बीड़ी-सिगरेट ही नहीं, इन कारणों से भी भारत में बढ़ रहा है लंग कैंसर

Gaon Connection | Aug 03, 2024, 11:04 IST |
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फेफड़ों का कैंसर दुनिया भर में दूसरा सबसे ज़्यादा होने वाला कैंसर है, पूरे विश्व में साल 2020 में फेफड़े के कैंसर के 22 लाख नए मरीजों का पता चला है।
भारत में दूसरे कैंसर की तरह ही लंग यानी फेफड़ों के कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। आखिर किन कारणों से होती है यह बीमारी और कैसे कर सकते हैं इसका इलाज विस्तार से जानिए।

विश्व फेफड़े के कैंसर दिवस की शुरुआत फेफड़ों के कैंसर के प्रति दुनिया के लोगों को जागरूक करने के लिए की गई थी। इस दिन को पहली बार 2012 में फोरम ऑफ इंटरनेशनल रेस्पिरेटरी सोसाइटीज (एफआईआरएस) और इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ लंग कैंसर (आईएएसएलसी) के बीच सहयोग के माध्यम से मान्यता दी गई थी। तब से, यह 1 अगस्त को हर साल मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण वैश्विक कार्यक्रम बन गया है।

सभी के लिए सस्ती और सुलभ फेफड़ों के कैंसर की जाँच, निदान और उपचार के विकल्प सुनिश्चित करके, हम देखभाल के अंतर को खत्म कर सकते हैं और यह तय कर सकते हैं कि हर किसी को फेफड़ों के कैंसर से लड़ने का उचित मौका मिले।

फेफड़ों का कैंसर दुनिया भर में दूसरा सबसे ज़्यादा होने वाला कैंसर है, पूरे विश्व में वर्ष 2020 में फेफड़े के कैंसर के 22 लाख नए मरीजों का पता चला है। स्तन कैंसर दुनिया भर में सबसे ज़्यादा होने वाला कैंसर है।

भारत में स्तन, मुंह और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के बाद फेफड़ों का कैंसर चौथा सबसे ज़्यादा होने वाला कैंसर है।

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फेफड़े का कैंसर, वैश्विक स्तर पर कैंसर से संबंधित मौतों का प्रमुख कारण है, जिससे सालाना लगभग 18 लाख फेफड़े के कैंसर से ग्रसित व्यक्तियो की मौत होती है।

फेफड़ों के कैंसर का प्राथमिक कारक धूम्रपान है, जो लगभग 85% मामलों में योगदान देता है। दूसरे कारणों में निष्क्रिय धूम्रपान, रेडॉन गैस, एस्बेस्टस और दूसरे पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना और आनुवांशिक कारक शामिल है।

फेफड़ों के कैंसर के लिए 5 साल जीवित रहने की दर कैंसर की स्टेज के अनुसार अलग होती है। शुरूआती स्टेज के फेफड़ों के कैंसर के लिए, 5 साल की जीवित रहने की दर लगभग 59% है, जबकि फैले हुए एडवांस स्टेज के फेफड़े के कैंसर के लिए यह दर लगभग 6% तक गिर जाती है।

सीटी स्कैन से प्रारंभिक स्टेज के फेफड़ों के कैंसर का पता लगा सकते हैं।

फेफड़े के कैंसर के कुल केस में लगभग 10 से 15 प्रतिशत केस धूम्रपान न करने वाले होते हैं।

महिलाओं की तुलना में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर अधिक होता हैं, लेकिन आजकल देखा जा रहा है कि महिलाओं में भी फेफड़ों के कैंसर की दर बढ़ रही है, जिसका प्रमुख कारण पिछले दशकों में महिलाओं में धूम्रपान की बढ़ती दर है।

अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में, फेफड़ों के कैंसर का वार्षिक वित्तीय बोझ, 1640 हज़ार करोड़ रूपये से अधिक होने का अनुमान है।

