धान की फसल लहराएगी, लेकिन उसके लिए ये काम है बहुत जरूरी
 vineet bajpai |  Jul 18, 2017, 09:32 IST
धान की फसल लहराएगी
Highlight of the story:
    लखनऊ। धान की रोपाई का काम इन दिनो जोर शोर से चल रहा है। धान हमारे देश की प्रमुख फसल है। इसकी खेती लगभग चार करोड़ 22 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है, आजकल धान का उत्पादन लगभग नौ करोड़ टन तक पहुंच गया है। राष्ट्रीय स्तर पर धान की औसत पैदावार 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसका प्रमुख कारण 
   
   खरपतवार फ़सल से नमी, पोषक तत्व, सूर्य का प्रकाश तथा स्थान के लिये प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे मुख्य फ़सल के उत्पादन में कमी आ जाती है, जिससे धान की फ़सल को काफी नुकसान होता है। इसके उत्पादन में गिरावट आती है। सीधे बोये गये धान में रोपाई किये गये धान की तुलना में अधिक नुकसान होता है। पैदावार में कमी के साथ -साथ खरपतवार धान में लगने वाले रोगों के जीवाणुओं एवं कीट रोगों को भी आश्रय देते हैं। कुछ खरपतवार के बीज धान के बीज के साथ मिलकर उसकी गुणवत्ता को खराब कर देते हैं।   
   
      धान की फ़सल में खरपतवारों से होने वाला नुकसान खरपतवारों की संख्या, किस्म एवं फ़सल से प्रतिस्पर्धा के समय पर निर्भर करता है। घास कुल के खरपतवार जैसे सावां, कोदों फ़सल की प्रारंभिक एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार बाद की अवस्था में अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। सीधे बोये गये धान में बुआई के 15-45 दिन तथा रोपाई वाले धान में रोपाई के 35-45 दिन बाद का समय खरपतवार प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से नाजुक होता है। इस अविध में फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक है तथा फसल का उत्पादन अधिक प्रभावित नहीं होता है।   
   
      खरपतवारों की रोकथाम में ध्यान देने वाली बात यह है कि खरपतवारों का सही समय पर नियंत्रण किया जाये चाहे किसी भी तरीके से करें। धान की फ़सल में खरपतवारों की रोकथाम निम्न तरीकों से की जा सकती है।   
   
         इस विधि में वे क्रियायें शामिल है जिनके द्वारा धान के खेत में खरपतवारो के प्रवेश को रोका जा सकता है, जैसे प्रमाणकि बीजों का प्रयोग करें, अच्छी सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करें, कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करें, सिंचाई कि नालियों की सफाई करें, खेत की तैयारी एवं बुवाई में प्रयोग किये जाने वाले यंत्रों की बुवाई से पहले सफाई एवं अच्छी तरह से तैयार की गई नर्सरी से पौध को रोपाई के लिये लगाना आदि।   
   
      खरपतवारों पर काबू पाने की यह एक सरल एवं प्रभावी विधि है। किसान धान के खेतों से खरपतवारों को हाथ या खुरपी की सहायता से निकालते हैं। कतारों में सीधी बोनी की गई फसल में हल चला कर भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है इसी प्रकार पैडीवीडर चला कर भी खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है। धान की फसल में दो निराई -गुड़ाई, पहली बुवाई व रोपाई के 20-25 दिन बाद एवं दूसरी 40-45 दिन बाद करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है तथा फसल की पैदावार में काफी वृद्धि की जा सकती है।   
   
      जहां पर खरपतवारों की रोकथाम के साधनों की उपलब्धता में कमी हो वहां पर ऐसी धान की किस्मों का चुनाव करना चाहिये, जिनकी प्रारंभिक बढ़वार खरपतवारों की तुलना में अधिक हो ताकि ऐसी प्रजातियां खरपतवारों से आसानी से प्रतिस्पर्धा करके उन्हे नीचे दबा सकें। प्राय: यह देखा गया है कि किसान भाई असिंचित उपजाऊ भूमि में धान को छिटकवां विधि से बोते हैं। छिटकवां विधि से कतारों में बोई गयी धान की तुलना में अधिक खरपतवार उगते है तथा उनके नियंत्रण में भी कठिनाई आती है। अत: धान को हमेशा कतारों में ही बोना फायदेमंद रहता है।   
   
      धान की कतारों के बीच की दूरी कम रखने से खरपतवारों को उगने के लिये जगह नही मिल पाता है। इसी तरह बीज की मात्र में वृद्धि करने से भी खरपतवारों की संख्या एवं वृद्धि में कमी की जा सकती है। धान की कतारों को संकरा करने (15. से.मी) एवं अधिक बीज की मात्र का प्रयोग करने से खरपतवारों की वृद्धि को दबाया जा सकता है।   
   
      रोपाई किये गये धान में पानी का उचित प्रबंधन करके खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है। अनुसंधान के परिणामों में यह पाया गया कि धान की रोपाई के दो-तीन दिन बाद से एक सप्ताह तक पानी एक-दो सेंटीमीटर खेत में समान रुप से रहना चाहिये। उसके बाद पानी के स्तर को पांच-दस सेंटीमीटर तक समान रुप से रखने से खरपतवारों की वृद्धि को आसानी से रोका जा सकता है। मचाई किये गये सीधे बोये धान के खेत में जब फसल 30-40 दिन की हो जाये तो उसमें पानी भरकर खेत की विपरीत दिशा में जुताई (क्रॉस जुताई) करके पाटा लगा देने से खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है।   
   
Ad 1
कीट एवं रोग के साथ-साथ खरपतवार भी है। धान की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिये इस पर नियंत्रण बहुत ज़रूरी है।   Ad 2
खरपतवारों से हानियां
Ad 3
Ad 4