रेल दुर्घटनाओं में कम होगा एलएचबी डिब्बों से नुकसान, आधुनिक तकनीक से है लैस

Karan Pal Singh | Nov 26, 2017, 14:48 IST
रेल दुर्घटनाओं में कम होगा एलएचबी डिब्बों से नुकसान

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लखनऊ। बीते कई वर्ष में लगातार हो रहीं ट्रेन दुर्घटनाओं में कई सैकड़ा जानें चली गई हैं। ज्यादातर रेल दुर्घटनाओं में पुरानी तकनीक के डिब्बे लगे थे जिस कारण अधिक जानें गईं। कहा जा रहा है कि रेल में पुरानी तकनीक से बने आईसीएफ कोच थे इसी वजह से डिब्बे एक के ऊपर एक चढ़ गए। अगर कोच जर्मन तकनीक के एलएचबी कोच होते तो हादसे के स्केल को कम किया जा सकता था।
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रेलगाड़ी हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है, लेकिन ट्रेन के बारे में कई ऐसी बातें हैं जो आम आदमी को जरूर जाननी चाहिए। दरअसल आपने देखा होगा कि ट्रेन के कोच दो तरह के आने लगे है, पहला तो नीले रंग के कोच जिनमें आप और हम आमतौर पर सफर करते हैं, लेकिन एक कोच आपने और देखें होंगे जो सिल्वर और लाल रंग के होते है। क्या आप जानते है कि इन दोनों में क्या अंतर है और दोनों का क्या उपयोग है।
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ट्रेन में जो कोच नीले रंग के होते हैं उन्हें आईसीएफ (Integral Coach Factory) कोच कहा जाता है। और जो सिल्वर और लाल रंग के होते हैं उन्हें एलएचबी (Linke Hofmann Busch) कोच कहा जाता है।
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...जानें आईसीएफ और एलएचबी कोच में क्या है अंतर

आईसीएफ (Integral Coach Factory) : इंटीग्रल कोच फैक्ट्री तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित है। इसकी स्थापना 1952 में की गई थी। ये फैक्ट्री इंडियन रेलवे के अधीन काम करती है। इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में हर तरह के इंटीग्रल कोच बनाए जाते है जिनमें जनरल, एसी, स्लीपर, डेमू और मेमू कोच शामिल हैं।

एलएचबी (Linke Hofmann Busch) : लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) कोच को बनाने की फैक्ट्री कपूरथला में है। भारत में इन कोच को जर्मनी से लाया गया है।

एलएचबी कोच का प्रयोग

एलएचबी कोच का प्रयोग तेज गति वाली ट्रेनों में किया जाता हैं देश की सबसे तेज ट्रेन गतिमान एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस और राजधानी एक्सप्रेस में इन्हीं कोच का प्रयोग किया जाता है। बता दें, एलएचबी कोच को फास्ट स्पीड ट्रेन के लिए ही डिजाइन किया गया है। इनमें क्षमता होती है कि ये 160 से 180 किमी प्रति घंटे की स्पीड में दौड़ सके।

दुर्घटना होने की आशंका कम

एलएचबी कोच फैक्ट्री में भी हर तरह के एलएचबी कोच बनाए जाते हैं जिनमें एसी, नॉन एसी, स्लीपर कोच शामिल है। इन कोच में रेलवे यात्रियों की यात्रा काफी सुरक्षित होती है और इनमें दुर्घटना होने की आशंका कम रहती है। आईसीएफ कोच के मुकाबले एलएचबी कोच काफी बेहतरीन होते है। बता दें, दोनों तरह के कोच में बहुत अंतर है।

जानें एलएचबी और आईसीएफ कोच के बारे में कुछ खास जानकारियां

जानें आखिर क्यों जरूरी है ट्रेन में एलएचबी कोच

  • एलएचबी कोच की एवरेज स्पीड 160 से 200 किमी होती है जबकि आईसीएफ कोच की स्पीड 70 से 140 किमी प्रति घंटा तक होती है। इस स्पीड पर ये दोनों कोच सुरक्षित तरीके से दौड़ते हैं।
  • एलएचबी कोच में (anti-telescopic) एंटी टेलीस्कोपिक सिस्टम होता है जिसके कारण इसके डिब्बे आसानी से पटरी से नहीं उतर पाते। वहीं दूसरी ओर इसके डिब्बे स्टेलनेस स्टील और एल्यूमिनियम के बने होते है जबकि आईसीएफ कोच माइल्ड स्टील के बने होते है जो ज्यादा झटके नहीं सह पाते और दुर्घटना का कारण बन जाते हैं।
  • एलएचबी कोच में डिस्क ब्रेक सिस्टम होता है जिससे ट्रेन को जल्दी रोका जा सकता है जबकि आईसीएफ कोच में एयरब्रेक और थ्रेड ब्रेक सिस्टम होता है जिससे चलती ट्रेन को रोकने में थोड़ा ज़्यादा समय लगता हैं।
  • एलएचबी कोच का व्हील बेस आईसीएफ कोच के मुकाबले छोटा होता है जो हाई स्पीड होने पर भी रेल को सुरक्षित रखता हैं इससे दुर्घटना होने के चांस कम होते है।
  • एलएचबी कोच में अगर आप बैठेंगे तो ट्रेन के चलने की आवाज आपको ज्यादा परेशान नहीं करेगी क्योंकि इसका साउंड लेवल 60 डेसीबल का होता है जबकि आईसीएफ कोच का साउंड लेबल 100 डेसीबल होता है।
  • एलएचबी कोच में माइक्रोप्रोसेसर से कंट्रोल होता है। इसमें एयर कंडीश्निंग सिस्टम होता है जो कोच के तापमान को नियंत्रित करता है। जिससे ट्रे्न सुरक्षित रहती है।
  • एलएचबी कोच में दो डिब्बे अलग तरह से कपलिंग की जाती है कि दुर्घटना होने पर डिब्बे एक के ऊपर एक न चढ़ें। आमतौर पर दुर्घटना में आईसीएफ कोच के डिब्बे एक के ऊपर एक चढ़ जाते है और जान-माल का ज्यादा नुकसान होता हैं।

अप्रैल 2018 से पूरी तरह से बंद हो जाएगा आईसीएफ कोच के उत्पादन

रेलवे अगले छह सालों में 40,000 आईसीएफ कोच में बदलाव करके सुरक्षित यात्रा के लिए फिट करने का फैसला किया है। अगले छह साल में इस काम में तकरीबन 8000 करोड़ रुपये का खर्चा करना पड़ेगा। रेलवे के मुताबिक पुरानी तकनीक पर आधारित आईसीएफ कोच के उत्पादन को 1 अप्रैल 2018 से पूरी तरह से बंद कर दिया जाएगा।



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