तोरिया की प्रजाति का करें उचित चयन

गाँव कनेक्शन | Sep 16, 2016, 15:59 IST |
तोरिया की प्रजाति का करें उचित चयन
तोरिया बुवाई का समय आ गया है। किसान तोरिया की बुवाई करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटवाने वाले हल से तथा दो-तीन जुताई देशी हल से करके पाटा देकर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए।



बीज दर
चार किग्रा बीज एक हेक्टेयर क्षेत्रफल की बुवाई के लिए पर्याप्त होता है।



बुवाई का समय
तोरिया के बाद गेहूं की फसल लेने के लिए इनकी बुवाई सितम्बर के प्रथम पखवारे में समय मिलते ही अवश्य कर लेनी चाहिए, परन्तु भवानी प्रजाति की बुवाई सितम्बर के दूसरे पखवारे में ही करें।



बुवाई की विधि
बुवाई देशी हल से करनी चाहिए। बुवाई के बाद बीज ढकने के लिए हल्का पाटा लगा देना चाहिए।
बुुवाई 30 सेमी की दूरी पर तीन से चार सेमी की गहराई पर कतारों में करना चाहिए।



निराई-गुड़ाई
बुवाई के 15 दिन के अन्दर घने पौधों को निकान कर पौधों की आपसी दूरी 10-15 सेमी कर देनी चाहिए तथा खरपतवार नष्ट करने के लिए 35 दिन की अवधि पर एक गुड़ाई-निराई कर देनी चाहिए।
खरपतवार नष्ट करने के लिए 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर पेन्डीमेथलीन का प्रयोग बुवाई के तीन दिन के अन्दर प्रयोग करें।



प्रजातियां



प्रजातियां उत्पादन क्षमता (कु./हे.) पकने की अवधि (दिन)
टा- 36 (पीली) 10-12 95-100
टा-9 (काली) 12-15 90-95
भवानी (काली) 10-12 75-80
पीटी-303 (काली) 15-18 90-95
पीटी - 30 (काली) 14-16 90-95
ऊर्वरक की मात्रा
ऊर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर किया जाना सर्वोत्तम हैं। यदि मिट्टी परीक्षण सम्भव न हो पाए तो-



1- असिंचित क्षेत्रों में 500 किग्रा नत्रजन तथा 20 किग्रा फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिये।
2- सिंचित क्षेत्रों में 100 किग्रा नत्रजन तथा 50 फास्फोरस प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। फास्फेट का प्रयोग सिंगिल सुपर फास्फेट के रूप में अधिक लाभदायी होता है क्योंकि इससे 12 प्रतिशत गन्धक की भी उपलब्धता हो जाती है। सिंगिल सुपर फास्फेट के न मिनने पर दो कुन्तल जिप्सम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें। फास्फोरस की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा अन्तिम जुताई के समय नाई या चोंगे से बीज से दो-तीन सेमी नीचे प्रयोग करना चाहिए। अधिकतम उपज के लिए 90 किग्रा नत्रजन तक दिया जा सकता है।



सिंचाई
तोरिया फूल निकलने तथा दाना भरने की अवस्थाओं पर जल की कमी के प्रति विशेष संवेदनशील है। अत: अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इन दोनों अवस्थाओं पर सिंचाई करना आवश्यक है। यदि एक ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो वह फूल निकलने पर (बुवाई के 25-30 दिन बाद) करें।



संकलन : विनीत बाजपेई



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