पर्यावरण बचाने की जिद : सोलर से चलने वाली टुक-टुक से पूरी की 14,000 किमी की यात्रा, बेंगलुरू से पहुंचे लंदन
Mithilesh Dhar | Aug 22, 2017, 12:50 IST
पर्यावरण बचाने की जिद : सोलर से चलने वाली टुक-टुक से पूरी की 14
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लखनऊ। कहते हैं कि अगर धुन पक्की हो तो कुछ भा हासिल किया जा सकता है। ये कहावत बेंगलुरु के नवीन रबेली पर एक दम सही फिट होती है। नवीन का सपना था कि वे सड़क के रास्ते दुनिया घूमें। इस सफर में वे लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक भी करना चाहते थे। नवीन 14,000 किमी का सफर तय करके लंदन पहुंचे। ये सफर उन्होंने किसी कार या प्लने से नहीं, टुक-टुक से पूरी की। पर्यावरण को बचाने के संदेश देने निकले नवीन ने टुक-टुक की सवारी के लिए पेट्रोल या डीजल का प्रयोग न करके सोलर ऊर्जा का प्रयोग किया।
नवीन बताते हैं "पेट्रोल या डीजल के प्रयोग से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। इसलिए मैंने खुद टुक-टुक से इंजन निकालकर सोलर से चलने वाला इंजन लगाया और सफर पर निकल पड़ा। नवीन बताते हैं कि मैं अपने सपने को पूरा करना चाहता था। वो भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना। एक दिन जब मैं बेंगलुरु की सड़कों पर घूम रहा था तो मैंने देखा कि टुक-टुक (ऑटोरिक्शा) बहुत ज्यादा प्रदूषण फैलाता है। तभी मैंने सोचा कि क्यों न इसे प्रदूषण मुक्त वाहन बनाया जाये। पिछले तीन से चार सालों मैंने कई यात्राएं की। इससे पहले की दो यात्राएं मैंने अपने पैसे से की जबकि तीसरी यात्रा मैंने लोगों की मदद से की तो चौथी यात्रा के लिए कुछ कंपनियों ने मेरी मदद की"।
नवीन ने बताया कि मैंने एक नॉमर्ल टुक-टुक खरीदा जो डीजल से चलता था। उससे उसमें से डीजल का इंजन निकालर इलेक्ट्रीक मोटर, इलेक्ट्रीक बैट्री और सोलर पैनल लगा दिया। साथ ही मैंने कुछ बदलाव गीयर बॉक्स में भी किये और उसे केबीन बना दिया। जिसमें आराम करने के लिए बेड भी लगाया, ताकि मैं टुक-टुक में रात भी गुजार सकूं। मैंने अपने इस वाहन को तेजस नाम दिया। टुक-टुक एक घंटे में 60 किमी तक जा सकती है जबकि बैटरी एक बार चार्ज करने पर 80 किमी तक चलती है।
अपनी गाड़ी के साथ नवीन।नवीन ने लंदन के लिए यात्रा फरवरी 2016 में शुरू की थी। नवीन बताते हैं "वे बेंगलुरु से मुंबई टुक-टुक से पहुंचे। मुंबई से जहाज द्वारा टुक-टुक को ईरान ले गये। ईरान से, तुर्की, फ्रांस, ग्रीस, बुल्गिरिया, सर्बिया, हंगरी, आस्ट्रीया, जर्मनी और स्वीटजरलैंड तक की यात्रा अपने टुक-टुक से पूरी की। फ्रांस से यूके जाने के लिए मैने बेड़े का सहारा लिया। यूके में मैंने लो कॉबर्न वाहनों के मेले में अपने टुक-टुक को प्रदर्शित किया। टुक-टुक से यात्रा करना इसलिए भी यादगार रहा कि गाड़ी जहां पहुंचती थी लोग उसे ध्यान से देखते थे। बहुत से लोगों से मैं पहली बार मिला, उन्होंने मेरे काम को सराहा. लाेगों को जब मैंने टुक-टुक की उपयाेगिता के बारे में बताया तो वे आश्चर्यचकित हो गये। उनमें से कुछ लोग सोलर ऊर्जा से परिचित थे कुछ लोगों न इतनी लंबी यात्रा के लिए बधाई दी"।
नवीन ने बताया "इतनी लंबी यात्रा को पूरा करने के लिए पैसे बचाना भी जरूरी था। इसके लिए मैंने कई रातें टुक-टुक में ही काटी। 35 अलग-अलग ऐसे लोगों के घर जाकर खाना खाया जिन्हें मैँ पहले कभी नहीं जानता था। टुक-टुक में मेरे पास सोलर कूकर भी था जिसमें मैं अपनी पसंद का ब्रेकफास्ट और बढ़ी चावल बनाता था।"
ईरान सबसे अच्छा आदर सत्कार करने वाला देश लगा। वहां के लोग मुझे अपने घर डिनर और नाश्ते के लिए ले गये। नवीन जब फ्रांस पहुंचे तो वहां उनका पासपोर्ट और पैसा चोरी हो गया। इस पर नवीन कहते हैं "वो घटना मेरे लिए सीख देने वाला रहा, उसके बाद मैं ज्यादा सावधान हो गया। मैं चाहता हूं मेरे देश के लोग पर्यावण को होने वाले नुकसान के बारे में सोचें और तकनीकी के सहारे ही उसे बचाने का प्रयास करें"।
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नवीन बताते हैं "पेट्रोल या डीजल के प्रयोग से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। इसलिए मैंने खुद टुक-टुक से इंजन निकालकर सोलर से चलने वाला इंजन लगाया और सफर पर निकल पड़ा। नवीन बताते हैं कि मैं अपने सपने को पूरा करना चाहता था। वो भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना। एक दिन जब मैं बेंगलुरु की सड़कों पर घूम रहा था तो मैंने देखा कि टुक-टुक (ऑटोरिक्शा) बहुत ज्यादा प्रदूषण फैलाता है। तभी मैंने सोचा कि क्यों न इसे प्रदूषण मुक्त वाहन बनाया जाये। पिछले तीन से चार सालों मैंने कई यात्राएं की। इससे पहले की दो यात्राएं मैंने अपने पैसे से की जबकि तीसरी यात्रा मैंने लोगों की मदद से की तो चौथी यात्रा के लिए कुछ कंपनियों ने मेरी मदद की"।
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टुक-टुक के इंजन को बदला
अपनी गाड़ी के साथ नवीन।
फरवरी में शुरू की यात्रा
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अनजान लोगों के घर खाया खाना
ईरान सबसे अच्छा आदर सत्कार करने वाला देश लगा। वहां के लोग मुझे अपने घर डिनर और नाश्ते के लिए ले गये। नवीन जब फ्रांस पहुंचे तो वहां उनका पासपोर्ट और पैसा चोरी हो गया। इस पर नवीन कहते हैं "वो घटना मेरे लिए सीख देने वाला रहा, उसके बाद मैं ज्यादा सावधान हो गया। मैं चाहता हूं मेरे देश के लोग पर्यावण को होने वाले नुकसान के बारे में सोचें और तकनीकी के सहारे ही उसे बचाने का प्रयास करें"।