जैविक खेती की धुन: 5 दिन आईटी इंजीनियर और वीकेंड पर किसान
 Basant Kumar |  Apr 03, 2018, 12:15 IST
जैविक खेती की धुन: 5 दिन आईटी इंजीनियर और वीकेंड पर किसान
Highlight of the story:
    जहां आज के युवा पढ़ाई पूरी करने के बाद किसी अच्छे पद और सैलरी पर नौकरी करना पसंद करते हैं वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो नौकरी के साथ अपनी ज़मीन से भी जुड़ाव रखते हैं। बंगलुरू शहर में रहने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर महेश (32 साल) की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जो खेती करने के लिए सप्ताह के आखिरी दो दिन 700 किलोमीटर की यात्रा कर अपने गाँव जाते हैं।   
   
   
   
    
   
   महेश बताते हैं, ‘मेरा मन बचपन से ही खेती में लगता था। मेरे दादा और पिता दोनों किसान हैं तो मैं उन्हें देखकर खेती करना चाहता था, लेकिन पिताजी को ये पसंद था। वे चाहते थे कि मैं पढ़-लिखकर किसी अच्छे पद पर नौकरी करूं। दरअसल मेरे पिताजी ने 1970 में स्नातक किया था, लेकिन उनके पिताजी ने उन्हें नौकरी न करवाकर खेती में हाथ बंटाने को कहा इसलिए मेरे पिता चाहते थे कि मैं नौकरी करूं। मैं पढ़ाई करने के बाद आईटी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर पद पर तैनात हो गया, लेकिन जैसे मुझे लगा कि अब मैं खेती कर सकता हूं तो वीकएंड में गाँव आने लगा।’   
   
   महेश बताते हैं कि एक साल पहले जब मैंने खेती करने का फैसला लिया तो मेरे पड़ोसियों के लोगों ने मुझे पागल कहना शुरू कर दिया था। उन्हें लगता था कि खेती करने के लिए हर सप्ताह 700 किलोमीटर की यात्रा करके गाँव जाता है और 700 किलोमीटर यात्रा का वापस आता है। लोगों ने जो बोला उसपर मैंने ध्यान नहीं दिया। खेती करने का फैसला मेरा था तो इसपर कोई और क्या सोचता है इस पर मैं क्यों ध्यान दूं। मैं अपनी 40 एकड़ जमीन पर दलहन, तिलहन सहित कई प्रकार की फसल का उत्पादन करता हूं।   
   
   
   
महेश का 40 एकड़ का खेत, जहां वे वीकेंड पर करते हैं खेतीजैविक खेती करने पर महेश कहते हैं, ‘हमारे आसपास दिन प्रतिदिन अस्पताल खुल रहे हैं। दवाखाने खुल रहे हैं। क्या यह विकास है? सुविधाएं बढ़ रही हैं तो बीमारियां कम होनी चाहिए, लेकिन बीमारियां भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं। इसके पीछे एक ही कारण है अच्छा और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन न कराना। हम जो अनाज या सब्जी खा रहे हैं, उसका उत्पादन रासायनिक खाद के कारण हुआ है। खाद के ज्यादा इस्तेमाल से उत्पादन तो ज्यादा हो जाता है, लेकिन खेत की मिट्टी खराब हो जाती है। रसायन से उत्पादित हुआ अनाज और फसल नुकसानदायक होती है इसीलिए मैं जैविक खेती करता हूं।’   
   
   महेश का मानना है कि खेती से भी मुनाफा कमाया जा सकता है। वह कहते हैं कि मैं खेती से बहुत ज्यादा मुनाफा तो अभी नहीं कमा पाया क्योंकि जैविक खेती में आपको एक से दो साल खेत को उस लायक तैयार करने में लग जाता है, लेकिन मुझे नुकसान भी नहीं हुआ है। मैंने अपनी लागत निकाल लिया है। खेती से मुनाफा कमाने के लिए रासायनिक खादों और बाहर से बीज लाकर बोना बंद करना पड़ेगा। किसान का सबसे ज्यादा खर्च बीज और खाद पर ही होता है। बीज हम खुद भी तैयार कर सकते हैं। खाद के लिए ज़रूरी है कि हर किसान एक गाय पालें। एक गाय के एक साल तक मिलने वाले गोबर से 30 एकड़ खेतों में खाद दी जा सकती है। गाय के गोबर से तैयार खाद अगर हम खेत में डालेंगे तो हमारी मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहेगी और जो अनाज या सब्जी तैयार होगी वो नुकसानदेह नहीं होगी।   
   
   आखिर में महेश कहते हैं कि हमारे आसपास के युवा खेती नहीं करना चाहते हैं। शहर में जाकर भले ही वो लोगों की बगीचे की रखवाली या शौचालय की सफाई कर सकते हैं, लेकिन अपने घर पर खेती नहीं कर सकते हैं। युवा खेती नहीं करना चाहता है। इसके पीछे जो वजह है, वह यह है कि उन्हें लगता है कि खेती से पैसा नहीं कमाया जा सकता है।   
   
   
   
   
 
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आसपास के लोग पागल कहने लगे थे मुझे
महेश का 40 एकड़ का खेत, जहां वे वीकेंड पर करते हैं खेती