कोरोना डर से जब अपने भी साथ छोड़ जाते हैं, वर्षा उन्हीं शवों का अंतिम संस्कार करती हैं
 Divendra Singh |  May 01, 2021, 10:55 IST
कोरोना डर से जब अपने भी साथ छोड़ जाते हैं
Highlight of the story: कोरोना महामारी के कारण लोगों के अंतिम संस्कार में भी मुश्किल आती है, संक्रमण के खतरे के चलते कई बार परिजन शव को हाथ तक नहीं लगाते। ऐसे में बहुत से लोग अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं, इन्हीं में एक हैं लखनऊ की वर्षा वर्मा, जो पिछले कई दिनों से लगातार 10-12 शवों का अंतिम संस्कार कर रही हैं।
    लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में इन दिनों हाथों में 'निशुल्क शव वाहन' की तख्ती लिए वर्षा वर्मा मिल जाएंगी। वर्षा हर दिन न सिर्फ शवों को अस्पताल और घरों से श्मशान घाट लेकर जाती हैं, बल्कि उनका अंतिम संस्कार भी कराती हैं।   
   
"मैंने देखा कि लोगों के पैसा नहीं होता कि शव का अंतिम संस्कार करा पाएं, एक तो उनके ऊपर ऐसे ही इतना दुख होता है कि परिवार का सदस्य चला और ऊपर से एंबुलेंस और शव वाहन हजारों रुपए मांगते हैं।" वर्षा बताती हैं। 42 साल की वर्षा पिछले तीन वर्षों से लावारिश शवों का अंतिम संस्कार कर रही हैं। लेकिन इस कोरोना महामारी में जिसका भरापूरा परिवार है, वो भी संक्रमण के डर, कई बार परिवार के दूसरे लोग खुद संक्रमण की चपेट में होते हैं, ऐसे लोगों के सामने शव का अंतिम संस्कार बड़ी समस्या होती है। वर्षा ऐसे लोगों के दुख में साथ देकर मानवता का फर्ज निभा रही हैं।
   
    
   
   
हर दिन सुबह से लेकर शाम तक वर्षा राम मनोहर लोहिया अस्पताल में लोगों की मदद के लिए पहुंच जाती हैं। एक गाड़ी में वो खुद ड्राइवर के साथ रहती हैं, कई बार तो वो खुद से ही गाड़ी चलाकर जाती हैं। वो कहती हैं,"वैसे हर गाड़ी में एक ड्राइवर और उनके एक सहयोगी रहता है, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि किसी एक सदस्य की मौत हो जाती है और पूरा का पूरा परिवार कोरोना से पीड़ित होता है और कई ऐसे भी लोग होते हैं जो अकेले रहते हैं और उनके परिवार के सदस्य कहीं विदेश में रहते हैं। ऐसे में हम शव को गाड़ी पर रखते हैं और श्मशान पर उनका अंतिम संस्कार करते हैं।"
   
वर्षा के मुताबिक पिछले तीन साल में पांच सौ से अधिक लाशों का वो अंतिम संस्कार करवा चुकी हैं।
   
कोरोना संकट में जब अपने भी मरीज से दूर-दूर रहते हैं लेकिन वर्षा लोगों की मदद के लिए दिन भर श्मशान और अस्पतालों का चक्कर लगाती रहती हैं। इनके इस फैसले का असर उनके परिवार पर कैसे पड़ा, इसे बारे में वो बताती हैं, "मैंने जब ये काम शुरू किया तो करीब दस दिनों तक मेरी माँ ने मुझसे बात नहीं की थी, उन्हें लग रहा था कि शायद इस काम की वजह से वो मुझे खो देंगी। ऐसा ही मेरे हस्बैंड के साथ हुआ, लेकिन जब उन्हें लगा कि मैं मानने वाली नहीं हूं, तो अब वो मेरा ख्याल रखते हैं और इम्युनिटी बूस्टर देते रहते हैं, पीपीई किट, लंच सबका ध्यान रखते हैं। अब मेरी मम्मी भी नॉर्मल हो गई हैं, लेकिन मेरी बेटी शुरू से मेरे साथ थी।"
   
    
   
