वाह ! विदेश मंत्रालय की नौकरी छोड़कर बिहार के सैकड़ों युवाओं को दिलाई सरकारी नौकरी
 Neetu Singh |  Oct 10, 2017, 16:03 IST
वाह ! विदेश मंत्रालय की नौकरी छोड़कर बिहार के सैकड़ों युवाओं को दिलाई सरकारी नौकरी
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    पटना। सरकारी नौकरी पाने के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते। सालों तैयारी करते हैं, फिर भी बहुत से लोगों को सफलता नहीं मिल पाती। ऐसे में कोई अगर सरकारी नौकरी छोड़ दे, वो भी विदेश मंत्रालय की तो आश्चर्य होना लाजिमी है।   
   
बिहार के एक 29 वर्षीय युवा ने कुछ ऐसा ही किया। उन्होंने विदेश मंत्रालय की नौकरी सिर्फ इसलिए छोड़ दी क्योंकि वो जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाना चाहते थे, उन्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे।
   
“अगर नौकरी करेंगे तो सिर्फ मेरा भला होगा, हम समाज के लिए कुछ नहीं कर पायेंगे। विदेश मंत्रालय मुंबई में छह महीने नौकरी करने के बाद मै अपने गाँव वापस आ गया। पढ़ने में होशियार बच्चे जो पैसे के आभाव में आगे की पढ़ाई नहीं कर पाते हैं, ऐसे युवाओं को मैंने नि:शुल्क पढ़ाना शुरू किया।” ये कहना है बिहार के समस्तीपुर जिला के राजेश कुमार सुमन का। पटना से 110 किलोमीटर दूर रोसरा ब्लॉक के ढरहा गाँव के रहने वाले राजेश परास्नातक की पढ़ाई करने के बाद साल 2008 में विदेश मंत्रालय में नौकरी करने लगे थे।
   
      
   
राजेश अपने मोहल्ले के पहले इतने पढ़े युवा थे। इनकी देखादेखी बाकी बच्चों ने भी पढ़ाई शुरू की। इनके नौकरी पर जाते ही पढ़ाई जैसा माहौल न होने और आर्थिक कारणों से इन युवाओं की पढ़ाई पूरी नहीं हो पा रही थी। राजेश के दोस्त और पड़ोसी इनको फोन करके अपनी परेशानी बताते थे।
   
   इन्हें नौकरी के अभी छह महीने भी पूरे नहीं हुए थे, ये फोन कॉल्स इन्हें परेशान करने लगे। राजेश ने गाँव कनेक्शन को फ़ोन पर बताया, “सरकारी नौकरी करके सिर्फ मै खुश रह सकता था पर मेरे गाँव के बहुत लोगों का भविष्य दांव पर लगा था, ये सोचकर मैं वापस आ गया। पहले दिन चार बच्चो को पढ़ाना शुरू किया था, आज चार जिले के 300 बच्चे पढ़ने आ रहे हैं।” चार बच्चों से पढ़ाने की शुरुआत करने वाले राजेश अबतक 1200 बच्चों को पढ़ा चुके हैं। इन्हें आठ अक्टूबर को दिल्ली में ‘बेस्ट यंग टीचर अवार्ड’ से सम्मानित किया जा चुका है।   
   
   
   
उत्तर बिहार बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है, जो छह महीने बाढ़ की चपेट से बाहर नहीं निकल पाता है। बिहार के समस्तीपुर जिले में ‘विनोद स्मृति स्टडी क्लब’ की शुरुआत साल 2008 में हुई। इस सेंटर पर सीमावर्ती जिला खगरिया, बेगुसराय, दरभंगा के बच्चे पढ़ने आते हैं। ये हर दिन सुबह छह से नौ शाम चार से छह पढ़ते हैं। राजेश के कई दोस्त इस सेंटर पर प्रतियोगी परीक्षाओं की गणित, अंग्रेजी, रीजनिंग, कम्प्यूटर जैसे विषयों की तैयारी करातें हैं। यहाँ बच्चों को तबतक नि:शुल्क पढ़ाया जाता है जब तक कि ये किसी सरकारी या प्राइवेट विभाग में कहीं चयनित न हो जायें।
   
