वैज्ञानिकों ने विकसित की गेहूँ की नई किस्में, नहीं लगेंगी कई बीमरियाँ, मिलेगा अधिक उत्पादन

Gaon Connection | Jul 26, 2023, 05:01 IST |
#wheat cultivation
वैज्ञानिकों ने विकसित की गेहूँ की नई किस्में
आईसीएआर-आईआईडब्ल्यूबीआर ने गेहूँ की तीन नई किस्में विकसित की हैं जो न केवल बढ़िया उत्पादन देंगी, बल्कि रतुआ जैसी कई बीमारियों के प्रतिरोधी भी हैं।
जिस तरह से साल दर साल तापमान बढ़ रहा है, इससे गेहूँ के उत्पादन पर भी असर पड़ रहा है। ऐसे में वैज्ञानिक ऐसी किस्मों को विकसित करने में लगे हैं, जिनसे बढ़िया उत्पादन भी मिल जाए और बढ़ते तापमान का भी असर न हो।

आईसीएआर-भारतीय गेहूँ और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा ने ऐसी ही तीन नई बायो फोर्टिफाइड किस्में- डीबीडब्ल्यू 370 (करण वैदेही), डीबीडब्ल्यू 371 (करण वृंदा), डीबीडब्ल्यू 372 (करण वरुणा) विकसित की हैं। जिनका उत्पादन पहले की किस्मों से कहीं ज्यादा है।

आईसीएआर-आईआईडब्ल्यूबीआर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ अमित कुमार शर्मा गेहूँ की इन किस्मों की खासियतों के बारे में गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "जिस तरह तापमान बढ़ रहा है, हम लोग हीट प्रतिरोधी किस्में विकसित कर रहे हैं, जिससे गेहूँ उत्पादन पर असर न पड़े। ये तीन किस्में ऐसी ही किस्में हैं, ये सभी बायो फोर्टिफाइड किस्में हैं, जिनमें और भी कई खूबियाँ हैं।"

भारत ने पिछले चार दशकों में गेहूं उत्पादन में उपलब्धि हासिल की है। गेहूँ का उत्पादन साल 1964-65 में जहां सिर्फ 12.26 मिलियन टन था, वहीं 2020-21 के दौरान 109.58 मिलियन टन और वर्ष 2021-22 के दौरान 106.84 मिलियन टन उच्च गेहूँ उत्पादन हुआ।
उत्तरी गंगा-सिंधु के मैदानी क्षेत्र देश के सबसे उपजाऊ और गेहूँ के सर्वाधिक उत्पादन वाले क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र में गेहूं के मुख्य उत्पादक राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर सम्भाग को छोड़कर) पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के तराई क्षेत्र, जम्मू कश्मीर के जम्मू और कठुआ जिले, हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला और पोंटा घाटी शामिल हैं।

क्या हैं इन तीनों किस्मों की ख़ासियतें

डीबीडब्ल्यू 370 (करण वैदेही), डीबीडब्ल्यू 371 (करण वृंदा), डीबीडब्ल्यू 372 (करण वरुणा) इन तीनों किस्मों को भारत के उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के सिंचित दशा में अगेती बुवाई के लिए विकसित किया गया है।

डीबीडब्ल्यू 371 (करण वृंदा) सिंचित क्षेत्रों में अगेती बुवाई के लिए विकसित की गई है। इस किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा व उदयपुर सम्भाग को छोड़कर) पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झाँसी मंडल को छोड़कर), जम्मू कश्मीर के जम्मू और कठुआ जिले , हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला, पोंटा घाटी और उत्तराखंड के तराई क्षेत्रों में की जा सकती है।

366745-new-wheat-variety-2023-icar-iiwbr-dbw370-karan-vaidehi-dbw371-karan-vrinda-dbw372-karan-varuna-3
366745-new-wheat-variety-2023-icar-iiwbr-dbw370-karan-vaidehi-dbw371-karan-vrinda-dbw372-karan-varuna-3

इसकी उत्पादन क्षमता 87.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और औसत उपज 75.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। पौधों की ऊँचाई 100 सेमी और पकने की अवधि 150 दिन और 1000 दानों का भार 46 ग्राम होता है। इस किस्म में प्रोटीन कंटेंट 12.2 प्रतिशत, जिंक 39.9 पीपीएम और लौह तत्व 44.9 पीपीएम होता है।


डीबीडब्ल्यू 370 (करण वैदेही)

इसकी उत्पादन क्षमता 86.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और औसत उपज 74.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। पौधों की ऊँचाई 99 सेमी और पकने की अवधि 151 दिन और 1000 दानों का भार 41 ग्राम होता है। इस किस्म में प्रोटीन कंटेंट 12 प्रतिशत, जिंक 37.8 पीपीएम और लौह तत्व 37.9 पीपीएम होता है।

366746-new-wheat-variety-2023-icar-iiwbr-dbw370-karan-vaidehi-dbw371-karan-vrinda-dbw372-karan-varuna-3
366746-new-wheat-variety-2023-icar-iiwbr-dbw370-karan-vaidehi-dbw371-karan-vrinda-dbw372-karan-varuna-3

डीबीडब्ल्यू 372 (करण वृंदा)


इसकी उत्पादन क्षमता 84.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और औसत उपज 75.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। पौधों की ऊँचाई 96 सेमी और पकने की अवधि 151 दिन और 1000 दानों का भार 42 ग्राम होता है। इस किस्म में प्रोटीन कंटेंट 12.2 प्रतिशत, जिंक 40.8 पीपीएम और लौह तत्व 37.7 पीपीएम होता है।

366747-new-wheat-variety-2023-icar-iiwbr-dbw370-karan-vaidehi-dbw371-karan-vrinda-dbw372-karan-varuna-1-scaled
366747-new-wheat-variety-2023-icar-iiwbr-dbw370-karan-vaidehi-dbw371-karan-vrinda-dbw372-karan-varuna-1-scaled

इस किस्म के पौधे 96 सेमी के होते हैं, जिससे इनके पौधे तेज हवा चलने पर भी नहीं गिरते हैं।


कई रोगों की प्रतिरोधी हैं ये तीनों किस्मों

ये किस्में पीला और भूरा रतुआ की सभी रोगजनक प्रकारों के लिए प्रतिरोधक पायी गई हैं। जबकि डीबीडब्ल्यू 370 और डीबीडब्ल्यू 372 करनाल बंट रोग प्रति अधिक प्रतिरोधक पायी गई है।

यहाँ मिलेगा बीज

रबी सत्र 2023-24 के लिए आईसीएआर-भारतीय गेहूँ और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा के सीड पोर्टल पर प्राप्त कर सकते हैं।

Also Read: उत्तरी गंगा-सिंधु के मैदानी क्षेत्रों के लिए गेहूं उत्पादन की उन्नत तकनीक; कब और कैसे करें बुवाई

Tags:
  • wheat cultivation
  • ICAR- IIWBR
  • icar

Previous Story
KCC scheme brings prosperity to horticulture farmers in Ganderbal, J&K

Contact
Recent Post/ Events