बारिश के मौसम में पशुओं का रखें खास ध्यान, हो सकती हैं ये बीमारियां

गाँव कनेक्शन | May 27, 2017, 12:23 IST |
बारिश के मौसम में पशुओं का रखें खास ध्यान
बारिश के मौसम में पशुओं का रखें खास ध्यान
लखनऊ। बारिश के मौसम में पशुओं को बाहर नहीं चराना चाहिए, क्योंकि बारिश में कई तरह के कीड़े ज़मीन से निकल कर घास पर बैठ जाते हैं जिसे खाने से पशु को कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। इन बीमारियों का अगर समय से इलाज न किया जाए तो पशु की मृत्यु भी हो सकती है।

बरसात के मौसम में पशुओं को बचाने के बारे में पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ वी.के सिंह ने बताया, “बारिश के मौसम में भी पशुपालक अपने पशुओं को चरने के लिए भेज देते है ऐसा बिल्कुल न करें क्योंकि गीली घास में कई ऐसे कीड़े होते हैं, जो पशुओं के पेट में चले जाते हैं और उनके शरीर को नुकसान पंहुचाते हैं। घर में पशुओं को हरा चारा खिलाएं और उस हरे चारे में एक प्रतिशत लाल दवा (पोटेशियम परमैग्नेट ) डालकर दें।

डॉ सिंह आगे बताते हैं, “इस मौसम में पशुओं में जूं, किलनी लग जाती है पशु के ज़ख्मी हो जाने से ज़ख्मी स्थान पर मक्खियां बैठने से उसमें कीड़े लगने का खतरा रहता है ऐसे में पशुओं के बाड़े की साफ-सफाई बहुत ज़रुरी होती है।” दुधारू पशुओं में दो प्रकार के परजीवी होते हैं। भीतरी परजीवी जैसे- पेट के कीड़े और बाहरी परजीवी जैसे- दाद या जूं और किलनी।

भीतरी परजीवी

नवजात और बड़े दोनों प्रकार के पशुओं में पेट के कीड़े होने की ज्यादा शिकायत होती है। नवजात गाय और भैंस के बच्चों में पेट में कीड़े होने से मरने की संभावना भी रहती है और बड़े दुधारू जानवरों में दूध के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

उपचार

पशु चिकित्सक की सलाह से नवजात बच्चों को 15 दिन के अंदर कीड़े मारने की दवा ज़रूर दें। बरसात का मौसम शुरू होते ही दवा की एक-एक खुराक पिलाते रहे। बड़े पशुओं को भी 6-7 महीने के अन्तराल पर साल में दो बार पेट के कीड़े मारने की दवाई देनी चाहिए।

बाहरी परजीवी

रिंग वर्म (दाद), स्कैबीज (खाज या खुजली), लाइस और टिक इनफेक्शन (जू किलनी लग जाना) जैसी बीमारियां दुधारू पशुओं में देखी जाती है। रिंग वर्म (दाद) पशुओं की चमड़ी में होने वाला छूत रोग है। यह रोग कम बाल वाले या बाल रहित शरीर के भाग पर गोल धब्बे की तरह होता है जिसमें फुंसियों से लेकर पपड़ी बन जाती है ओर उसमें खुजली होती है।

उपचार

दाद पर बाल और पपड़ी हटाकर टेंटमासाल या नीको या नीम साबुन से धोकर सुखा लेना चाहिए। उसके बाद 10 प्रतिशत टिंचर आयोडीन या बेनजोइक एसिड या फिर 10 प्रतिशत सल्फर का मलहम लगाना चाहिए।

स्कैबीज (खाज या खुजली)

इसमें पशुओं की त्वचा मोटी पड़ जाती है और त्वचा पर पपड़ी बन जाती है। खुजली के कारण पशु बेचैन और परेशान हो जाता है।

उपचार

पशु के शरीर में जिस जगह पर खुजली है उस जगह को टेंटमासाल या नीको से साफ करके सुखा लें। सुखाने के बाद लोरेक्सेन क्रीम या एस्केबियाल क्रीम एक दिन के अंतर से लेप लगा सकते हैं।

लाइस और टिक इनफेक्शन ( जूं,किलनी लग जाना)

यह परजीवी रोग पशु में ज्यादा होता है। यह चमड़ी में चिपक कर पशुओं का खून चूसती है और उनको कमजोर बना देती है। इसके साथ-साथ छूत की बीमारियां भी बढ़ाती है।

उपचार

इसके इलाज के लिए बर्ब आईएच के दो कैप्सूल दिन में एक बार सात दिन तक खिलाना चाहिए और गैमक्सीन 5 प्रतिशत डब्लू.पी.डी.टी 10-12 प्रतिशत एक भाग और डंस ऐस का 8 भाग मिलाकर पशुओं को लगाएं।

ध्यान रखने योग्य बातें

पशुओं पर दवा का प्रयोग पशु चिकित्सक की सलाह से ही करें। संकर नस्ल के पशुओं को बाहरी परजीवी से बचाव के लिए प्रत्येक 15 दिन के अंतराल पर पशुओं एवं पशुशाला में कुछ दवाओं जैसे- ब्यूटाक्स टिक-किल का छिड़काव करना आवश्यक होता है।

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