सर्दी से पहले इनकी खेती से हो सकता है बम्पर उत्पादन

Gaon Connection | Sep 21, 2023, 09:48 IST |
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सर्दी से पहले इनकी खेती से हो सकता है बम्पर उत्पादन
गाजर सर्दियों की प्रमुख फसलों में से एक है, इसकी उन्नत किस्मों और खेती के तरीके के बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं पूसा संस्थान के कृषि वैज्ञानिक डॉ एके सुरेजा।
सलाद के लिए इस्तेमाल होने वाले गाजर की माँग सर्दियों में काफी बढ़ जाती है, सितंबर महीना गाजर की बुवाई के लिए सही समय होता है।

जिन किसान भाई ने गाजर की अगेती फसल खेत में लगा रखी हैं या सर्दियों में गाजर का फसल लेना चाहते हैं। जिन्होंने अगस्त महीने में गाजर की बुवाई कर दी है उनको भी दो बातों का ध्यान ऱखना चाहिए। जब बारिश ज्यादा हो रहीं हो तो खेतों से पानी के निकास की व्यवस्था जरूर करें।

एक बात और जब फसल एक महीने की हो जाए तो निराई गुड़ाई करके करीब 40 से 50 किलो नाइट्रोजन मिट्टी में मिलाकर मिट्टी चढ़ा दें।

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किसान भाइयों जाड़े के मौसम की गाजर बुवाई का समय भी आ रहा है, उसके लिए भी तैयारी करना शुरु कर दीजिए। गाजर की प्रमुख श्रेणीयों को दो भागों मे बाँटा गया हैं उष्णवर्गीय किस्में और शीतोष्णवर्गीय किस्में।

उष्ण वर्गीय किस्मों में प्रमुख किस्में हैं पूसा रुधिरा, पूसा वसुधा, पूसा अशिता, पूसा कूल्फी।

पूसा वसुधा 85 से 90 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसतन उपज 35 टन प्रति हेक्टेयर है। पूसा रुधिरा 25 से 30 टन हेक्टेयर पैदावार मिलती है, और ये करीब 90 दिन में तैयार होती है।

पूसा अशिता काली रंग की किस्म है (गहरी बैंगनी रंग) इसे काल बैंगनी रंग भी बोलते हैं और ये 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती हैं। इसका औसत पैदावार 20 से 25 प्रति हेक्टेयर हैं।

पूसा कुल्फी पीली रंग की किस्म है जो 90 से 100 दिन में तैयार हो जाती हैं इसकी पैदावार 25 टन प्रति हेक्टेयर है, ये जितनी उष्ण श्रेणी की किस्में हैं उसको किसान भाई उत्तर भारत मैदानी क्षेत्रों में सितंबर के आखिरी सप्ताह से लेकर अक्टूबर अंतिम सप्ताह तक आप बिजाई कर सकते हैं।

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शीतोष्ण वर्गीय श्रेणी में प्रमुख किस्में हैं पूसा नेनटीस, पूसा जमदग्रि, पूसा नयनज्योति।

पूसा नेनटीस, पूसा नयनज्योति, इन दोनों की पैदावार 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर है और 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती हैं, जबकि पूसा नयन ज्योति एक संकर किस्म है। ये करीब करीब 100 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी पैदावार 20 टन प्रति हेक्टेयर है।

गाजर की खेती हमेशा बलुई मिट्टी में करना चाहिए, बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई कर दें, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा नाइट्रोजन की आधी मात्रा और नीम की खली 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिट्टी में मिला दें और मेड़ बना दें।

मेड़ों के बीच में अंतराल डेढ फिट होना चाहिए और मेङों पर लाइन से बोवाई करते हैं। गाजर में बोवाई के पहले सिंचाई करते हैं ताकि नमी बनी रहे। बुवाई के तुरंत बाद खरपतवार नाशी पेंडीमेथिलीन 1000 लीटर पानी में मिलाकर उसको स्प्रे करेंगें।

अगर बीज उपचारित नहीं हैं तो फफूंद नाशक कैप्टान या थिरम और इसमें 3 ग्राम पाउडर लेकर बीज में मिलाकर उसको बुवाई कीजिएगा।

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