इन तरीकों से बिना किसी कीटनाशक के पाइए फॉल आर्मी वर्म से छुटकारा
 गाँव कनेक्शन |  May 04, 2024, 03:49 IST | 
 इन तरीकों से बिना किसी कीटनाशक के पाइए फॉल आर्मी वर्म से छुटकारा
यह कीट सबसे पहले पौधे की नई पत्तियों पर हमला करता है, इसके बाद पत्तियाँ ऐसी दिखाई देती हैं जैसे उन्हें कैंची से काटा गया हो। यह कीट एक बार में 900-1000 अंडे दे सकता है।
    देवनाथ प्रसाद/राजीव कुमार   
   
कई राज्यों में मक्का की ख़ेती करने वाले किसानों को पिछले कई साल से फॉल आर्मीवर्म की वज़ह से काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसलिए ज़रूरी है इस कीट को अच्छे से समझना ताकि इस पर नियंत्रण पाया जा सके।
   
फॉल आर्मी वर्म या स्पोडोप्टेरा फ्रूजीपेर्डा अमेरिका के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक कीट है। यह कीट एशियाई देशों में फसलों जैसे मक्का, बाजरा, ज्वार, धान, गेहूँ, गन्ना, चारे वाली घास फसल, साग वाली फसलें/लूसर्न घास, सूरजमुखी, गेहूँ, गोभी और आलू को काफी नुकसान पहुँचा रहा है।
   
अमेरिकी मूल का यह कीट दुनिया के अन्य हिस्सों में पहली बार 2016 की शुरुआत में मध्य और पश्चिमी अफ्रीका में पाया गया था और कुछ ही दिनों में विश्व के अनेक देशो में धीरे-धीरे फैलने लगा था। फॉल आर्मी वर्म पहले पूरे उप-सहारा अफ्रीका में तेज़ी से फैला था। दक्षिण अफ्रीका के बाद यह कीट भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्याँमार, थाईलैंड और चीन के यूनान क्षेत्र तक भी पहुँच चुका है।
   
वर्ष 2017 में दक्षिण अफ्रीका में इस कीट के फैलने के कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ था। यह कीट सबसे पहले पौधे की नई पत्तियों पर हमला करता है, इसके हमले के बाद पत्तियाँ ऐसी दिखाई देती हैं जैसे उन्हें कैंची से काटा गया हो । यह कीट एक बार में 900-1000 अंडे दे सकता है।
   
भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पहले मई 2018 में इस विनाशकारी कीट की मौजूदगी कर्नाटक में दर्ज की गई थी और तब से अब तक यह तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक समेत मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात और पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुँच चुका है। उचित जलवायु परिस्थितियों के कारण यह न केवल पूरे भारत में बल्कि एशिया के अन्य पड़ोसी देशों में भी फैल चुका है।
   
     
         
कर्नाटक राज्य भारत में सबसे बड़े मक्का उत्पादकों में से एक है और मक्का देश में व्यापक रूप से उत्पादन किया जाने वाला तीसरा अनाज है। चूँकि यह एक अंतरराष्ट्रीय कीट है, इस कीट की पहली पसंद मक्का फसल है लेकिन यह चावल, ज्वार, बाजरा, गन्ना, सब्जियाँ और कॉटन समेत 80 से अधिक पौधों की प्रजातियों को खा सकता है। इसके प्रबंधन के लिए राज्य स्तर से लेकर जिला व पंचायत स्तर तक मक्का उत्पादन क्षेत्र का सघन सर्वेक्षण कर, इसकी पहचान और रोकथाम के लिए किसानों को जागरूक होना अति आवश्यक है।
   
   
   इस कीट की मादा ज़्यादातर पत्तियों के निचली सतह पर समूह में अंडे देती हैं, कभी-कभी पत्तियों के उपरी सतह और तना पर भी अंडे दे देती है। इसकी मादा एक से ज़्यादा परत में अंडे देकर सफ़ेद झाग से ढक देती है या खेत में कीट के अंडे को बिना झाग के भी देखा जा सकता है। इसके अंडे क्रीमिस से हरे व भूरे रंग के होते है।   
   