      राजेश और इनके दोस्तों के प्रयास से यहाँ के युवा लगातार आगे बढ़ रहे थे। लड़कियों को आगे बढ़ाने के लिए राजेश ने 2015 में अलग से कक्षाएं लगानी शुरू की। राजेश ने बताया, “पिछड़े क्षेत्र की लड़कियों को पढ़ाई के उचित अवसर नहीं मिल पाते हैं जिसकी वजह से वो आगे नहीं बढ़ पाती हैं। ये सिर्फ कुछ दर्जा पढ़ाई ही न करें बल्कि खुद आत्मनिर्भर बने इसके लिए इनकी तैयारी पर हम खास ध्यान देते हैं।”   
   
   
   
राजेश कुमार सुमन, एक कार्यक्रम में।जरूरतमंद बच्चों के लिए कहीं कोई ऐसा नि:शुल्क संस्थान नहीं है जहाँ ये बच्चे पढ़ाई कर सकें। पहला सेंटर होने की वजह से बच्चों की संख्या लगातार बढ़ने लगी। पर्याप्त जगह न होने की वजह से राजेश ने प्राथमिकता के आधार पर चयन शुरू कर दिया। यहाँ सबसे पहले शहीदों के बच्चों को, विधवाओं के बच्चों को, दिव्यांगों के बच्चों को, गरीब परिवार, दलित परिवार, किसान के बच्चों को पहली वरीयता दी जाती है।   
   
      शुरुआती दौर में ये बच्चे किसी स्कूल के खुले मैदान में बैठकर पढ़ते थे। राजेश ने कुछ समाजसेवियों, वरिष्ठ नागरिकों की मदद से किराए पर जमीन लेकर एक कमरा बनवाया। आज ये बच्चे इसी कमरे में बैठकर पढ़ते हैं। संस्थान का हर महीने का कुछ जरूरी खर्चा यहाँ पढ़कर गये युवा जो अब नौकरी कर रहे हैं इनके सहयोग से चलता है।   
   
   
   
राजेश ने बताया, “जो बच्चे नौकरी करने लगे हैं, वो हर महीने अपने वेतन से अपनी मर्जी से जितना सहयोग सम्भव हो पाता है उतना देते हैं, आसपास के समाजसेवी भी अपनी मर्जी से सहयोग करते हैं जिससे जरूरी खर्चे निकल आते हैं।” राजेश के अलावा इनके मित्र श्याम ठाकुर, अशोक कुमार, जितेन्द्र यादव, अंकित झा, लक्ष्मी सिंह, विकास कुमार, रंजीत सिंह, पियूष कुमार नि:शुल्क पढ़ाने का काम करते हैं।
   
      शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए राजेश को ‘ग्रेस इण्डिया बेस्ट यंग टीचर’ अवार्ड से सम्मानित किया गया। ये अवार्ड आठ अक्टूबर को दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज के तत्वाधान में ग्रेस इण्डिया एजूकेशनल एंड चेरिटेबल ट्रस्ट नई दिल्ली द्वारा ट्रूथ सीकर इंटरनेशनल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. सुनील सरदार, हंसराज कॉलेज के प्राचार्या डॉ. रमा शर्मा द्वारा दिया गया।   
   
राजेश ने बताया, “पूरे इण्डिया से 12 लोगों को चयनित किया गया था, जिसमे तीन श्रेणियां थी। मुझे छोड़कर सम्मानित हुए सभी लोग प्रोफ़ेसर या डॉक्टर थे, शिक्षा के क्षेत्र में इस तरह का काम करने वाला वहां मै सिर्फ अकेला था।”
   
   
   
