आईआईटी मद्रास ने विकसित की भूकंप की प्रभावी पूर्व-चेतावनी प्रणाली

India Science Wire | Nov 12, 2021, 08:50 IST
आईआईटी मद्रास ने विकसित की भूकंप की प्रभावी पूर्व-चेतावनी प्रणाली

Highlight of the story: जब भूकंप आता है, तो यह भूकंपीय तरंगों की एक श्रृंखला उत्पन्न करता है। तरंगों के पहले सेट को पी-वेव कहा जाता है, जो हानि-रहित होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन तरंगों की शुरुआत का पता लगाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके आगमन के समय का एक सटीक अनुमान एक मजबूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने में मदद कर सकता है, जिससे विनाशकारी भूकंप तरंगों के अगले सेट के आने के बीच के समय का आकलन किया जा सकता है।

भूकंप के आने के सटीक समय का अनुमान न केवल मजबूत पूर्व-चेतावनी प्रणाली विकसित करने में मदद कर सकता है, बल्कि इससे विनाशकारी तरंगों के भूमि की सतह से टकराने के बीच लगभग 30 सेकंड से 2 मिनट का लीड समय भी मिल सकता है। यह अवधि कम लगती है, पर कई उपायों के लिए यह पर्याप्त हो सकती है, जिनसे अनिगिनत जिंदगियां बच सकती हैं। इनमें परमाणु रिएक्टरों और मेट्रो जैसी परिवहन सेवाओं को बंद करना और लिफ्ट या एलिवेटर्स को रोकने जैसे उपाय शामिल हैं, जो भूकंप की स्थिति में जान-माल के नुकसान को कम करने में मददगार हो सकते हैं।
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यह शोध आईआईटी मद्रास में केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अरुण के. तंगीराला के नेतृत्व में किया गया है। शोधकर्ताओं में प्रोफेसर तंगीराला के अलावा आईआईटी मद्रास में पीएचडी शोधकर्ता कंचन अग्रवाल शामिल हैं। उनका यह अध्ययन शोध पत्रिका प्लॉस वन में प्रकाशित किया गया है। यह अध्ययन आंशिक रूप से परमाणु ऊर्जा विभाग के एक सलाहकार निकाय, 'बोर्ड ऑफ रिसर्च इन न्यूक्लियर साइंसेज' द्वारा वित्त पोषित किया गया है।
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जब भूकंप आता है, तो यह भूकंपीय तरंगों की एक श्रृंखला उत्पन्न करता है। तरंगों के पहले सेट को पी-वेव कहा जाता है, जो हानि-रहित होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन तरंगों की शुरुआत का पता लगाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके आगमन के समय का एक सटीक अनुमान एक मजबूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने में मदद कर सकता है, जिससे विनाशकारी भूकंप तरंगों के अगले सेट के आने के बीच के समय का आकलन किया जा सकता है।


वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप के केंद्र और निगरानी स्थल के बीच की दूरी के आधार पर यह लीड समय 30 सेकंड से 2 मिनट तक हो सकता है।

सभी मौजूदा पी-तरंगों की पहचान की विधियां सांख्यिकीय सिग्नल प्रोसेसिंग और समय-श्रृंखला मॉडलिंग पर आधारित आइडिया के संयोजन पर आधारित हैं। हालांकि, इन विधियों की अपनी कुछ सीमाएं हैं और ये कई समुन्नत आइडिया को पर्याप्त रूप से समायोजित नहीं करती हैं। समय-आवृत्ति (time-frequency) या अस्थायी-वर्णक्रमीय स्थानीयकरण (temporal-spectral localization) विधि से समायोजित करके ऐसी विधियों की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकता है।

प्रोफेसर तंगीराला ने कहा, "यह जरूरी नहीं है कि प्रस्तावित ढांचा भूकंपीय घटनाओं का पता लगाने तक ही सीमित है, बल्कि इसका व्यापक उपयोग हो सकता है। इसका उपयोग भ्रंशों का पता लगाने और अलगाव के लिए भी किया जा सकता है। इसके अलावा, यह मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग मॉडल को समायोजित कर सकता है, जो इस तरह के आकलन में मानवीय हस्तक्षेप को कम करेगा।"

इस अध्ययन में शामिल अन्य शोधकर्ता कंचन अग्रवाल अग्रवाल ने कहा, "पी-वेव आगमन की जानकारी घटना के अन्य स्रोत मापदंडों जैसे- परिमाण, गहराई और भूकंप के केंद्र को निर्धारित करने में भी महत्वपूर्ण है। इसलिए, पी-वेव डिटेक्शन, जो मजबूत और सटीक हो, भूकंपीय घटना के विवरण का सही अनुमान लगाने और भूकंप या अन्य संबंधित घटनाओं से होने वाले नुकसान को कम करने में उपयोगी हो सकती है।"

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