इनकी पहल से रोशन हुई आदिवासियों की बस्ती
Neetu Singh | Aug 19, 2017, 15:05 IST
इनकी पहल से रोशन हुई आदिवासियों की बस्ती
Highlight of the story:
स्वयं प्रोजेक्ट
ललितपुर। आदिवासियों की शंकरपुरा नयी बस्ती वर्षों से अंधेरे में थी, इन्हें कभी ये उम्मीद भी नहीं थी कि इनकी इस छोटी बस्ती में कभी बिजली के खंभे लगेंगे और इनकी बस्ती रोशन होगी। गूंज संस्था ने इस बस्ती में सोलर पैनल लगाकर पूरी बस्ती में छोटी लाइटें लगाकर रोशन कर दिया, इससे आदिवासियों की मुश्किलें आसान हो गयी हैं।
ललितपुर जिला मुख्यालय से बिरधा ब्लॉक से 25 किलोमीटर दूर शंकरपुरा नयी बस्ती में आदिवासी परिवार अपना जीवन यापन कर रहे हैं, ये बस्ती मूलभूत सुविधाओं से पूरी तरह से वंचित है। पानी भरने के लिए यहां के लोगों को एक किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। इस बस्ती में रहने वाली शिपुर बाई (50 वर्ष) ने अपनी टूटी झोपड़ी की ओर निहारते हुए कहा, “हमारी तरफ ध्यान देने वाला कोई नहीं है, जब पानी बरसता है तो पूरी झोपड़ी में पानी टप-टप चूता है, कोई अधिकारी हमारी सुध लेने कभी नहीं आया है, वन विभाग के अधिकारीयों का जब मन होता है हमे परेशान करने लगते हैं।”
गूँज संस्था की टीम के साथी की तारीफ करते हुए इन्होंने बताया, “अगर ये लोग न होते तो हमारी बस्ती में ये रोशनी कभीं नहीं होती, घास फूंस से हमने अपनी झोपड़ी बनायी है जब दिया जलाते थे तो डर लगा रहता था कहीं आग न लग जाये, दिन रहते खाना बनाकर शाम होते ही अंधेरे की वजह से झोपड़ी के अंदर जाना पड़ता था, कीड़े मकोड़े काटने का हमेशा डर रहता था, जबसे लाइट लग गयी है हम आराम से बैठे रहते हैं।” इसी बस्ती में रहने वाली गुलाब सहरिया (50 वर्ष) का कहना है, “एक लाइट हमारे घर के अंदर लगी है और एक बाहर लगी है, झोपड़ी के अंदर भी रोशनी हो गयी है और बाहर भी। आग लगने का और कीड़ा काटने का डर खत्म हो गया है।
चिरंजीत गाएन, संस्था के सदस्य
गूँज संस्था कई राज्यों में 'क्लॉथ फॉर वर्क' योजना के तहत कई तरह के काम करती है। ये संस्था ऐसे जिले के गाँवों में काम करती है, जहां पर सरकार की योजनाएं नहीं पहुंच पाती है। ये संस्था वहां के स्थानीय लोगों को खुद काम करने के लिए प्रेरित करती है और इन्हें काम के बदले पूरे परिवार के कपड़े, बच्चों के लिए खिलौने, बरसात में झोपड़ियों में लगाने के लिए तिरपाल देती है।
इस संस्था के चिरंजीत गाएन बताते हैं, “जब इस बस्ती के लोगों से मिला तो बरसात की वजह से कीड़े मकोड़े इनके बच्चों को न काट ले इससे ये परेशान थे, हमने एक सोलर पैनल में एक बैट्री लगाकर पूरी बस्ती में लकड़ी के खंभे के सहारे तार लगा दिये और हर घर के सामने एक छोटी सी लाइट बाहर और एक अंदर लगा दी, इससे लोगों को पर्याप्त रोशनी मिल जाती है, इनकी सड़क खराब थी, इन्होंने खुद मेहनत करके बनायी इसके बदले हमने इन्हें कपड़े दिए और इन्हे निकलने के लिए रास्ता मिल गयी।