सम्मान मिला तो बढ़ा हौसला।
         
   
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बिहार के एक 29 वर्षीय युवा ने कुछ ऐसा ही किया। उन्होंने विदेश मंत्रालय की नौकरी सिर्फ इसलिए छोड़ दी क्योंकि वो जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाना चाहते थे, उन्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे।
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“अगर नौकरी करेंगे तो सिर्फ मेरा भला होगा, हम समाज के लिए कुछ नहीं कर पायेंगे। विदेश मंत्रालय मुंबई में छह महीने नौकरी करने के बाद मै अपने गाँव वापस आ गया। पढ़ने में होशियार बच्चे जो पैसे के आभाव में आगे की पढ़ाई नहीं कर पाते हैं, ऐसे युवाओं को मैंने नि:शुल्क पढ़ाना शुरू किया।” ये कहना है बिहार के समस्तीपुर जिला के राजेश कुमार सुमन का। पटना से 110 किलोमीटर दूर रोसरा ब्लॉक के ढरहा गाँव के रहने वाले राजेश परास्नातक की पढ़ाई करने के बाद साल 2008 में विदेश मंत्रालय में नौकरी करने लगे थे।
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राजेश अपने मोहल्ले के पहले इतने पढ़े युवा थे। इनकी देखादेखी बाकी बच्चों ने भी पढ़ाई शुरू की। इनके नौकरी पर जाते ही पढ़ाई जैसा माहौल न होने और आर्थिक कारणों से इन युवाओं की पढ़ाई पूरी नहीं हो पा रही थी। राजेश के दोस्त और पड़ोसी इनको फोन करके अपनी परेशानी बताते थे।
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उत्तर बिहार बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है, जो छह महीने बाढ़ की चपेट से बाहर नहीं निकल पाता है। बिहार के समस्तीपुर जिले में ‘विनोद स्मृति स्टडी क्लब’ की शुरुआत साल 2008 में हुई। इस सेंटर पर सीमावर्ती जिला खगरिया, बेगुसराय, दरभंगा के बच्चे पढ़ने आते हैं। ये हर दिन सुबह छह से नौ शाम चार से छह पढ़ते हैं। राजेश के कई दोस्त इस सेंटर पर प्रतियोगी परीक्षाओं की गणित, अंग्रेजी, रीजनिंग, कम्प्यूटर जैसे विषयों की तैयारी करातें हैं। यहाँ बच्चों को तबतक नि:शुल्क पढ़ाया जाता है जब तक कि ये किसी सरकारी या प्राइवेट विभाग में कहीं चयनित न हो जायें।
छात्राओं के लिए चलती हैं अलग से कक्षाएं
राजेश कुमार सुमन, एक कार्यक्रम में।
जब बच्चों की संख्या बढ़ी तो इन्हें मिली पहली वरीयता
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इनके सहयोग से चलता है ये संस्थान
राजेश ने बताया, “जो बच्चे नौकरी करने लगे हैं, वो हर महीने अपने वेतन से अपनी मर्जी से जितना सहयोग सम्भव हो पाता है उतना देते हैं, आसपास के समाजसेवी भी अपनी मर्जी से सहयोग करते हैं जिससे जरूरी खर्चे निकल आते हैं।” राजेश के अलावा इनके मित्र श्याम ठाकुर, अशोक कुमार, जितेन्द्र यादव, अंकित झा, लक्ष्मी सिंह, विकास कुमार, रंजीत सिंह, पियूष कुमार नि:शुल्क पढ़ाने का काम करते हैं।
‘ग्रेस इण्डिया बेस्ट यंग टीचर’ से इन्हें किया जा चुका है सम्मानित
राजेश ने बताया, “पूरे इण्डिया से 12 लोगों को चयनित किया गया था, जिसमे तीन श्रेणियां थी। मुझे छोड़कर सम्मानित हुए सभी लोग प्रोफ़ेसर या डॉक्टर थे, शिक्षा के क्षेत्र में इस तरह का काम करने वाला वहां मै सिर्फ अकेला था।”
सम्मान मिला तो बढ़ा हौसला।