   
वर्षा पिछले कई साल एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर काम करती आ रही हैं, वह लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग भी देती हैं। वर्षा 'एक कोशिश ऐसी भी' नाम से गैर सरकारी संगठन भी चलाती हैं।
   
   वर्षा बताती हैं कि पिछले कुछ दिनों में बहुत सी ऐसी चीजें देखी हैं कि लगता है कि समाज में ऐसा भी हो सकता है। वो बताती हैं, "हर दिन कुछ न कुछ होता रहता है, एक वाक्या मैं शेयर करना चाहूंगी, एक दिन मेरे पास इंदिरा नगर से एक महिला की कॉल आयी कि मेरे हस्बैंड की डेथ हो गई है। इसके बाद मैं और ड्राइवर उनके घर पहुंचे। डेड बॉडी के पास वो महिला अकेली थी और दूसरी महिला मैं वहां पहुंची थी, क्योंकि डेथ घर में हुई थी, इसलिए बॉडी को प्लास्टिक बैग में पैक करना था।"   
   
    
   
   
   वर्षा के पास सबसे ज्यादा कॉल्स विदेशों से आती हैं, ऐसे लोग जो विदेशों में रहने लगे हैं और उनके पैरेंट्स की यहां पर मौत हो जाती है और उनका अंतिम संस्कार करने के लिए कोई नहीं होता है।   
   
   सोशल मीडिया पर फोटो देखकर बहुत से लोग वर्षा की मदद के लिए आगे आते हैं। वर्षा कहती हैं, "बहुत से लोग फोटो देखकर हमारी मदद करने के लिए कहते हैं, आर्थिक रूप से बहुत सारे लोग मदद कर रहे हैं, लेकिन फिजिकली मदद करने के लिए अगर कोई आता है, अगर कोई एक भी शव का अंतिम संस्कार कर लेता है, तो दूसरे के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाता। अब वो चाहे कितना भी मजबूत हो।"   
   
    
हर दिन करती हैं दस से अधिक शवों का अंतिम संस्कार
   
   
वर्षा ने जिस दिन से वैन शुरू की उस दिन पांच शवों का अंतिम संस्कार किया और उसके बाद से उसके बाद से हर 10-12 शव हर दिन हम ले जाते हैं, वर्षा की माने तो हर दिन ये संख्या बढ़ ही रही है।
   
   वर्षा के मुताबिक मरीजों को ले जाने के लिए हर दिन दो सौ से अधिक कॉल आती है। वो बताती हैं, "क्योंकि ड्राइवर को घर जाना होता है, तो हम कोशिश करते हैं कि बॉडी को अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दें, या फिर अगर बाहर है बर्फ में बॉडी रखवा देते हैं। अभी फोर्ड अस्पताल की बात बताऊं वहां पर एक कोरोना मरीज की डेथ हो गई और साथ का लड़का परेशान हो गया था, उसे किसी ने मेरा नंबर दिया कि ये मदद कर देंगी, अस्पताल वालों ने लड़के से कहा कि दो घंटे बाद बॉडी ले जाओ, अब देखिए तीन दिन के लिए लॉकडाउन लग गया अब वो कहां से बर्फ लाएगा।" वर्षा के मुताबिक उत्तर प्रदेश में शनिवार, रविवार और (अब) सोमवार को लगने वाला लॉकडाउन से अंतिम संस्कार में दिक्कत हो जाती है, क्योंकि प्लास्टिक बैग नहीं मिलते, बर्फ नहीं मिल पाती, ऐसे में परिवार क्या करेगा।   
   
   वर्षा ने 30 अप्रैल को लखनऊ के बैकुंठ धाम पर निशुल्क जल सेवा भी शुरू की है। वर्षा बताती हैं, " मैंने लखनऊ के बैकुंठ धाम के बाहर जल सेवा शुरू की है, इसे हमने इसलिए शुरू किया क्योंकि इस समय श्मशान घाट पर ज्यादातर कोरोना के शव ही आ रहे हैं और पीपीई किट पहनकर आते हैं, पीपीई किट दस मिनट भी पहनकर देखिए पसीने से हालत खराब हो जाती है और प्यास लगती है, इसलिए हमने बैकुंठ धाम के बाहर निशुल्क जल सेवा भी शुरू की है। लेकिन इसके लिए मेरे पास धमकी भरे फोन भी आने लगे हैं, क्योंकि बैकुंठ धाम के बाहर महंगे दाम पर पानी बेच रहे हैं और अब मैंने नि:शुल्क सेवा शुरू की तो अब लोग धमकी दे रहे हैं।"   
   
