नीतीश कुमार के खिलाफ जनहित याचिका: चार हफ्ते बाद सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट शीर्ष अदालत
 गाँव कनेक्शन |  Sep 11, 2017, 20:48 IST | 
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    नई दिल्ली (भाषा)। सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि वह चार हफ्ते बाद उस याचिका पर सुनवाई करेगी जिसमें राज्य विधान परिषद की सदस्यता से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सदस्यता रद्द करने का अनुरोध किया गया है। इस अनुरोध के लिए आधार यह दिया गया कि उन्होंने उनके खिलाफ लंबित आपराधिक मामले के बारे में जानकारी कथित रुप से छिपाई।   
   
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने निजी क्षमता से जनहित याचिका दायर करने वाले वकील एमएल शर्मा से चुनाव आयोग को दी गई संशोधित याचिका की प्रति सौंपने को कहा। पीठ ने फिलहाल नोटिस नहीं भेजने का फैसला किया। याचिका में आरोप लगाया गया कि जदयू नेता के खिलाफ आपराधिक मामला चल रहा है। वह बिहार की बाढ़ सीट पर 1991 में लोकसभा उपचुनाव से पहले स्थानीय कांग्रेसी नेता सीताराम सिंह की हत्या और चार अन्य के घायल होने के मामले में आरोपी हैं।
   
याचिका में सीबीआई को इस मामले में कुमार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया। वकील ने चुनाव आयोग के 2002 के आदेश के तहत कुमार की सदस्यता रद्द करने का अनुरोध किया जिसमें कहा गया था कि उम्मीदवारों के लिए नामांकन के साथ संलग्न अपने हलफनामे में आपराधिक मामलों का खुलासा करना अनिवार्य है।
   
उन्होंने दावा किया कि बिहार के मुख्यमंत्री ने 2012 को छोड़कर 2004 से अपने हलफनामों में उनके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का खुलासा नहीं किया।
   
      
   
 
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने निजी क्षमता से जनहित याचिका दायर करने वाले वकील एमएल शर्मा से चुनाव आयोग को दी गई संशोधित याचिका की प्रति सौंपने को कहा। पीठ ने फिलहाल नोटिस नहीं भेजने का फैसला किया। याचिका में आरोप लगाया गया कि जदयू नेता के खिलाफ आपराधिक मामला चल रहा है। वह बिहार की बाढ़ सीट पर 1991 में लोकसभा उपचुनाव से पहले स्थानीय कांग्रेसी नेता सीताराम सिंह की हत्या और चार अन्य के घायल होने के मामले में आरोपी हैं।
याचिका में सीबीआई को इस मामले में कुमार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया। वकील ने चुनाव आयोग के 2002 के आदेश के तहत कुमार की सदस्यता रद्द करने का अनुरोध किया जिसमें कहा गया था कि उम्मीदवारों के लिए नामांकन के साथ संलग्न अपने हलफनामे में आपराधिक मामलों का खुलासा करना अनिवार्य है।
उन्होंने दावा किया कि बिहार के मुख्यमंत्री ने 2012 को छोड़कर 2004 से अपने हलफनामों में उनके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का खुलासा नहीं किया।
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