भारत में फेफड़ों के कैंसर के प्रमुख आंकड़े


फेफड़ों का कैंसर भारत में सबसे आम कैंसरों में से एक है। भारत में अनुमानित रूप से लगभग 67,000 नए मामले हर साल सामने आते है।

भारतीयों में पुरूषों में फेफड़े का कैंसर मृत्यु का प्रमुख कारण है, जो सभी कैंसर से होने वाली मौतों का लगभग 9.3% है।

भारत में प्रति 1 लाख व्यक्तियों में 7.6% पुरूष और 2.1% महिलाएँ फेफड़े के कैंसर से ग्रसित हैं।

फेफड़े के कैंसर के लिए धूम्रपान एक प्रमुख कारक है, जो भारत में फेफड़ों के कैंसर के लगभग 85% मामलों में योगदान देता है। अन्य महत्वपूर्ण कारकों में खाना पकाने के ईंधन से इनडोर वायु प्रदूषण, व्यावसायिक जोखिम (जैसे, एस्बेस्टस), और बाहरी वायु प्रदूषण शामिल हैं।

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भारत में महिलाओं की तुलना में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर काफी ज्यादा होता है। फेफड़ों के कैंसर के लगभग 70 % मामले पुरुषों में होते हैं।

भारत में फेफड़ों के कैंसर की 5 साल की जीवित रहने की दर 5-10% है जो कि विश्व की तुलना में काफी कम है, जिसका मुख्य कारण देर से निदान और उन्नत उपचार विकल्पों तक सीमित पहुँच है।

भारत में फेफड़ों के कैंसर के इलाज की लागत उपचार के प्रकार और अस्पताल के आधार पर व्यापक रूप से भिन्न होती है। सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी सहित व्यापक देखभाल के लिए औसतन यह 5 लाख रुपये से 20 लाख रुपये तक हो सकता है।

फेफड़े के कैंसर के प्रकार

नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर (एनएससीएलसी) सबसे आम प्रकार है, जो लगभग 80-85% मामलों में होता है, जबकि स्मॉल सेल लंग कैंसर (एससीएलसी) शेष 15-20% मामलों में होता है।

फेफड़े के कैंसर के कारण

1. धूम्रपानः फेफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण, लगभग 85% मामलों के लिए जिम्मेदार है। सिगरेट के धुएं में कार्सिनोजेन्स होते हैं जो फेफड़ों की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाते हैं और कैंसर का कारण बनते हैं।

2. सेकेंडहैंड धुआँ: सेकेंडहैंड धुएं के संपर्क में आने से भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।

3. रेडॉन एक्सपोजरः रेडॉन, एक प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली रेडियोधर्मी गैस है जो कि कुछ औद्योगिक उद्यमों में इस्तेमाल होता है और फेफड़ों के कैंसर के खतरे को बढ़ाता है।

4. एस्बेस्टस एक्सपोजरः अक्सर व्यावसायिक परिवेश में एस्बेस्टस धातु साँस से अंदर जाती है तो फेफड़ों के कैंसर हो सकता है।

5. अनुवांशिक कारण भी फेफड़े के कैंसर के लिए जिम्मेदार है।

6. वायु प्रदूषणः बाहरी वायु प्रदूषण, विशेष रूप से सूक्ष्म कण (पीएम 2.5) के लंबे समय तक संपर्क में रहने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।

7. पुरानी फेफड़ों की बीमारीः क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), टी0बी0 और पिछले फेफड़ों के संक्रमण जैसी बीमारियां बीमारियाँ भी फेफड़ों के कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती हैं।

8. व्यावसायिक जोखिमः कार्यस्थल में कुछ रसायनों और पदार्थों, जैसे आर्सेनिक, क्रोमियम, निकिल और डीजल निकास के संपर्क में आने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।

फेफड़े के कैंसर के लक्षण

लगातार खाँसी रहना, खाँसी में खून आना, सीने में दर्द, साँस लेने में तकलीफ, गला बैठना, वजन घटना, भूख न लगना, थकान, बार-बार संक्रमण होना, चेहरे या गर्दन में सूजन, हड्डी में दर्द, सिरदर्द, इत्यादि लक्षण फेफडे के कैंसर के रोगियों को हो सकते है।