    
   
   अगर आप भी वर्षा की मदद लेना चाहते हैं तो इन नंबरों पर फोन कर सकते हैं। वर्षा वर्मा : 8318193805   
   
           
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"मैंने देखा कि लोगों के पैसा नहीं होता कि शव का अंतिम संस्कार करा पाएं, एक तो उनके ऊपर ऐसे ही इतना दुख होता है कि परिवार का सदस्य चला और ऊपर से एंबुलेंस और शव वाहन हजारों रुपए मांगते हैं।" वर्षा बताती हैं। 42 साल की वर्षा पिछले तीन वर्षों से लावारिश शवों का अंतिम संस्कार कर रही हैं। लेकिन इस कोरोना महामारी में जिसका भरापूरा परिवार है, वो भी संक्रमण के डर, कई बार परिवार के दूसरे लोग खुद संक्रमण की चपेट में होते हैं, ऐसे लोगों के सामने शव का अंतिम संस्कार बड़ी समस्या होती है। वर्षा ऐसे लोगों के दुख में साथ देकर मानवता का फर्ज निभा रही हैं।
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हर दिन सुबह से लेकर शाम तक वर्षा राम मनोहर लोहिया अस्पताल में लोगों की मदद के लिए पहुंच जाती हैं। एक गाड़ी में वो खुद ड्राइवर के साथ रहती हैं, कई बार तो वो खुद से ही गाड़ी चलाकर जाती हैं। वो कहती हैं,"वैसे हर गाड़ी में एक ड्राइवर और उनके एक सहयोगी रहता है, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि किसी एक सदस्य की मौत हो जाती है और पूरा का पूरा परिवार कोरोना से पीड़ित होता है और कई ऐसे भी लोग होते हैं जो अकेले रहते हैं और उनके परिवार के सदस्य कहीं विदेश में रहते हैं। ऐसे में हम शव को गाड़ी पर रखते हैं और श्मशान पर उनका अंतिम संस्कार करते हैं।"
वर्षा के मुताबिक पिछले तीन साल में पांच सौ से अधिक लाशों का वो अंतिम संस्कार करवा चुकी हैं।
कोरोना संकट में जब अपने भी मरीज से दूर-दूर रहते हैं लेकिन वर्षा लोगों की मदद के लिए दिन भर श्मशान और अस्पतालों का चक्कर लगाती रहती हैं। इनके इस फैसले का असर उनके परिवार पर कैसे पड़ा, इसे बारे में वो बताती हैं, "मैंने जब ये काम शुरू किया तो करीब दस दिनों तक मेरी माँ ने मुझसे बात नहीं की थी, उन्हें लग रहा था कि शायद इस काम की वजह से वो मुझे खो देंगी। ऐसा ही मेरे हस्बैंड के साथ हुआ, लेकिन जब उन्हें लगा कि मैं मानने वाली नहीं हूं, तो अब वो मेरा ख्याल रखते हैं और इम्युनिटी बूस्टर देते रहते हैं, पीपीई किट, लंच सबका ध्यान रखते हैं। अब मेरी मम्मी भी नॉर्मल हो गई हैं, लेकिन मेरी बेटी शुरू से मेरे साथ थी।"
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वर्षा पिछले कई साल एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर काम करती आ रही हैं, वह लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग भी देती हैं। वर्षा 'एक कोशिश ऐसी भी' नाम से गैर सरकारी संगठन भी चलाती हैं।
जब घर वाले भी मदद के लिए नहीं आए
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सबसे ज्यादा विदेशों से आते हैं फोन
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हर दिन करती हैं दस से अधिक शवों का अंतिम संस्कार
वर्षा ने जिस दिन से वैन शुरू की उस दिन पांच शवों का अंतिम संस्कार किया और उसके बाद से उसके बाद से हर 10-12 शव हर दिन हम ले जाते हैं, वर्षा की माने तो हर दिन ये संख्या बढ़ ही रही है।
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