जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में कोयले और तेल के खतरे से आगाह करता डायनासोर
Hridayesh Joshi | Dec 12, 2018, 08:51 IST
जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में कोयले और तेल के खतरे से आगाह करता डायनासोर
Highlight of the story:
पोलैंड में गांव कनेक्शन...
पोलैंड के कटोविस में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में बड़ी-बड़ी तेल और कोयला कंपनियों के खिलाफ प्रदर्शन तेज़ हो रहे हैं। कई सामाजिक संगठनों और विकासशील देशों का आरोप है कि संयुक्त राष्ट्र के इस सम्मलेन में कोयले और तेल को बढ़ावा देने वाली कंपनियों के प्रतिनिधियों के प्रवेश पर पाबंदी होनी चाहिये।
इस बीच अमेरिका, रूस, कुवैत और सऊदी अरब जैसे देश तेल कंपनियों के हितों के लिये लगातार पैरवी कर रहे हैं। गौरतलब है कि इन देशों के आर्थिक हित ऐसे ईंधन को बेचने से जुड़े हैं। ट्रंप प्रशासन ने तो सोमवार को कोयले के प्रयोग की पैरवी के लिये सम्मेलन स्थल पर बाकायदा एक कार्यक्रम किया, जिसका जमकर विरोध हुआ।
पोलैंड में चल रही क्लाइमेट चेंज मीट में कोयले और तेल के खतरो को जताने के लिए लोगों ने लिया डायनासोर का सराहा। फोटो ह्दयेश जोशी
पोलैंड में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में अब मंत्री स्तर की वार्ता शुरू हो चुकी है लेकिन सवाल यही बना है कि तेल को बढ़ावा देने की बात होगी को जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य और पेरिस संधि के मकसद को कैसे हासिल किया जा सकेगा, जिसके तहत साफ सुथरी ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ाने का वादा हर देश ने किया है।
सामाजिक संगठनों ने इस बीच अलग अलग तरीके से कार्बन ऊत्सर्जन करने वाले ईंधन के खिलाफ प्रदर्शन जारी रखे हैं। इसी के तहत एक काले डायनासोर के ज़रिये कोयले और तेल के ईंधन से खतरों को दिखाया जा रहा है। जितना कार्बन ऊत्सर्जन होगा उतना ही धरती का तापमान बढ़ेगा और जलवायु परिवर्तन का असर महसूस होगा।
अमीर देशों में औद्योगिक क्रांति के बाद से वायुमंडल में फैले कार्बन की वजह से धरती का तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों की संस्था आईपीसीसी ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में इन ख़तरों से आगाह किया है और कहा है कि अगर 2030 तक धरती का तापमान रोकने के लिये पर्याप्त कदम नहीं उठाये गये तो उसके भयानक परिणाम होंगे।
भारत जैसे देशों में जहां भौगोलिक विविधता है और हज़ारों ग्लेशियरों के साथ जंगल, पठार और 7500 किलोमीटर लम्बी समुद्र रेखा है जलवायु परिवर्तन के खतरे सबसे अधिक हैं। जानकारों का मानना है कि धरती का तापमान बढ़ता रहा तो तितली और गज जैसे चक्रवाती तूफान और केरल की विनाशकारी बाढ़ और केदारनाथ आपदा जैसी घटनायें और बढ़ सकती है। किसानों की फसल को नुकसान और मछुआरों के लिये बड़ी दिक्कतों के साथ देश की गरीब आबादी को पलायन का सामना करना पड़ सकता है।
पोलैंड के कटोविस में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में बड़ी-बड़ी तेल और कोयला कंपनियों के खिलाफ प्रदर्शन तेज़ हो रहे हैं। कई सामाजिक संगठनों और विकासशील देशों का आरोप है कि संयुक्त राष्ट्र के इस सम्मलेन में कोयले और तेल को बढ़ावा देने वाली कंपनियों के प्रतिनिधियों के प्रवेश पर पाबंदी होनी चाहिये।
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इस बीच अमेरिका, रूस, कुवैत और सऊदी अरब जैसे देश तेल कंपनियों के हितों के लिये लगातार पैरवी कर रहे हैं। गौरतलब है कि इन देशों के आर्थिक हित ऐसे ईंधन को बेचने से जुड़े हैं। ट्रंप प्रशासन ने तो सोमवार को कोयले के प्रयोग की पैरवी के लिये सम्मेलन स्थल पर बाकायदा एक कार्यक्रम किया, जिसका जमकर विरोध हुआ।
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पोलैंड में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में अब मंत्री स्तर की वार्ता शुरू हो चुकी है लेकिन सवाल यही बना है कि तेल को बढ़ावा देने की बात होगी को जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य और पेरिस संधि के मकसद को कैसे हासिल किया जा सकेगा, जिसके तहत साफ सुथरी ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ाने का वादा हर देश ने किया है।
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सामाजिक संगठनों ने इस बीच अलग अलग तरीके से कार्बन ऊत्सर्जन करने वाले ईंधन के खिलाफ प्रदर्शन जारी रखे हैं। इसी के तहत एक काले डायनासोर के ज़रिये कोयले और तेल के ईंधन से खतरों को दिखाया जा रहा है। जितना कार्बन ऊत्सर्जन होगा उतना ही धरती का तापमान बढ़ेगा और जलवायु परिवर्तन का असर महसूस होगा।
अमीर देशों में औद्योगिक क्रांति के बाद से वायुमंडल में फैले कार्बन की वजह से धरती का तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों की संस्था आईपीसीसी ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में इन ख़तरों से आगाह किया है और कहा है कि अगर 2030 तक धरती का तापमान रोकने के लिये पर्याप्त कदम नहीं उठाये गये तो उसके भयानक परिणाम होंगे।
भारत जैसे देशों में जहां भौगोलिक विविधता है और हज़ारों ग्लेशियरों के साथ जंगल, पठार और 7500 किलोमीटर लम्बी समुद्र रेखा है जलवायु परिवर्तन के खतरे सबसे अधिक हैं। जानकारों का मानना है कि धरती का तापमान बढ़ता रहा तो तितली और गज जैसे चक्रवाती तूफान और केरल की विनाशकारी बाढ़ और केदारनाथ आपदा जैसी घटनायें और बढ़ सकती है। किसानों की फसल को नुकसान और मछुआरों के लिये बड़ी दिक्कतों के साथ देश की गरीब आबादी को पलायन का सामना करना पड़ सकता है।