सबसे पहले फॉल आर्मी वर्म और सामान्य सैन्य कीट में अंतर को किसानों को समझना ज़रूरी है। फॉल आर्मी वर्म कीट की पहचान यह है, कि इसका लार्वा भूरा, धूसर रंग का होता है, जिसके शरीर के साथ अलग से ट्यूबरकल दिखता है। इस कीट के लार्वा अवस्था में पीठ के नीचे तीन पतली सफेद धारियाँ और सिर पर एक अलग सफेद उल्टा अंग्रेजी शब्द का ‘वाई’(Y) दिखता है और इसके शरीर के दूसरे अंतिम खंड (सेगमेंट) पर वर्गाकार चार बिंदु दिखाई देते हैं और अन्य खंड पर चार छोटे-छोटे बिंदु समलंब आकार में व्यवस्थित होते हैं। यह कीट फसल के लगभग सभी अवस्थाओं को नुकसान पहुँचाता है, लेकिन मक्का इस कीट का रुचिकर फसल है। यह कीट मक्का के पत्तों के साथ-साथ बाली को विशेष रूप से प्रभावित करता है। इस कीट का लार्वा मक्के के छोटे पौधे के डंठल आदि के अंदर घुसकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं।
   
   इस कीट की पहली अवस्था सुंडी ज़्यादा नुकसानदायक है। वे पत्तियों के ऊपरी सतह को खुरचकर खाता है और सिल्क धागा (बैलूनिंग) बनाकर हवा के झोंके के माध्यम से एक पौधे से दूसरे, तीसरे पौधे तक पहुँचता है, जिसके कारण कीट की तीव्रता तेजी से 100% तक पहुँच जाती है और फसल चौपट होने की स्थिति में आ जाती है।   
   
इस कीट के प्रकोप की पहचान फसल मे बढवार की अवस्था में, जैसे पत्तियों के शीर्ष भाग पर छिद्र और कीट के मल-मूत्र और बाहरी किनारों की पत्तियों पर मल-मूत्र से पहचाना जा सकता है, मल महीन भूसे के बुरादे जैसा दिखाई देता है।
   
इस कीट का लार्वा ज़्यादातर पत्तियों पर, लेकिन परिपक्व अवस्था में यह दानों को, मुलायम पत्तियों को और भुट्टा के रेशमी धागों (सिल्क) को खाकर नुकसान पहुँचता है।
   
   मक्का और सजातीय फसलों में इस कीट के निगरानी और रोकथाम के लिए गंधपाश प्रपंच (फेरोमोन ट्रेप स्पोडो ल्यूर) का निर्धारण प्रति एकड़ खेत में 5 की संख्या में करना चाहिए।   
   
   जब बीज जमाव से पौध निकलना शुरू हो जाए तब से ध्यान शुरू कर देना चाहिए।   
   
1 -पौध से अगेती चक्र में (बीज जमाव से 3-4 सप्ताह बाद) : अगर 5% तक फसल नुकसान दिखाई दे तो कीट प्रबंधन के लिए प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए।
   
2 - फसल के मध्य से अंतिम चक्र की अवस्था (जमाव से 5-7 सप्ताह बाद): अगर फसल की मध्य चक्र की अवस्था में 10% तक नुकसान दिखाई दे और अंतिम चक्र अवस्था में 20% तक नुकसान दिखाई दे तो उचित उपाय अपनाने चाहिए।
   
3 - बाली और रेशम धागे निकले की अवस्था में: इस अवस्था में कतई रासायनिक कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए। अगर 10% तक भुट्टे का नुकसान दिखाई दें तो सुरक्षित कीटनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है।
   
    सस्य क्रियाएँ (Cultural Practices):    
   
बुआई से पहले गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें।
   
समय से बुवाई करें और छिटपुट बुवाई न करें।
   
मक्का के साथ फसल के रूप में दलहनी फसल की बुआई अवश्य करें।
   
मक्का के अगेती अवस्था में (30 दिनों तक) पक्षी आश्रय (बर्ड पर्चर) 8-10 की संख्या में प्रति एकड़ खेत में स्थापित करें।
   
मक्के की फसल के तीन से चार कतारों के बाद एक कतार कीट आकर्षक फसलें जैसे नेपियर की बुआई करें, साथ ही यदि आकर्षक फसल पर फाल आर्मी वर्म द्वारा क्षति के लक्षण दिखाई दे तो 5% नीम के बीज का अर्क (NSKE) अथवा एजाडिरेक्टिन 1500 पी.पी.एम. 2 मिलीलीटर पानी में घोल कर अतिशीघ्र छिड़काव करें।
   