इस बस्ती में रहने वाले गणेश सहरिया (50 वर्ष) का कहना है, “साहब छोटी बस्तियों की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं देता है, बिजली के खम्भे हमारी बस्ती के सामने से निकले हैं, कई बार अधिकारियों से कहा पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।” वो आगे बताते हैं, “जबसे लाइट हो गयी है हम खुश है, पर सरकार को भी इन बस्तियों पर ध्यान देना चाहिए।”
ललितपुर। आदिवासियों की शंकरपुरा नयी बस्ती वर्षों से अंधेरे में थी, इन्हें कभी ये उम्मीद भी नहीं थी कि इनकी इस छोटी बस्ती में कभी बिजली के खंभे लगेंगे और इनकी बस्ती रोशन होगी। गूंज संस्था ने इस बस्ती में सोलर पैनल लगाकर पूरी बस्ती में छोटी लाइटें लगाकर रोशन कर दिया, इससे आदिवासियों की मुश्किलें आसान हो गयी हैं।
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ललितपुर जिला मुख्यालय से बिरधा ब्लॉक से 25 किलोमीटर दूर शंकरपुरा नयी बस्ती में आदिवासी परिवार अपना जीवन यापन कर रहे हैं, ये बस्ती मूलभूत सुविधाओं से पूरी तरह से वंचित है। पानी भरने के लिए यहां के लोगों को एक किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। इस बस्ती में रहने वाली शिपुर बाई (50 वर्ष) ने अपनी टूटी झोपड़ी की ओर निहारते हुए कहा, “हमारी तरफ ध्यान देने वाला कोई नहीं है, जब पानी बरसता है तो पूरी झोपड़ी में पानी टप-टप चूता है, कोई अधिकारी हमारी सुध लेने कभी नहीं आया है, वन विभाग के अधिकारीयों का जब मन होता है हमे परेशान करने लगते हैं।”
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गूँज संस्था की टीम के साथी की तारीफ करते हुए इन्होंने बताया, “अगर ये लोग न होते तो हमारी बस्ती में ये रोशनी कभीं नहीं होती, घास फूंस से हमने अपनी झोपड़ी बनायी है जब दिया जलाते थे तो डर लगा रहता था कहीं आग न लग जाये, दिन रहते खाना बनाकर शाम होते ही अंधेरे की वजह से झोपड़ी के अंदर जाना पड़ता था, कीड़े मकोड़े काटने का हमेशा डर रहता था, जबसे लाइट लग गयी है हम आराम से बैठे रहते हैं।” इसी बस्ती में रहने वाली गुलाब सहरिया (50 वर्ष) का कहना है, “एक लाइट हमारे घर के अंदर लगी है और एक बाहर लगी है, झोपड़ी के अंदर भी रोशनी हो गयी है और बाहर भी। आग लगने का और कीड़ा काटने का डर खत्म हो गया है।
गूँज संस्था कई राज्यों में 'क्लॉथ फॉर वर्क' योजना के तहत कई तरह के काम करती है। ये संस्था ऐसे जिले के गाँवों में काम करती है, जहां पर सरकार की योजनाएं नहीं पहुंच पाती है। ये संस्था वहां के स्थानीय लोगों को खुद काम करने के लिए प्रेरित करती है और इन्हें काम के बदले पूरे परिवार के कपड़े, बच्चों के लिए खिलौने, बरसात में झोपड़ियों में लगाने के लिए तिरपाल देती है।
इस संस्था के चिरंजीत गाएन बताते हैं, “जब इस बस्ती के लोगों से मिला तो बरसात की वजह से कीड़े मकोड़े इनके बच्चों को न काट ले इससे ये परेशान थे, हमने एक सोलर पैनल में एक बैट्री लगाकर पूरी बस्ती में लकड़ी के खंभे के सहारे तार लगा दिये और हर घर के सामने एक छोटी सी लाइट बाहर और एक अंदर लगा दी, इससे लोगों को पर्याप्त रोशनी मिल जाती है, इनकी सड़क खराब थी, इन्होंने खुद मेहनत करके बनायी इसके बदले हमने इन्हें कपड़े दिए और इन्हे निकलने के लिए रास्ता मिल गयी।