों के लिए वैसे ही सालभर में लगभग तीन महीने का अघोषित लॉकडाउन लगा रहता है, क्योंकि बारिश के बाद तीन महीने तक नौका संचालन पर रोक लग जाती है।
प्रदीप सहानी कहते हैं, "इस साल जनवरी महीने में माझी समाज कमाई बढ़ गई थी, पहले जितनी तो नहीं लेकिन उसकी आधी जरुर हो गई थी। ऐसा लग रहा था कि जल्द ही यह कारोबार वापस पटरी पर लौटेगा। इस बीच कोरोना के मामले फिर से बढ़ने लगे हैं जिस कारण अब घरेलू पर्यटक भी कम आ रहे हैं। आज के दिन में नाविक बोहनी को भी मोहताज हो गया है 3 से 4 दिनों में एक–दो ग्राहक मिल जाते हैं।"
देव दीपावाली पर भी नहीं हो पाई कमाई
प्रमोद माझी से जब हमने पूछा कि इस बार देव दीपावली पर कैसी कमाई हुई? इसके जवाब में प्रमोद माझी ने गांव कनेक्शन को बताया, "देव दीपावली के मौके पर ही हम लोग साल भर में आय का मुख्य जरिया मान कर चलते हैं। इसी पैसे से ही नाव की मरम्मत करा पाते हैं, लेकिन इस बार की देव दीपावली नाविकों के लिए काफी नीरस रही।"
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वजह पूछने पर वे कहते हैं, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन के कारण जिन क्षेत्रों में उन्हें घूमना था, उसे जिला प्रशासन ने प्रतिबंधित कर दिया था। नाविकों के विरोध के बाद प्रशासन ने देर रात अनुमति दी इसके चलते बहुत लोगों यहां तक कि नाविकों को भी सूचना नहीं मिल पाई।
देव दीपावली पर पर प्रशासन ने राजघाट से ललिता घाट तक नौका संचालन पर रोक लगा दी गई थी, बाकी के घाटों पर नौका संचालन की अनुमति थी लेकिन नाविक संगठनों के ऐलान किया कि पूरे घाट पर नौका संचालन नहीं करेंगे। इसके बाद देव दीपावली से एक दिन पहले की रात में जिला प्रशासन ने नौका संचालन करने की अनुमति दे दी।
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देव दीपावली मोदी 30 नवम्बर को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दौरे पर थे जहाँ उन्होंने सड़क मार्ग से 40 किमी की यात्रा की थी।
नहीं मिले 1-1 हजार रुपए
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लॉकडाउन के दौरान उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कहा था कि प्रदेश में सभी कामगारों के खातों में 1000-1000 रुपए परिवार के भरण-पोषण के लिए भेजे जाएंगे।