खेत को खरपतवार मुक्त रखे
   
मक्के के ऐसे प्रजातियों का चयन करें जिसका छिलका भुट्टे को मजबूती से ढके हो इससे नुकसान को कम किया जा सकता है।
   
बुआई के प्रथम 30 दिनों की फसल अवस्था में 9:1 के अनुपात में बालू और चूने को मिलाकर पत्तियों के चक्र में प्रयोग करें।
   
यांत्रिक क्रियाएँ (Mechanical practices):
   
कीट के अंड समूह और नवजात सुंडियों के समूहों को हाथों से पकड़ कर या कुचलकर या मिट्टी के तेल में डुबोकर नष्ट कर देना चाहिए।
   
कीट से प्रभावित मक्का के पौध के चक्रों में सूखी रेत डालना चाहिए।
   
प्रति एकड़ 25 की संख्या में गंधपाश (फेरोमोन ट्रैप: स्पोडो ल्यूर) लगाकर नर कीटों को आकर्षित कर नष्ट कर देना चाहिए।
   
यांत्रिक विधि के तौर पर शाम (7 से 9 बजे तक) में 3 से 4 की संख्या में प्रकाश प्रपंच और बर्ड पर्चर 6 से 8 की संख्या में प्रति एकड़ स्थापित करें।
   
जैविक क्रियाएँ (Biological practices) :
   
खेतों में मित्र कीटों के संरक्षण के लिए प्राकृतिक आवासीय व्यवस्था बनाना चाहिए, इसके लिए खेतों में दलहनी और फूलों की अन्तः फसल लगानी चाहिए जो मित्र कीटों की संख्या बढ़ाने में सहायक होता है।
   
जैव-नियंत्रक (Bio-Control):
   
अंड परजीवी जैसे ट्राईकोग्रामा प्रेटीओसम या टेलीनोमस रेनिअस 50000 प्रति एकड़ की दर से प्रत्येक सप्ताह खेत में छोड़ना चाहिए।
   
जैव-कीटनाशक (Biopesticides):
   
पौध की अगेती अवस्था में 5% नुकसान और भुट्टे की 10% तक की नुकसान की अवस्था में निम्नलिखित कीटरोगजनित फफूंदनाशकों और जीवाणुनाशकों का प्रयोग करें।
   
मेटाराइजियम एनिसोपली (1X108 ग्राम) की 5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर बुआई से 15-20 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें |
   
कीट के अधिक क्षति की अवस्था में 10 दिन के अन्तराल पर एक या दो छिड़काव फिर करें।
   
मेटारीजियम रिलाई (1X108 cfu/ग्राम) की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर बुआई से 15-20 दिनों के अंतराल पर या व्युवेरिया बेसियाना या वर्टीसिलियम लीकेनी 5 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। कीट के अधिक क्षति की अवस्था में 10 दिन के अन्तराल पर एक या दो छिड़काव फिर करें।
   
बेसिलस थूरिन्जेंसिस 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में अथवा 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
   
रासायनिक क्रियाएँ (Chemical practices):
   
बीजोपचार: साएन्त्रानीलीप्रोल 19.8%+ थायोमेथोक्जम 19.8 % एफ.एस. 6 मिली/किलो बीज उपचार करें, यह 15 से 20 दिनों तक प्रभावी है।
   
जमाव से अगेती चक्र (Early Whorl) अवस्था :
   
अगर मक्का फसल में फॉल आर्मी वर्म कीट के सुंडी द्वारा 5% नुकसान या पत्तियों पर इसके अंडे की अवस्था दिखाई दे तो 5% नीम के बीज का अर्क (NSKE) अथवा एजाडिरेक्टिन 1500 पी.पी.एम. 2 मिलीलीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से कीट को नियंत्रित किया जा सकता है।
   
मध्य चक्र से अंत चक्र की अवस्था:
   
फॉल आर्मी वर्म के दूसरे और तीसरे अवस्था के सुंडी के नुकसान की अवस्था में निम्नलिखित तीन रसायनों का प्रयोग किया जा सकता है।
   
1 - स्पिनेटोरम 11.7% SC 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
   
2 - क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5% SC 0.4 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
   
3 - थायोमेथोक्जाम 12.6% + लैम्ब्डा स्य्लोथ्रिन 9.5% जस 0.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
   
जहरीला चारा (Poison Bait):
   
सुंडी के अंतिम अवस्था को नियंत्रित करने के लिए जहरीले चारे का प्रयोग किया जा सकता है।
   