परीक्षण

इमेजिंग- छाती का एक्स-रे, सीटी स्कैन ,पीईटी स्कैन (पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी)

एमआरआई- कुछ मामलों में कैंसर के प्रसार का पता लगाने के लिये विभिन्न हिस्सों का एम0आर0आई0 कराकर कैंसर का पता लगाया जा सकता है।

बलगम की जाँचः कैंसर कोशिकाओं को फेफड़ों से निकले बलगम के नमूने की माइक्रोस्कोप से जाँच जाती है।

थोरैसेन्टेसिसः फेफड़ों की झिल्ली में पानी में कैंसर कोशिकाओं की जाँच करके कैंसर का पता लगाया जा सकता है।

सर्जिकल बायोप्सीः कुछ मामलों में, बड़े ऊतक का नमूना प्राप्त करने के लिए थोरैकोस्कोपी या थोरैकोटॉमी जैसी विधि का प्रयोग करके कैंसर की जाँच की जाती है।

मॉलिक्यूलर टेस्ट- बायोप्सी सैंपल की विशिष्ट आनुवंशिक उत्परिवर्तन या बायोमार्कर (जैसे, ईजीएफआर, एएलके, केआरएएस) का टेस्ट करके कैंसर की पहचान और इलाज किया जा सकता है।

रक्त परीक्षण नए रक्त परीक्षण, जिन्हें लिक्विड बायोप्सी कहा जाता है, इसमें ट्यूमर डीएनए से आनुवंशिक उत्परिवर्तन का पता लगाकर कैंसर की जांच कर सकते है।

मीडियास्टिनोस्कोपी

एंडोब्रोनचियल अल्ट्रासाउंड (ईबीयूएस) एक बार फेफडे के कैंसर का सटीक रूप से पता चलने के बाद विभिन्न परीक्षणों से स्टेज का पता चलने के बाद सर्जरी, कीमोथेरेपी का निर्णय लेकर समुचित रूप से इलाज किया जाता है।

फेफड़ों के कैंसर की रोकथाम

धूम्रपान छोड़ें : निष्क्रिय धूम्रपान से बचें। व्यावसायिक खतरों से बचें। वायु प्रदूषण को कम करें - वायु गुणवत्ता में सुधार करने वाली नीतियों और प्रथाओं का समर्थन करें, जिससे वाहन उत्सर्जन और औद्योगिक प्रदूषकों को कम किया जा सके।

स्वस्थ आहारः फलों और सब्जियों से भरपूर आहार फेफड़ों के कैंसर के खतरे को कम करने में मदद कर सकता है। इन खाद्य पदार्थों में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट और अन्य पोषक तत्व फेफड़ों के समग्र स्वास्थ्य में सहायता कर सकते हैं।

नियमित व्यायाम: उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों के लिए स्क्रीनिंगः सीटी स्कैन उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों में फेफड़ों के कैंसर का शीघ्र पता लगा सकते हैं

फेफड़ों के कैंसर का उपचारः फेफड़ों के कैंसर का उपचार कई कारकों पर निर्भर करता है, जिसमें कैंसर के प्रकार और स्टेज के साथ-साथ रोगी का समग्र स्वास्थ्य भी शामिल है।

सर्जरीः शुरूआती स्टेज के फेफड़ों के कैंसर के लिए सर्जरी की जा सकती है।

विकिरण थेरेपी कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करने और मारने के लिए उपयोग किया जाता है, अक्सर इसका उपयोग तब किया जाता है जब सर्जरी का कोई विकल्प नहीं होता है। कीमोथेरेपी कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए दवाओं का उपयोग किया जाता है, इसका इस्तेमाल एडवांस स्टेज के फेफड़े के कैंसर के लिया।

इम्यूनोथेरेपीः कैंसर से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग करती है।

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