आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने बनाया मोबाइल ऐप, करेगा बैक्टीरिया की पहचान
Divendra Singh | Jan 03, 2019, 03:05 IST
आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने बनाया मोबाइल ऐप
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नई दिल्ली। स्मार्ट फोन का उपयोग लगातार बढ़ रहा है, हर हाथ में आज स्मार्ट फोन हैं। यही नहीं स्मार्ट फोन का उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में आईआईटी दिल्ली ने एक ऐसा मोबाइल ऐप आधारित एक ऐसा बायो सेंसर विकसित किया है, जिससे बैक्टीरिया का पता लगाया जा सकता है।
बायोसेंसर को मोबाइल कैमरे के सामने लगाया जाता है। कैमरे से खींची बायो सेंसर की तस्वीरों का विश्लेषण शोधकर्ताओं द्वारा विकसित "कोलोरीमीट्रिक डिटेक्टर" नामक मोबाइल ऐप करता है। जीवित जीवाणु के सम्पर्क में आने से बायो सेंसर की सतह काली हो जाती है। मोबाइल ऐप सतह के रंग में होने वाले परिवर्तन को मापता है। जब रंग में होने वाला बदलाव एक निर्धारित बिंदु पर पहुंच जाता है, तब मोबाइल कंपन करने लगता है और उसमें एक लाल सिग्नल दिखाई देता है। जीवाणुओं का पता लगाने का यह बेहद आसान, सुविधाजनक और किफायती तरीका है।
शोधकर्ताओं ने एस्चेरिचिया कोलाई, स्यूडोमोनास एरुजिनोसा, बैसिलस सबटिलिस और स्टैफाइलोकोकस ऑरियस नामक चार जीवाणुओं के लिए बायोसेंसर से परीक्षण किए। उन्होंने परीक्षण के लिए एस्चेरिचिया कोलाई का एक अलग एम्पीसिलीन एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संवर्धन भी तैयार किया। बायोसेंसर से प्राप्त परिणामों का सत्यापन फ्लोरिसेंस माइक्रोस्कोपी जैसी मौजूदा विधियों द्वारा भी किया गया।
बायोसेंसर सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पादित हाइड्रोजन सल्फाइड गैस के आधार पर काम करता है। यह संकेत देने वाला एक गैसीय अणु है जो जैविक संकेतों को जीवों में भेजता है। बायोसेंसर में सिल्वर नैनोरोड के बने सेंसर लगे होते हैं जो हाइड्रोजन सल्फाइड के साथ क्रिया करके काले रंग के सिल्वर सल्फाइड बनाते हैं। जीवित रोगाणुओं के संपर्क में आने पर सिल्वर नैनोरोड्स का रंग और नमी के गुण बदल जाते हैं, जबकि मृत जीवाणुओं के साथ ऐसी कोई प्रतिक्रया नहीं होती है।
प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर जे.पी. सिंह ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि, "मोबाइल उपयोगकर्ता सेंसर पर रंग और गीलेपन को देखकर आसानी से जीवित और मृत के साथ ही एंटीबायोटिक प्रतिरोधी और सामान्य बैक्टीरिया की अलग अलग पहचानकर सकते हैं। इस बायोसेंसर का उपयोग सभी अपने मोबाइल में कर सकते हैं और यह संक्रामक रोगों कोफैलनेसे रोकने में सहायक हो सकता है।"
शोधकर्ताओं के दल में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के प्रोफेसर जे. पी. सिंह के अलावा शशांक गहलौत, डॉ. सी. शरण, प्रोफेसर प्रशांत मिश्रा और डॉ. नीति कल्याणी शामिल थे। यह शोध हाल ही में बायोसेंसर्सएण्ड बायोइलेक्ट्रॉनिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है। (इंडिया साइंस वायर)
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बायोसेंसर को मोबाइल कैमरे के सामने लगाया जाता है। कैमरे से खींची बायो सेंसर की तस्वीरों का विश्लेषण शोधकर्ताओं द्वारा विकसित "कोलोरीमीट्रिक डिटेक्टर" नामक मोबाइल ऐप करता है। जीवित जीवाणु के सम्पर्क में आने से बायो सेंसर की सतह काली हो जाती है। मोबाइल ऐप सतह के रंग में होने वाले परिवर्तन को मापता है। जब रंग में होने वाला बदलाव एक निर्धारित बिंदु पर पहुंच जाता है, तब मोबाइल कंपन करने लगता है और उसमें एक लाल सिग्नल दिखाई देता है। जीवाणुओं का पता लगाने का यह बेहद आसान, सुविधाजनक और किफायती तरीका है।
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शोधकर्ताओं ने एस्चेरिचिया कोलाई, स्यूडोमोनास एरुजिनोसा, बैसिलस सबटिलिस और स्टैफाइलोकोकस ऑरियस नामक चार जीवाणुओं के लिए बायोसेंसर से परीक्षण किए। उन्होंने परीक्षण के लिए एस्चेरिचिया कोलाई का एक अलग एम्पीसिलीन एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संवर्धन भी तैयार किया। बायोसेंसर से प्राप्त परिणामों का सत्यापन फ्लोरिसेंस माइक्रोस्कोपी जैसी मौजूदा विधियों द्वारा भी किया गया।
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बायोसेंसर सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पादित हाइड्रोजन सल्फाइड गैस के आधार पर काम करता है। यह संकेत देने वाला एक गैसीय अणु है जो जैविक संकेतों को जीवों में भेजता है। बायोसेंसर में सिल्वर नैनोरोड के बने सेंसर लगे होते हैं जो हाइड्रोजन सल्फाइड के साथ क्रिया करके काले रंग के सिल्वर सल्फाइड बनाते हैं। जीवित रोगाणुओं के संपर्क में आने पर सिल्वर नैनोरोड्स का रंग और नमी के गुण बदल जाते हैं, जबकि मृत जीवाणुओं के साथ ऐसी कोई प्रतिक्रया नहीं होती है।
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प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर जे.पी. सिंह ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि, "मोबाइल उपयोगकर्ता सेंसर पर रंग और गीलेपन को देखकर आसानी से जीवित और मृत के साथ ही एंटीबायोटिक प्रतिरोधी और सामान्य बैक्टीरिया की अलग अलग पहचानकर सकते हैं। इस बायोसेंसर का उपयोग सभी अपने मोबाइल में कर सकते हैं और यह संक्रामक रोगों कोफैलनेसे रोकने में सहायक हो सकता है।"
शोधकर्ताओं के दल में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के प्रोफेसर जे. पी. सिंह के अलावा शशांक गहलौत, डॉ. सी. शरण, प्रोफेसर प्रशांत मिश्रा और डॉ. नीति कल्याणी शामिल थे। यह शोध हाल ही में बायोसेंसर्सएण्ड बायोइलेक्ट्रॉनिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है। (इंडिया साइंस वायर)