जहरीला चारा बनाने के लिए 10 किग्रा. चावल की भूसी + 2 किग्रा. गुड़ + 2 से 3 लीटर पानी के साथ मिश्रण बना कर 24 घंटे तक सड़ने के लिए छोड़ दें। खेत में प्रयोग करने से आधा घंटा पूर्व 106 ग्राम थायोडीकार्प मिलाकर पौध चक्रों में छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर डालें।
   
बाली और भुट्टे (Tasseling and cob formation) बनने की अवस्था :
   
फसल की इस अवस्था में कीटनाशकों द्वारा नियंत्रण करना अधिक खर्चीला हो सकता है। इसलिए सुंडियों को हाथों से पकड़ कर नष्ट करने की सलाह दी जाती है।
   
सभी तरह के छिड़काव चक्रों की ओर होनी चाहिए और संभवतः सुबह व शाम के समय में ही करना चाहिए यानी दिन में छिड़काव कतई न करें।
   
(देवनाथ प्रसाद कृषि निदेशालय, बिहार के उप निदेशक (फसल सुरक्षा) और राजीव कुमार सहायक निदेशक हैं।)
   
 
कई राज्यों में मक्का की ख़ेती करने वाले किसानों को पिछले कई साल से फॉल आर्मीवर्म की वज़ह से काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसलिए ज़रूरी है इस कीट को अच्छे से समझना ताकि इस पर नियंत्रण पाया जा सके।
फॉल आर्मी वर्म या स्पोडोप्टेरा फ्रूजीपेर्डा अमेरिका के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक कीट है। यह कीट एशियाई देशों में फसलों जैसे मक्का, बाजरा, ज्वार, धान, गेहूँ, गन्ना, चारे वाली घास फसल, साग वाली फसलें/लूसर्न घास, सूरजमुखी, गेहूँ, गोभी और आलू को काफी नुकसान पहुँचा रहा है।
अमेरिकी मूल का यह कीट दुनिया के अन्य हिस्सों में पहली बार 2016 की शुरुआत में मध्य और पश्चिमी अफ्रीका में पाया गया था और कुछ ही दिनों में विश्व के अनेक देशो में धीरे-धीरे फैलने लगा था। फॉल आर्मी वर्म पहले पूरे उप-सहारा अफ्रीका में तेज़ी से फैला था। दक्षिण अफ्रीका के बाद यह कीट भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्याँमार, थाईलैंड और चीन के यूनान क्षेत्र तक भी पहुँच चुका है।
वर्ष 2017 में दक्षिण अफ्रीका में इस कीट के फैलने के कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ था। यह कीट सबसे पहले पौधे की नई पत्तियों पर हमला करता है, इसके हमले के बाद पत्तियाँ ऐसी दिखाई देती हैं जैसे उन्हें कैंची से काटा गया हो । यह कीट एक बार में 900-1000 अंडे दे सकता है।
भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पहले मई 2018 में इस विनाशकारी कीट की मौजूदगी कर्नाटक में दर्ज की गई थी और तब से अब तक यह तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक समेत मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात और पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुँच चुका है। उचित जलवायु परिस्थितियों के कारण यह न केवल पूरे भारत में बल्कि एशिया के अन्य पड़ोसी देशों में भी फैल चुका है।
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कर्नाटक राज्य भारत में सबसे बड़े मक्का उत्पादकों में से एक है और मक्का देश में व्यापक रूप से उत्पादन किया जाने वाला तीसरा अनाज है। चूँकि यह एक अंतरराष्ट्रीय कीट है, इस कीट की पहली पसंद मक्का फसल है लेकिन यह चावल, ज्वार, बाजरा, गन्ना, सब्जियाँ और कॉटन समेत 80 से अधिक पौधों की प्रजातियों को खा सकता है। इसके प्रबंधन के लिए राज्य स्तर से लेकर जिला व पंचायत स्तर तक मक्का उत्पादन क्षेत्र का सघन सर्वेक्षण कर, इसकी पहचान और रोकथाम के लिए किसानों को जागरूक होना अति आवश्यक है।
पहचान और लक्षण
