छोटे किसानों के लिए भी बड़ा बाज़ार तैयार कर रही है चना की फसल, जानिए क्या है सफलता का मंत्र

Gaon Connection | Mar 02, 2024, 13:19 IST |
Gram crop
छोटे किसानों के लिए भी बड़ा बाज़ार तैयार कर रही है चना की फसल
बाहरी देशों में भारतीय चने की बढ़ती माँग ने छोटे किसानों को भी इसकी खेती के लिए प्रोत्साहित किया है; लेकिन सही देख रेख या जानकारी के आभाव में कई किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है।
चना किसानों के लिए देश और देश के बाहर बड़ा बाजार तैयार हो रहा है। पिछले एक दशक में 50 फीसदी से ज़्यादा दाल का उत्पादन बढ़ा है। जी हाँ, 18 लाख 30 हज़ार मेट्रिक टन से 275 लाख मेट्रिक टन पहुँचना बताता है कि चना की फसल किसानों को ज़्यादा मुनाफा देने वाली बन रही है। जबकि ये आकड़े सिर्फ मूंग और चना के हैं।

लेकिन कई किसानों के सामने फसल के अचानक रोग ग्रस्त होने या उसके फूल ख़राब होने की शिकायत भी आ रही है। गाँव कनेक्शन आपको बता रहा है ऐसा हो तो क्या करें और कैसे बढ़ा सकते हैं इस फसल का रकबा ?

क्या है एक्सपर्ट सलाह

चने की खेती आमतौर पर बारानी फसल के रूप में रबी मौसम में की जाती है। इसके लिए 60-90 से.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र ठीक रहते हैं।

इसकी खेती के लिए 24 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान हो और मिट्टी हल्की से भारी हो तो अच्छा माना जाता है।

एक्सपर्ट की माने तो अक्सर कुछ किसान भाई चने की फसल में फूल आने के बाद पानी दें देते हैं। ये फसल के लिए ठीक नहीं है।

फूल आने के बाद पानी बिल्कुल नहीं देना है। इससे फूल गिरने की समस्या बढ़ जाती है। हमेशा फूल आने से पहले पानी दें।

समय समय पर अगर सिंचाई करते रहते हैं तो ध्यान रखें कि जिस मिट्टी में चने की खेती हुई है वहाँ अगर ज़रूरत हो तभी सिंचाई करें, नहीं तो रहने दें। ज़्यादा पानी देना भी फसल को नुकसान पहुँचा सकता है।

एक बात और जिससे उत्पादन में अच्छी बढ़ोत्तरी हो सकती है। आप पानी में घुलनशील उर्वरक 13:00:45 को 1 किलो + पोषक तत्व 250 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें। अगर ड्रिप सिंचाई की सुविधा है तो 13:00:45 को 3 किग्रा + सूक्ष्म पोषक तत्व 250 ग्राम प्रति एकड़ ड्रिप के जरिए छिड़काव करें।

कृषि जानकारों के मुताबिक़ अच्छी पैदावार के लिए नई किस्मों जे.जी. 16, जे.जी. 14, जे.जी. 11 के गुणवत्तायुक्त तथा प्रमाणित बीजों का ही इस्तेमाल करना चाहिए।

सबसे ज़रूरी बात, बुवाई से पहले बीज को फफूदनाषी दवा थायरम और कार्बन्डाजिम 2:1 या कार्बोक्सिन 2 ग्राम / किलो बीज की दर से उपचारित करने क बाद राइजोबियम कल्चर 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से और मोलिब्डेनम 1 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचारित करें।

कितना बड़ा है चना का रकबा

चना उत्पादन में भारत का मध्य प्रदेश पहले नंबर पर है। यहाँ के किसान हर साल बंपर चना की खेती करते हैं। देश के कुल चना उत्पादन में मध्य प्रदेश की 26.09 फीसदी की हिस्सेदारी है। इस फसल के लिहाज से यहाँ की मिट्टी और जलवायु को सही माना जाता है। दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है जहाँ सबसे ज़्यादा चना उगाया जाता है। भारत के टॉप तीन राज्यों में तीसरा नंबर राजस्थान का है। यहाँ चने का 19.37 फीसदी उत्पादन होता है।

राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के (2021-22) आंकड़ों के मुताबिक़ चने के पैदावार में चौथे नंबर पर गुजरात राज्य है; जहाँ के किसान हर साल 10.67 फीसदी चने का उत्पादन करते हैं। वहीं ये चार राज्य मिलकर 75 फीसदी चने का उत्पादन करते हैं।

विदेशों में भारत के काबुली चने की माँग तेजी से बढ़ रही है, यही वजह है कि काबुली चने के निर्यात में काफी मजबूती देखी जा रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2022-23 में पिछले साल की तुलना में भारत से काबुली चने का निर्यात दोगुना तक बढ़ा है।

फसल को बीमारी से ऐसे बचाएँ

चना में फली छेदक सूंडी बीमारी आम है। ऐसा है तो इसके नियंत्रण के लिए 200 मिली मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल का 100 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिड़काव उस समय करें जब एक सूंडी प्रति एक मीटर लाइन पौधों पर मिलने लगे या पौधों पर 50 फीसदी टांट पड़ गए हों।

फसल की कटाई फलियों के परिपक्व होने पर और पौधे सूखने शुरू हो जाए तब करें। दलहनी फसलों की कटाई ज़मीन की सतह से 4-5 सेमी ऊपर हसिया से करनी चाहिए।

चना (रबी फसल ) किसानों के लिए भी अधिकतर राज्य सरकारें जानकारी और मदद देती रहती हैं। मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र का कृषि विभाग अपनी वेबसाइट पर इससे जुड़ी सभी जानकारी देती हैं, जिसे किसान भाई घर बैठे देख सकते हैं।

किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग मध्य प्रदेश ने अपनी वेबसाइट https://mpkrishi.mp.gov.in/ पर चना की खेती से जुड़ी कई काम की बातें दी हैं। यहाँ खेती का सही समय, फसल उपचार और इसकी अलग अलग प्रजातियों की पूरी जानकारी है।

चना की क्यों है ज़्यादा माँग

चने में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसमें 21 प्रतिशत प्रोटीन, 61.5 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 4.5 प्रतिशत वसा होती है। चने का इस्तेमाल ना सिर्फ दाल के रूप में होता है बल्कि इसके दानों को पीसकर बेसन भी बनाया जाता है।

बेसन से अलग-अलग प्रकार के व्यंजन और मिठाइयाँ बनाई जाती हैं।

जानकारों के मुताबिक़ विश्व बाज़ार में काबुली चने की आपूर्ति कम होने से भी भारतीय चने की माँग बढ़ी है।

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