सबसे पहले फॉल आर्मी वर्म और सामान्य सैन्य कीट में अंतर को किसानों को समझना ज़रूरी है। फॉल आर्मी वर्म कीट की पहचान यह है, कि इसका लार्वा भूरा, धूसर रंग का होता है, जिसके शरीर के साथ अलग से ट्यूबरकल दिखता है। इस कीट के लार्वा अवस्था में पीठ के नीचे तीन पतली सफेद धारियाँ और सिर पर एक अलग सफेद उल्टा अंग्रेजी शब्द का ‘वाई’(Y) दिखता है और इसके शरीर के दूसरे अंतिम खंड (सेगमेंट) पर वर्गाकार चार बिंदु दिखाई देते हैं और अन्य खंड पर चार छोटे-छोटे बिंदु समलंब आकार में व्यवस्थित होते हैं। यह कीट फसल के लगभग सभी अवस्थाओं को नुकसान पहुँचाता है, लेकिन मक्का इस कीट का रुचिकर फसल है। यह कीट मक्का के पत्तों के साथ-साथ बाली को विशेष रूप से प्रभावित करता है। इस कीट का लार्वा मक्के के छोटे पौधे के डंठल आदि के अंदर घुसकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं।
ऐसे पहुँचाता है नुकसान
इस कीट के प्रकोप की पहचान फसल मे बढवार की अवस्था में, जैसे पत्तियों के शीर्ष भाग पर छिद्र और कीट के मल-मूत्र और बाहरी किनारों की पत्तियों पर मल-मूत्र से पहचाना जा सकता है, मल महीन भूसे के बुरादे जैसा दिखाई देता है।
इस कीट का लार्वा ज़्यादातर पत्तियों पर, लेकिन परिपक्व अवस्था में यह दानों को, मुलायम पत्तियों को और भुट्टा के रेशमी धागों (सिल्क) को खाकर नुकसान पहुँचता है।
ऐसे करें इसकी निगरानी
देखभाल
1 -पौध से अगेती चक्र में (बीज जमाव से 3-4 सप्ताह बाद) : अगर 5% तक फसल नुकसान दिखाई दे तो कीट प्रबंधन के लिए प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए।
2 - फसल के मध्य से अंतिम चक्र की अवस्था (जमाव से 5-7 सप्ताह बाद): अगर फसल की मध्य चक्र की अवस्था में 10% तक नुकसान दिखाई दे और अंतिम चक्र अवस्था में 20% तक नुकसान दिखाई दे तो उचित उपाय अपनाने चाहिए।
3 - बाली और रेशम धागे निकले की अवस्था में: इस अवस्था में कतई रासायनिक कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए। अगर 10% तक भुट्टे का नुकसान दिखाई दें तो सुरक्षित कीटनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है।
कीट से बचाव के लिए विभिन्न क्रियाएँ
बुआई से पहले गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें।
समय से बुवाई करें और छिटपुट बुवाई न करें।
मक्का के साथ फसल के रूप में दलहनी फसल की बुआई अवश्य करें।
मक्का के अगेती अवस्था में (30 दिनों तक) पक्षी आश्रय (बर्ड पर्चर) 8-10 की संख्या में प्रति एकड़ खेत में स्थापित करें।
मक्के की फसल के तीन से चार कतारों के बाद एक कतार कीट आकर्षक फसलें जैसे नेपियर की बुआई करें, साथ ही यदि आकर्षक फसल पर फाल आर्मी वर्म द्वारा क्षति के लक्षण दिखाई दे तो 5% नीम के बीज का अर्क (NSKE) अथवा एजाडिरेक्टिन 1500 पी.पी.एम. 2 मिलीलीटर पानी में घोल कर अतिशीघ्र छिड़काव करें।
खेत को खरपतवार मुक्त रखे
मक्के के ऐसे प्रजातियों का चयन करें जिसका छिलका भुट्टे को मजबूती से ढके हो इससे नुकसान को कम किया जा सकता है।
बुआई के प्रथम 30 दिनों की फसल अवस्था में 9:1 के अनुपात में बालू और चूने को मिलाकर पत्तियों के चक्र में प्रयोग करें।
यांत्रिक क्रियाएँ (Mechanical practices):
कीट के अंड समूह और नवजात सुंडियों के समूहों को हाथों से पकड़ कर या कुचलकर या मिट्टी के तेल में डुबोकर नष्ट कर देना चाहिए।
कीट से प्रभावित मक्का के पौध के चक्रों में सूखी रेत डालना चाहिए।
प्रति एकड़ 25 की संख्या में गंधपाश (फेरोमोन ट्रैप: स्पोडो ल्यूर) लगाकर नर कीटों को आकर्षित कर नष्ट कर देना चाहिए।
यांत्रिक विधि के तौर पर शाम (7 से 9 बजे तक) में 3 से 4 की संख्या में प्रकाश प्रपंच और बर्ड पर्चर 6 से 8 की संख्या में प्रति एकड़ स्थापित करें।
जैविक क्रियाएँ (Biological practices) :
खेतों में मित्र कीटों के संरक्षण के लिए प्राकृतिक आवासीय व्यवस्था बनाना चाहिए, इसके लिए खेतों में दलहनी और फूलों की अन्तः फसल लगानी चाहिए जो मित्र कीटों की संख्या बढ़ाने में सहायक होता है।
जैव-नियंत्रक (Bio-Control):
अंड परजीवी जैसे ट्राईकोग्रामा प्रेटीओसम या टेलीनोमस रेनिअस 50000 प्रति एकड़ की दर से प्रत्येक सप्ताह खेत में छोड़ना चाहिए।
जैव-कीटनाशक (Biopesticides):
पौध की अगेती अवस्था में 5% नुकसान और भुट्टे की 10% तक की नुकसान की अवस्था में निम्नलिखित कीटरोगजनित फफूंदनाशकों और जीवाणुनाशकों का प्रयोग करें।
मेटाराइजियम एनिसोपली (1X108 ग्राम) की 5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर बुआई से 15-20 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें |
कीट के अधिक क्षति की अवस्था में 10 दिन के अन्तराल पर एक या दो छिड़काव फिर करें।
मेटारीजियम रिलाई (1X108 cfu/ग्राम) की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर बुआई से 15-20 दिनों के अंतराल पर या व्युवेरिया बेसियाना या वर्टीसिलियम लीकेनी 5 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। कीट के अधिक क्षति की अवस्था में 10 दिन के अन्तराल पर एक या दो छिड़काव फिर करें।
बेसिलस थूरिन्जेंसिस 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में अथवा 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
रासायनिक क्रियाएँ (Chemical practices):
बीजोपचार: साएन्त्रानीलीप्रोल 19.8%+ थायोमेथोक्जम 19.8 % एफ.एस. 6 मिली/किलो बीज उपचार करें, यह 15 से 20 दिनों तक प्रभावी है।
जमाव से अगेती चक्र (Early Whorl) अवस्था :
अगर मक्का फसल में फॉल आर्मी वर्म कीट के सुंडी द्वारा 5% नुकसान या पत्तियों पर इसके अंडे की अवस्था दिखाई दे तो 5% नीम के बीज का अर्क (NSKE) अथवा एजाडिरेक्टिन 1500 पी.पी.एम. 2 मिलीलीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से कीट को नियंत्रित किया जा सकता है।
मध्य चक्र से अंत चक्र की अवस्था:
फॉल आर्मी वर्म के दूसरे और तीसरे अवस्था के सुंडी के नुकसान की अवस्था में निम्नलिखित तीन रसायनों का प्रयोग किया जा सकता है।
1 - स्पिनेटोरम 11.7% SC 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
2 - क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5% SC 0.4 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
3 - थायोमेथोक्जाम 12.6% + लैम्ब्डा स्य्लोथ्रिन 9.5% जस 0.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
जहरीला चारा (Poison Bait):
सुंडी के अंतिम अवस्था को नियंत्रित करने के लिए जहरीले चारे का प्रयोग किया जा सकता है।
जहरीला चारा बनाने के लिए 10 किग्रा. चावल की भूसी + 2 किग्रा. गुड़ + 2 से 3 लीटर पानी के साथ मिश्रण बना कर 24 घंटे तक सड़ने के लिए छोड़ दें। खेत में प्रयोग करने से आधा घंटा पूर्व 106 ग्राम थायोडीकार्प मिलाकर पौध चक्रों में छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर डालें।
बाली और भुट्टे (Tasseling and cob formation) बनने की अवस्था :
फसल की इस अवस्था में कीटनाशकों द्वारा नियंत्रण करना अधिक खर्चीला हो सकता है। इसलिए सुंडियों को हाथों से पकड़ कर नष्ट करने की सलाह दी जाती है।
सभी तरह के छिड़काव चक्रों की ओर होनी चाहिए और संभवतः सुबह व शाम के समय में ही करना चाहिए यानी दिन में छिड़काव कतई न करें।
(देवनाथ प्रसाद कृषि निदेशालय, बिहार के उप निदेशक (फसल सुरक्षा) और राजीव कुमार सहायक निदेशक हैं।)